बुद्ध धम्म में स्पृश्य और वेदना जैसे शब्दों का अर्थ ।।
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5 سال پیش
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#प्रतीत्यसमुत्पाद का
#प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है। प्राणियों के लिये इसका अर्थ है - कर्म और विपाक (कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार का चक्र। क्योंकि सब कुछ अनित्य और अनात्म (बिना आत्मा के) होता है, कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है। हर घटना मूलतः शून्य होती है। परंतु, मानव, जिनके पास ज्ञान की शक्ति है, तृष्णा को, जो दुःख का कारण है, त्यागकर, तृष्णा में नष्ट की हुई शक्ति को ज्ञान और ध्यान में बदलकर, निर्वाण पा सकते है.
प्रतीत्य समुत्पाद का शाब्दिक अर्थ है- प्रतीत्य(किसी वस्तु के होने पर) समुत्पाद (किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति)।
प्रतीत्य समुत्पाद के 12 क्रम हैं ,जिसे द्वादश निदान कहा जाता है।
12 निदान इस प्रकार हैं-
अविद्या – (अज्ञान – कर्म – दुःख का मूल कारण)
संस्कार
विज्ञान – चेतना (भ्रूण) / जन्म
नामरूप – आत्मा बनती है।
षङायतन (सलायतन) – 6 इन्द्रिया
स्पर्श
वेदना
तृष्णा
उपादाान (तीव्र इच्छा)
भव – जन्म गृहण करने की प्रवृति
जाति – पुनर्जन्म की इच्छा
जरा – मरण
प्रतीत्य समुत्पाद का शाब्दिक अर्थ है- प्रतीत्य(किसी वस्तु के होने पर) समुत्पाद (किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति)।
प्रतीत्य समुत्पाद के 12 क्रम हैं ,जिसे द्वादश निदान कहा जाता है।
12 निदान इस प्रकार हैं-
अविद्या – (अज्ञान – कर्म – दुःख का मूल कारण)
संस्कार
विज्ञान – चेतना (भ्रूण) / जन्म
नामरूप – आत्मा बनती है।
षङायतन (सलायतन) – 6 इन्द्रिया
स्पर्श
वेदना
तृष्णा
उपादाान (तीव्र इच्छा)
भव – जन्म गृहण करने की प्रवृति
जाति – पुनर्जन्म की इच्छा
जरा – मरण
5 سال پیش
در تاریخ 1397/12/01 منتشر شده
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