अभिधम्म पिटक में धर्म और उसके क्रियाकलापों की व्याख्या / Discussion on Mind And Body in Abhidhamma

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26.6 هزار بار بازدید - 5 سال پیش - तेल, बत्ती से प्रदीप्त दीपशिखा
तेल, बत्ती से प्रदीप्त दीपशिखा की भाँति तृष्णा, अहंकार के ऊपर प्राणी का चित्त (=मन =विज्ञान =कांशसनेस) जाराशील प्रवाहित हो रहा हे। इसी में उसका व्यक्तित्व निहित है। इसके परे कोई 'एक तत्व' नहीं है।

सारी अनुभूतियाँ उत्पन्न हो संस्काररूप से चित्त के निचले स्तर में काम करने लगती हैं। इस स्तर की धारा को 'भवंग' कहते हैं, जो किसी योनि के एक प्राणी के व्यक्तित्व का रूप होता है। पाश्चात्य मनोविज्ञान के 'सबकांशस' की कल्पना से 'भवंग' का साम्य है। लोभ-द्वेष-मोह की प्रबलता से 'भवंग' की धारा पाशविक और त्याग-प्रेम-ज्ञान के प्राबलय से वह मानवी (और दैवी भी) हो जाती है। इन्हीं की विभिन्नता के आधार पर संसार के प्राणियों की विभिन्न योनियाँ हैं। एक ही योनि के अनेक व्यक्तियों के स्वभाव में जो विभिन्नता देखी जाती है उसका भी कारण इन्हीं के प्राबल्य की विभिन्नता है।

जब तक तृष्णा, अहंकार बना है, चित्त की धारा जन्म जन्मान्तरों में अविच्छिन्न प्रवाहित होती रहती है। जब योगी समाधि में वस्तुसत्ता के अनित्य-अनात्म-दुःखस्वरूप का साक्षात्कार कर लेता है, तब उसकी तृष्णा का अंत हो जाता है। वह अर्हत्‌ हो जाता है। शरीरपात के उपरान्त बुझ गई दीपशिखा की भाँति वह निवृत्त हो जाता है।

बुद्ध ने भी लोगो में से अपने आप को छोटा समझने वालो में से यह भावना निकलने के कुछ मार्ग बताये है ,और अगर हम यह मार्ग का सही से अभ्यास करेगे तो हम स्वाभिमानी जीवन जी सकते है, बुद्ध ने कहा है "अत्त-दीप-भव:" मतलब खुद ही खुद का मार्ग ढूढो या स्वयम के दीपक खुद बनाओ अर्थात जागृत रह कर खुद ज्ञान की खोज करो यह संभव है किसी भी बात को अपनी बुद्धि से परख कर उसे सत्य और झूट की कसौटी पर परख कर उसे ,अच्छाई और बुराई की कसौटी पर परख कर ,आत्मसम्मानी बनो ! स्वाभिमानी बनो ! और जागृत रह कर सद्धधम्म का प्रचार प्रसार करो
'अभिधम्मपिटक' में सात ग्रंथ हैं-
धम्मसंगणि, विभंग, जातुकथा, पुग्गलपंंत्ति, कथावत्थु, यमक और पट्ठान।
#मन #विज्ञान #कांशसनेस
5 سال پیش در تاریخ 1398/05/26 منتشر شده است.
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