कर्ण राजपूतों का इतिहास

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1 هزار بار بازدید - 9 ماه پیش - कर्ण राजपूत वंश कि उतपत्ति
कर्ण राजपूत वंश कि उतपत्ति महाभारत के महान योद्धा दानवीर कर्ण से हुई है , दानवीर कर्ण का जन्म महऋषि दुर्वाषा के दिए हुए वरदान स्वरूप माता कुंती से भगबान सूर्य के आशीर्वाद से हुआ इसलिए कर्ण को सूर्य पुत्र कर्ण कहा जाता है , बचपन से ही कर्ण के पास भगवान सूर्य नारायण का दिया हुआ दिव्य कवच कुंडल था ,जिसे सूर्य पुत्र कर्ण ने देवराज इंद्र को धर्म कि रक्षा हेतु दान में दे दिया था कर्ण कि परिवरिश अधिरथ ने कि थी और कर्ण को राधे मा का स्नेह मिला था इसलिए कर्ण को राधेय कर्ण भी कहा जाता है सूर्य पुत्र कर्ण पांडवो के ज्येष्ठ भ्राता और कुरु युवराज दुर्योधन के मित्र थे इसलिए कुरु युवराज दुर्योधन ने कर्ण को अंग देश का राजा घोषित करने का निर्णय लिया उस समय अंग देश के राजा विश्वजीत की कोई संतान न होने के कारण अंग देश हस्तिनापुर के शरंक्षण में था कुरुराजकुमार कि घोषणा के बाद कुरुपती ने सूर्य पुत्र कर्ण को महाराज विश्वजीत का उत्तराधिकारी बनाकर अंग देश का सम्राट नियुक्त कर दिया और इस प्रकार सूर्य पुत्र कर्ण अंग राजवंश के उत्तराधिकारी बन गए, अंग राजवंश शुरू से ही चन्द्रवंशी क्षत्रियों का राजवंश था अंग देश के शंश्थापक महाराज अंग थे जो कि चंद्रवंशी राजा महामना के दुसरे पुत्र तितुक्षु के वंशज पुत्र राजा वली के पुत्र थे राजा वली को ऋषि दीर्घतमा के आशीर्वाद से 5 पुत्र प्राप्त हुए अंग , वंग, कलिंग ,सुहू ,पुण्य जो बालेय कहलाये राजा अंग ने अपने नाम से अंग देश बसाया और इनके वंशज क्रमशःददिवाहन ,द्विरथ , धर्मरथ ,लोमपाद (दशरथ) और विश्वजीत हुए , अंग देश को ऋषि श्राप के कारण लोमपाद और उनके भ्राता विश्वजीत के कोई संतान नही हुई और उसी समय अंगदेश कि दो शाखाओं का निर्माण हुआ पहली शाखा लोमपाद बाली हुई जिन्होंने श्राप मुक्ति के लिए अवध नरेश दशरथ से शांता नामक पुत्री को गोद लिया और उसका विवाह विभांडक ऋषि के पुत्र श्रंगी ऋषि से करा दिया और उनके वंशज चतुरंग ,विकर्ण ,शौपुत्र-शतकर्णी, हुए जिनके वंशज सेंगर राजपूत हुए तथा दूसरी शाखा विश्वजीत के वंश को सूर्य पुत्र कर्ण ने आगे बढाया और अंग देश पर कर्ण के वंशजो से कई सताव्दियों तक शाशन किया जिनमे क्रमशः व्र्श्यकेतु, व्रषसेन ,प्रथुसेन प्रमुख थे राजा प्रथुसेंन के बाद कर्ण वंश लडखडा अवश्य गया किन्तु ३१वी पीढ़ी तक कर्ण वंशज अंग देश के प्रमुख रहे परन्तु विदेशी आक्रांताओं के समय भारत के हिंदू राजाओं पर होने वाले अनैतिक आक्रमणों ने हिंदू राजाओं को अपनें हिंदू वादी अस्तित्व को बचाए रखने के लिए राज्य सुख छोड़ने पर विवश कर दिया और कई स्वाभिमानी महाराणा प्रताप जैसे राजा अपनी मान मर्यादा और स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए जंगलों में कबीला बना कर रहे मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा कई हिंदू राजाओं के इतिहासिक अस्तित्व को मिटा दिया गया और कई मंदिरों को तोड़ कर उन पर मस्जिदों का निमार्ण करा दिया गया और हिंदू संस्कृति के कई इतिहासिक प्रमाण मिटा दिए गए और भारत के इतिहास के मन्दिर नालिंदा विश्व विद्यालय को जला दिया गया ताकि हिंदुस्तान के हिंदु राजाओं की हिंदु संस्कृति के इतिहास को हमेशा के लिया मिटा दिया जाए और हिंदु राजाओं के इतिहास को भ्रमित कर दिया गया स्थानीय इतिहासकारों के अनुसार अंग देश के कर्ण वंशी अन्तिम शासक / सामंत महाराज शिव कर्ण अपने लोगों के साथ राज्य सुख त्याग कर जंगलों में चले गए और कबीले में रहने लगे और उस कर्ण वंशी कबीले के सरदार बनकर उसका नृतत्व करने लगे कवीलों को स्थानीय भाषा में डेरा कहा जाता था चूंकि डेरा करणों का था इसलिए उन डेरो को कर्णडेरा कहा जाता था जो लोक भाषा में अपभ्रंश हो कर कंडेरा हो गया तथा धीरे धीरे डेरों की तादात में विस्तार होने लगा और डेरा से कई डेरे हो गए चूंकि यह सभी डेरे करणों के थे इसलिए इन्हें कर्णडेरे कहा जाता था जो की स्थानीय भाषा में अपभ्रंश हो कर बाद में कड़ेरे कहलाने लगे जो की समय के अनुकूल अपने जीवन जीने के संघर्ष के चलते अपनी परिस्थिति के अनुसार अपनी जीविका के अनुरुप देश के विभिन्न राज्यों में बस गए और जीवन यापन करने लगे तथा ब्रटिश सरकार के अंतिम समय में इस समुदाय के लोगों को उनकी स्थानीय पहिचान के तौर पर कड़ेरे/कंडेरा के नाम से यह जाति दर्ज की गई जो कि मूल रूप से कर्ण वंशी राजपूत है जो कि चंद्र वंश अथवा सूर्य के अंश से कर्ण का जन्म होने के कारण सूर्य वंश से भी संबध रखती है इसलिए कर्ण वंश को सूर्य और चंद्र वंश का उत्कर्ष कहा गया है वंश :- चन्द्रवंशी शाखा :- कर्ण वंशी कुलदेवी :-कालिका (बघेली वाली) नदी :-अश्व नदी (आसन ) गुरु :-परशुराम कुलपुरोहित - महऋषि कण्व वेद:- अथर्व वेद कर्ण की रानियां और पुत्र* कर्ण के दो विवाह हुए थे एक अपने पिता अधिरथ के कहने पर रुशाली नाम कि कन्या से दूसरी मित्र दुर्योधन के कहने पर दूसरी रानी के नाम के पीछे कई एतिहासिक मत है कोई कहता है की रानी कम्बोज के राजा चन्द्र वर्मा कि पुत्री भानुमती कि दासी या छोटी बहन सुप्रिया ( उर्वी ) से (कई इतिहासकार पद्मावती को मानते है जो कि असाम्बरी कि दासी थी ) इन दोनों पत्नियों से उन्हें 9 पुत्रो कि प्राप्ति हुई 1.व्रस्य शेन 2.व्रस्य केतु 3.चित्र शेन 4.सत्य शेन 5.शुशेन 6.सत्रुनजय 7.द्वविपाल 8.प्रसेन 9.वनसेन इतिहासिक अनुसार महारथी कर्ण के 8 पुत्र महाभारत के युद्ध में कुरु क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गए थे महाभारत में महारथी कर्ण के ज्येष्ठ पुत्र कर्णवंशी वृष्यकेतु ही जीवित बचे थे जिन्होंने पांडवो के सरक्षण में अंग देश की गद्दी संभाली थी #devotional #कर्णराजपूत #karnrajpoot #kandera
9 ماه پیش در تاریخ 1402/08/03 منتشر شده است.
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