महर्षि चुनकट जी व चुलकाना धाम की कथा

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303 بار بازدید - 10 ماه پیش - श्री चुनकट ऋषि जी लकीसर
श्री चुनकट ऋषि जी लकीसर बाबा व श्री श्याम बाबा
चुलकाना नरेश जी की कथा

सतयुग में चुलकाना धाम में चुनकट ऋषि लकीसर बाबा
ने घोर तपस्या की चुलकाना धाम का नाम चुनकर ऋषि
के नाम पर रखा गया है ओर सुर्यवंशी राजा जो चक्रवर्ती
सम्राट हुआ जिसके पास 72 अक्षौनी सैना थी उसके
साथ युद्ध हुआ जिसके प्रमाण आज भी मौजूद है उस
राजा का नाम है चकवा बैन (वैन) यह भगवान श्री राम
के पूर्वज थे चुलकाना धाम में उस दौरान एक राजा हुए
चकवा बैन

जिसको इतिहास में (वैन) के नाम से जाना जाता है जो
राजा अंग का पुत्र है। ओर चकवा बैन का पुत्र पृथु हुआ
जो भगवान विष्णु का नौंवा अवतार हुआ मत्स्य पुराण
विष्णु पुराण सहित लगभग सभी पुराणों में राजा वैन का
वर्णन मिलता है यही राजा चकवा बैन कहलाया जो
चक्रवती सम्राट हुए जिनका पुरे पृथ्वीलोक मृत्तुलोक
पर राज हुआ करता था। उन्होंने घोषणा की कि मेरे
राज्य में जो भी जीव हैं वो मेरा अन्न जल ही ग्रहण
करेगा ये फरमान जारी कर दिया गया, तो बाबा के
पास भी राजा के सेवक भोजन का निमंत्रण लेकर
पहुंचे लेकिन चुनकट ऋषि ने मना कर दिया उसके
बाद संव्यं चकवा बैन (वैन) चुलकाना धाम में आकर
चुनकट ऋषि को भोजन ग्रहण करने के लिए कहते
है लेकिन चुनकट ऋषि राजा वैन को भी मना कर
देते है ओर कहते है कि | मैनें व्रत धारण किया हुआ
ऋषि लोग व्रत रखते है इसलिए में राज अंश नहीं खा
सकता | तब राजा ने संदेश भिजवाया कि या तो मेरा
अन्न जल ग्रहण करो नहीं तो मेरे राज्य से बाहर चले
जाओ, या मेरे साथ युद्ध करो। बाबा ने उसकी नगरी
को (राज्य) को छोड़ना ही उचित समझा और वो यंहा
से चल पड़े। पृथ्वी के आखिरी छोर पर पहुंचें जहाँ के
बादपानी ही पानी नजर आ रहा है। उसी दौरान
भगवान ने एक लीला दिखाई बाबा को एक बहुत ही
सुंदर हिरण सागर किनारे पानी की प्यास बुझाने के
लिए जैसे ही पानी पीने लगा तभी पीछे से एक बब्बर
शेर दोड़ता हुआ आ रहा है। तभी हिरण ने आवाज
लगाई हे राजन (चकबाबैन) दुहाई हो आपके राज्य
में एक निर्बल की हत्या होने से बचाओ| तभी एक
हथियार आता है और उस शेर की गर्दन अलग कर
देता है। तभी बाबा लकीसर को आभास होता है कि
यहाँ भी उसका राज है और वहाँ भी क्यों न अपनी
तपोभूमि में जाकर उसका सामना किया जाये |
तब बाबा वापिस अपने उसी स्थान तपोभूमि में
(चुलकाना धाम) पहुँच गये । राजा को फिर पता
चला उन्होनें फिर संदेश भेजा, बाबा ने कहा में यही
पर रहूँगा और आपका अन्न जल कभी ग्रहण नहीं
करूँगा । तब राजा ने क्रोधित होकर बाबा को
युद्ध लड़ने के लिए कहाँ। तब बाबा चुनकट ने एक
रात का समय माँगा | अगली सुबह उनसे बातचीत
करने को कहाँ रात्रि में बाबा ने भगवान के नाम
की धूनी लगाई ब्रह्ममुहूर्त में वेद मंत्रों के द्वारा 21/2
कुशा तैयार की सुबह पहली कुशा से राजा वैन की
72 अक्षोनी सैना खत्म कर दी जैसे ही राजा चकवा
वैन का घमंड टुटा वो चुनकट ऋषि के चरणों में
क्षमा याचना करने लगा चुनकट ऋषि ने दुसरी कुशा
फेंक दी राजधानी पर राजधानी धरती में गर्क हो गई
आधी कुशा को आदेश दिया द्वापर में जाने का जो
द्रोपदी के नाम से प्रसिध्द हुई ओर लहुपान किया
तभी से बाबा चुनकट की इस तपोभूमि का नाम
चुनकट वाला पड़ गया जो आज चुलकाना धाम के
नाम से विख्यात है। पंडित मांगेराम ने बताया कि
चुनकट ऋषि ब्रह्मा जी के आदेश से चुलकाना धाम में
आया ओर चकवा बैन (वैन) के पाप से ऋषि
महत्माओं ब्राह्मणों व प्रजा को बचाया सतयुग का यह
इतिहास चुलकाना धाम को धार्मिक तीर्थ स्थान होने
का प्रमाण देता है
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10 ماه پیش در تاریخ 1402/08/14 منتشر شده است.
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