अरोड़ा समाज के संस्थापक श्री अरूट जी महाराज

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712 بار بازدید - 6 ماه پیش - श्री अरूट जी महाराज व
श्री अरूट जी महाराज व उनके वंशज
दोस्तो भविष्य पुराण का एक श्लोक है-
‘नाग वंशोद्या दिब्‍या, क्षत्रियास्‍म सुदाहता।
ब्रह्म वंशोदयवाश्‍चान्‍ये तथा अरूट वंश संभवा।’
यानी नागवंश में होने वाले, वैसे ही ब्रह्म वंश में
होने वाले तथा अरूट वंश में होने वाले श्रेष्‍ठ
क्षत्रिय कहलाए आज के हमारे इस वीडियो में
हम आपको इसी अरूट वंश व इसके संस्थापक
श्री अरूट जी महाराज की जानकारी देंगे।
दोस्तो मान्यता है कि त्रेता युग में श्री परशुराम से
सम्‍मान पूर्वक अभयदान पाकर सूर्यवंशी क्षत्रिय
श्री अरूट ने सिंधु नदी के किनारे एक किला
बनाकर उसका नाम अरूट कोट रखा। जिसे बाद
में अरोड़ कोट कहा जाने लगा। महाराजा अरूट
के साथी और वंशज ही अरूट वंशी और बाद में
अरोड़ा कहलाए।
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्री राम के
सुपुत्र लव को लाहौर का राज्य उत्तराधिकार में
मिला था उन्हीं के कुल में कालराय राजा हुए।
उनकी दो रानियां थीं। एक रानी का पुत्र शांत
स्वभाव का था इसलिए उसे अरूट कहा जाता
था। राजा ने मंत्री की राय से अरूट को अपना
सारा ख़जाना दे दिया तथा दूसरी रानी के सुपुत्र
छोटे राजकुमार को राज्य का उत्तराधिकारी
मनोनीत किया।
बड़े राज कुमार अरूट ने लाहौर नगर छोड़ कर
मुल्तान की ओर प्रस्थान किया साथ ही अनेक
नागरिक और सैनिक राजा की आज्ञा का पालन
करते हुए चल पड़े। सिंधु नदी के किनारे एक किला
बना उसका नाम अरूट कोट रखा जिसे तत्पश्चात
अरोड़कोट कहा जाने लगा
इस तरह जो बांशिदे राजा की टोली में थे उन्हें
अरूट वंशी या अरोड़ा कहलाने का गौरव प्राप्त
हुआ तथा अरोड़ा समाज की उत्पत्ति हुई।सिकंदर
को भी महाराजा अरूट के वंशजों से लड़ना पड़ा
था।
मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के समय आपसी
फूट के कारण अरोड़ कोट हमलावरों के हाथ में चला
गया। इस भगदड़ में अरोड़वंशियो का एक दल उत्तर
दिशा में गया जो उत्‍तराधा कहलाया। दक्षिण को
जानेवाला दक्षिणणाधा और पश्चिम दिशा को
जानेवाला दाहिरा कहलाया। इसके बाद अरोड़
वंशियों ने व्यापार और खेती को जीवन निर्वाह
का मुख्‍य साधन बनाया।
करीब 300 वर्ष बाद जब पंजाब में आक्रमण हुए
तो अनेक अरोड़वंशी सिंध की ओर लौटे। उन्होंने
स्वयं को लोहा वरणा या लोहावर कहा। धीरे धीरे
लोहाणे कहलाने लगे। आजकल भी लोहाणे में जो
गीत गाए जाते हैं, वे लाहौर की ओर ही इशारा
करते हैं। 11वीं शताब्दी के प्रारंभ में जब पंजाब
पर विदेशी आक्रमण हुए तो कुछ अरोड़वंशी
राजस्थान की ओर भी चले गए। राजस्थान के
अरोड़वंशी पंजाब से होकर ही राजपूताने में बसे
थे। अरोड़वंशी खत्रियों द्वारा बनवाया हुआ श्री
दरियाब देव जी का मंदिर श्री पुष्कर राज में
विद्यमान है। जिन बड़े कस्बों और नगरों में
अरोड़वंशी बिरादरी के घर अधिक हैं, वहां श्री
दरियादेव जी के मंदिर स्थापित हैं। राजस्थान में
अरोड़वंशी खत्रियों की 84 अल्ले हैं। राजस्थान
के अरोड़ा समुदाय में किसी कारणवश फूट
पड़ गई और पूरी बिरादरी दो दलों में बंट गई।
एक दल का नाम जोधपुरी अरोड़ा खत्री और
दूसरे दल वाले नागौरी अरोड़ा खत्री कहलाते हैं।

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6 ماه پیش در تاریخ 1402/12/21 منتشر شده است.
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