तुम अपना कहती थी I Tum Apna Kehti Thi I Dr Kumar Vishwas

Kumar Vishwas
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7.2 میلیون بار بازدید - 4 سال پیش - “तुम अपना कहती थी”....पता नहीं
“तुम अपना कहती थी”....पता नहीं स्वयं चुने इस नियोजित जीवन के हल्दी सने इकरँग आँचल और खुद लादी रूढ़ियों के पल्लू में बंधी नियमित ज़िम्मेदारी की मर्यादा भरी चाबियों की बेस्वाद रुनझुन में तुम्हें वो सरग़ोश आवाज़ें याद हों ना याद हों पर मेरी बीतती उम्र को, मेरे पड़ाव भाँप रहे कदमों और मेरी दुनिया छान रही धूसर आँखों को आजतक वो सारे मंजर मुँहजबानी याद हैं😞!
प्यार में अहंकार का आकार बढ़ा लेने वाले पत्थरों को छोड़कर हर सरला-तरला नदी बूँद-बूँद आँसू छलका कर आगे निकल ही जाती है ! पर वही नदी अपने आकार को उसके प्रति समर्पण वाले गाल के मनहर गड्ढों जैसे वर्तुलों में घिस घिसकर समाप्त करने वाले रेत के कण से लिपट लिपट जाती है ! तुमने तो न वक़्त के रेत की फिसलन समझी न हर हर भँवर के ख़िलाफ़ कण-कण जूझते अपने इस उजाड़ बचे द्वीप का अकेलापन ! ख़ैर...”तुम अपना कहती थीं”.....तुम्हें याद हों न याद हो 💔

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4 سال پیش در تاریخ 1399/05/30 منتشر شده است.
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