हर एक कपड़े का टुकड़ा मां का आंचल हो नहीं सकता | Kumar Vishwas | Sahitya Tak

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हर एक कपड़े का टुकड़ा माँ का आंचल हो नहीं सकता
जिसे दुनिया को पाना है वो पागल हो नहीं सकता
जफ़ाओं की कहानी जब तलक उसमें न शामिल हो
वफ़ाओं का कोई किस्सा मुकम्मल हो नहीं सकता...
किसी के दिल की मायूसी जहां से होके गुजरी है
हमारी सारी चालाकी वहीं पर खो के गुजरी है
तुम्हारी और मेरी रात में बस फर्क इतना है
तुम्हारी सो के गुजरी है, हमारी रो के गुजरी है....कुमार विश्वास ने साहित्य आजतक के मंच पर मां और मोहब्बत पर सुनाई यह कविता. साहित्य तक पर इसे फिर से सुनिए.
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5 سال پیش در تاریخ 1398/07/09 منتشر شده است.
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