भगवान बुद्ध मांस क्यु खाते थे ... जानिये

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106.8 هزار بار بازدید - 5 سال پیش - कई बौद्ध ग्रंथों से भी
कई बौद्ध ग्रंथों से भी ये बात पता चलती है कि भगवान बुद्ध और अन्य भिक्षु मुख्य रूप से शाकाहारी थे लेकिन परिस्थितिवश मांस या मछली का सेवन कर लेते थे ...जानिये  क्यु....
आमगंध सुत्त में कश्यप बुद्ध ने एक तपस्वी के प्रश्न के उत्तर में कहा कि मांसाहार से अधिक बदबू अनैतिकता में होती है।

इस #सू्त्त में गन्ध' का प्रयोग मछली-माँस तथा पाप के अर्थ में हुआ है। यहाँ इस बात पर जोर दिया गया है कि मछली-मांस के व्यंजन मात्र से आमगन्ध नहीं होता लेकिन सभी पापों से आमगंध होता है।

#कश्यप ! दूसरों द्वारा दिया गया उत्तम चावल का स्वादिष्ट भोजन ग्रहण करनेवाला 'आमगन्ध' का सेवन करता है ॥२॥
#ब्रहमबन्धु ! आप पक्षीमांस सहित उत्तम चावल का अन्न लेते हैं। फिर भी आप कहते हैं कि ‘#आमगन्ध’ आप से त्यक्त है। कश्यप ! मैं आप से पूछता हूँ कि भला, आप का ‘आमगन्ध' क्या है

कश्यप बुद्ध-
#जीवहिंसा, #वध, #बन्धन, #चोरी, #असत्य,#धोखाबाजी, ठगी, निरर्थक अध्ययन तथा परस्त्री-गमन-यह सब है आमगन्ध न कि मांसाहार ||४||

“जो लोग विषय-भोग में संयम नहीं रखते, #रसास्वादन में लिप्त हैं, पापी हैं। और विषम, टेढ़ी नास्तिक दृष्टिवाले हैं-यह है #आमगन्ध न कि #मांसाहार

“जो कठोर, दारुण, चुगलखोर, द्रोही, निर्दयी, अतिमानी तथा अदानशील हैं, और किसी को कुछ नहीं देते---यह है आमगन्ध न कि मांसाहार ।।६।।
“क्रोध, मद, ढिठाई, विरोध, गाया, ईर्ष्या, आत्म-प्रशंसा, मानातिमान और बुरों की संगति—यह है आमगन्ध न कि मांसाहार ॥

“जो पापी, ऋण अदा न करनेवाले, #चुगलखोर, कपट, ढोंगी नराधम बुरे कर्म करते हैं—यह है आमगन्ध न कि मांसाहार ॥८॥
जो लोग प्राणियों के प्रति संयम नहीं रखते, दूसरों की वस्तु लेकर उन्हें परेशान करने पर तुले हुए हैं और दुराचारी, क्रूर, कठोर तथा अ-दानशील है-- यह है आमगन्ध न कि मांसाहार

"जो लोग लालच या विरोध-भाव से जीव-हिंसा पर तुले हुए हैं, वे परलोक में अन्धकार को प्राप्त होते हैं और उलटे सिर नरक में पड़ते हैं-यह है आमगन्ध न कि मांसाहार॥१०॥
“न तो मछली-मांस न खाना, न नंगा रहना, न मुंडन करना, न जटा धारण करना, न धूल पोतना, न कर्कश मृग-चर्म पहनना, न #अग्नि-परिचर्या, न #अमरत्व की आकांक्षा से अनेक प्रकार का तप करना, न मंत्र पाठ करना, न हवन करना, न यज्ञ करना और न ऋतुओं का उपसेवन करना ही संशययुक्त मनुष्य को शुद्ध कर सकते है

“जो #इन्द्रियों को वश में कर विजितेन्द्रिय हो गया है, और जिसने, धर्म में स्थित हो, ऋजुता और मृदुता में रत हो, #तृष्णा से परे हो,सब दुःख का नाश किया है, वह रूपों तथा शब्दों में आसक्त नहीं होता”॥१२॥
इस बात को भगवान् ने बारम्बार कहा और वेदपारङ्गत ब्राह्मण ने इसे समझ लिया। तृष्णा रहित, अनासक्त और अनुसरण करने में दुष्कर मुनि ने सुन्दर #गाथाओं में यह बात प्रकट की ।

तृष्णा रहित, सर्व दुःख निवारक #बुद्ध के #सदुपदेश को सुनकर ब्राह्मण ने उनकी #वन्दना की और वहीं पर प्रव्रज्या की #याचना की ।।१४।।

आमगंध है- आम + गंध दो शब्दों से बना हुआ शब्द।
आम का अर्थ है नहीं पचा या पका हुआ अन्न और गंध का अर्थ है सूंघी जाने वाले वायु। गंध के आगे सु लगाते हैं तो वह सुगंध है और दु लगाते हैं तो दुर्गंध होता है। इस सुत्त में आमगंध का अर्थ सडी मछली या मांस की #दुर्गंध या बदबू है। सडे हुए मछली, #मांस की दुर्गंध बहुत होती है जो लोग पसंद नही करते है।

सडे हुए मांस की बदबू से पाप की दुर्गंध बहुत धृणाजनक होती है। तात्पर्य है कि मांसाहार से मनुष्य की जितनी हानि नहीं होती है उससे अधिक पापाचार करने से होती है। प्राणी हत्या करना पापाचार है, बुद्ध ने शील में "प्राणी हत्या न करना"को प्रथम स्थान दिया है- "#पाणातिपाता #वेरमणि" कहा है। इस सुत्त का उपदेश मांसाहार करने के पक्ष में किया गया है ऐसा नहीं समझना चाहिए।

मांसाहार करना या नहीं करना मनुष्य की आवश्यकता और परिस्थितियों पर निर्भर होता है।
मांसाहार करने वाले अनैतिक और पापी होते हैं यह धारणा ग़लत है। शाकाहारी नैतिक और पवित्र होते हैं यह भी धारणा ग़लत है। #खानपान से कोई पवित्र- अपवित्र नहीं होते हैं। अपने कुशल कर्मों से व्यक्ति पवित्र होते हैं और अकुशल कर्मों के कारण व्यक्ति अपवित्र होते हैं। पृथ्वी के अधिकतर भूभाग में लोग मांसाहार करते है। लेकिन नैतिकता में पिछे नहीं है। और शाकाहारी में लोग #कामुक, #लंपट, #लोभी, #बलात्कारी, #खुनी पाये जाते है।
मनुष्यों को #शील #सदाचार का पालन करना चाहिए और सभी प्राणियों के प्रति दया भावना रखनी चाहिए। कोई प्राणी की हत्या न करें। भोजन के लिए कोई प्राणी की हत्या न करें और न कराएं। #जीवदया #बुद्ध #धम्म का मूल मंत्र है।

"#पाणातिपाता #वेरमणि"
मांसाहार करने में पवित्र या अपवित्र का भाव सापेक्ष है।

नमो बुद्धाय
5 سال پیش در تاریخ 1398/09/02 منتشر شده است.
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