श्री विष्णु कथा भाग - 5 / भगवान श्री विष्णु का प्रथम अवतार / history of matsya avatar.

Abhay Singh
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428 بار بازدید - ماه قبل - विष्णु कथा भाग - 5
विष्णु कथा भाग - 5 / भगवान श्री विष्णु का प्रथम अवतार / history of matsya avatar.


यह बात तो हम सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से एक मत्स्य अवतार हैं। उन्होंने यह स्वरूप सृष्टि के अंत में लिया था। बता दें कि जब प्रलय आने में कुछ ही समय बचा हुआ था, तब उन्होंने सृष्टि के उद्धार के लिए यह रूप धारण किया था।

इस वजह से भगवान विष्णु ने लिया था 'मत्स्य अवतार'

20 मार्च को चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है, विष्णु पुराण में कथा है कि इस दिन भगवान विष्णु ने अपने 10 अवतारों में से पहला अवतार लिया था जो मत्स्य अवतार के नाम से जाना गया।

मत्स्य अवतार की कथा

भगवान विष्णु का यह अवतार सृष्टि के अंत में हुआ था जब प्रलय काल आने में कुछ वक्त बचा था। सत्यव्रत मनु जिनसे मनुष्य की उत्पत्ति हुई धर्मात्मा और भगवान विष्णु के भक्त थे। एक दिन जब सत्यव्रत मनु नदी तट पर पूजन और तर्पण कर रहे थे तब उनके कमंडल में नदी की धारा में बहकर एक छोटी सी सुनहरी मछली आ गई।
उस छोटी सी मछली को लेकर मनु अपने राजमहल लौट आए। अगले दिन वह मछली इतनी बड़ी हो गई कि उसे एक बड़े से तालाब में रखना पड़ा। अगले दिन मछली तलाब में भी नहीं समा रही थी तब उसे नदी में डाल दिया गया। उस समय मनु ने मछली से पूछा कि आप असाधारण हैं मछली हैं, आप अपना परिचय दीजिए।

भगवान विष्णु मछली से प्रकट हुए और बताया कि आज से 7 दिन बाद प्रलय आने वाला है सृष्टि की रक्षा के लिए मैंने यह अवतार लिया है। आप एक बड़ी सी नाव बना लीजिए और उसमें सभी प्रकार की औषधि और बीज रख लीजिए ताकि प्रलय के बाद फिर से सृष्टि के निर्माण का कार्य पूरा हो सके।

प्रलय आने से पहले भगवान सत्यव्रत के पास आए और उनसे कहा कि आप अपनी नाव को मेरी सूंड में बांध दीजिए। सत्यव्रत परिवार सहित नाव पर सभी प्रकार के बीज और औषधि लेकर सवार हो गए और प्रलयकाल के अंत तक भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार के सहारे महासागर में तैरते रहे। मत्स्य अवतार में भगवान ने चारों वेदों को अपने मुंह में दवाए रखा और जब पुनः सृष्टि का निर्माण हुआ तो ब्रह्मा जी को वेद सौंप दिए। इस तरह भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर प्रलय काल से लेकर सृष्टि के फिर से निर्माण का काम पूरा किया।

ऐसी भी कथा है कि सृष्टि के निर्माण के समय जब चारों तरफ जल ही जल था तब पृथ्वी की स्थापना के लिए मत्स्य भगवान ही महासागर के तल में जाकर अपने मुंह में मिट्टी लेकर आए थे और इससे जल के ऊपर पृथ्वी का निर्माण किया गया था।

भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कहानी। (Story of Matsya Avatar in Hindi)

सतयुग के प्रारंभ में भगवान विष्णु का प्रथम अवतार हुआ था जिसे मत्स्य या मछली का अवतार माना जाता है। इस काल में द्रविड़ देश में सत्यव्रत नाम के महान राजा राज करते थे। एक बार नदी में स्नान करते हुए उन्हें एक मछली मिली। जिसे वे अपने महल ले आए। वह मछली और कोई नहीं बल्कि भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्य अवतार थी। मछली ने राजा सत्यव्रत से कहा कि हे राजन हिग्रीव नामक एक राक्षस ने वेदों को चुरा लिया है। उस राक्षस का वध करने के लिए मैंने यह अवतार लिया है। आज से सातवें दिन पृथ्वी जल प्रलय से डूब जाएगी। तब तक तुम एक बड़ी सी नाव का इंतजाम कर लो और प्रलय के दिन सप्त ऋषियो के साथ सभी तरह के प्राणियों तथा औषधि बीजो को लेकर नाव पर चढ़ जाना। मैं प्रलय के दिन तुम्हें रास्ता दिखाऊंगा।

इसके बाद सत्यव्रत ने भगवान द्वारा बताई गई सभी तैयारियां कर ली और वे प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे। सातवें दिन पहले का दृश्य उमड़ पड़ा समुद्र अपनी सीमा से बाहर बहने लगा। सत्यव्रत सप्तर्षियों के साथ नाव पर चढ़ गए।

नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी। प्रलय के उस सागर में उस नाव के अतिरिक्त कहीं भी कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था. तभी वहां पर मत्स्य रूपी भगवान विष्णु प्रगट हुए। अपने वचन के अनुसार उन्होंने वासुकि नाग का रस्सी की तरह उपयोग कर नौका को प्रलय से बाहर निकालने का रास्ता दिखाया। साथ ही सत्यव्रत को आत्मज्ञान प्रदान किया। बताया- "सभी प्राणियों में मैं ही निवास करता हूँ। न कोई ऊँच है, न नीच। सभी प्राणी एक समान हैं। जगत् नश्वर है। नश्वर जगत् में मेरे अतिरिक्त कहीं कुछ भी नहीं है। जो प्राणी मुझे सबमें देखता हुआ जीवन व्यतीत करता है, वह अंत में मुझमें ही मिल जाता है।"

मत्स्य रूपी भगवान से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा। वे जीते जी ही जीवन मुक्त हो गए। प्रलय का प्रकोप शांत होने पर मत्स्य रूपी भगवान ने हयग्रीव को मारकर उससे वेद छीन लिए। भगवान ने ब्रह्माजी को पुनः वेद दे दिए। इस प्रकार भगवान ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों का उद्धार तो किया ही, साथ ही संसार के प्राणियों का भी अमित कल्याण किया। भगवान इसी प्रकार समय-समय पर अवतरित होते हैं और सज्जनों तथा साधुओं का कल्याण करते हैं।
ماه قبل در تاریخ 1403/03/31 منتشر شده است.
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