भोजन के प्रति ऐसी अरुचि की मिसाल ना आपको कही मिली है और ना कही मिलेगी

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5.5 هزار بار بازدید - 4 سال پیش - #महाकस्सप_संघ_के_पिता #गौतम_बुद्ध_के_शिष्य_महाकश्यप_कौन_थे_?
#महाकस्सप_संघ_के_पिता #गौतम_बुद्ध_के_शिष्य_महाकश्यप_कौन_थे_? #Ten_disciples_of_Buddha #जानिए_क्या_हुआ_जब_कोढी_की_उंगली_महाकश्यप_के_भिक्खापात्र_में_गिरी #भोजन_के_प्रति_अरुचि_का_इससे_उत्कृष्ट_उदाहरण_ना_आज_तक_हुआ_हैं_ना_आगे_होगा सारनाथ (वाराणसी के समीप) वह स्थान है, जहां भगवान बुद्धदेव ने 5 भिक्षुओं के सामने धम्मचक्कपवनत्तनसुत (प्रथम उपदेश) दिया। इसके बाद आनंद, अनिरुद्ध, महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, उपाली, अंगुलिमाल, मिलिंद (यूनानी सम्राट), सम्राट अशोक, ह्वेन त्सांग, फा श्येन, ई जिंग, हे चो आदि ने भारत और भारत के बाहर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया। उनमें से महाकाश्यप का बड़ा सम्मान है। महाकश्यप कपिल नाम के ब्राह्मण और उनकी पत्नी सुमनदेवी के पुत्र के रूप में मगध के महातीर्थ या महापिटठा नामक गांव में पैदा हुए थे। वे धनवान और प्रतिष्ठित माता पिता के संतान थे। अपने माता पिता कि मृत्यु के बाद कुछ समय तक उन्होंने अपनी पत्नी के साथ अपने माता-पिता के धन-दौलत को सम्भाला, लेकिन कुछ समय बाद उन दोनों ने भिक्षु बनने का फैसला लिया। उन्होंने अपनी संपूर्ण दौलत भगवान बुद्द के चरणों में रखकर भिक्षुक बनना स्वीकार किया। भगवान बुद्ध की मृत्यु के छह माह बाद बौद्ध संघ की जो पहली संगीति सप्तपर्णि गुहा में आयोजित की गई थी, उसके सभापति के रूप में महाकश्यप को ही चुना गया था। उन्हें बौद्ध धर्म की जेन शाखा का पहला प्रधान भी माना जाता है। महाकश्यप बुद्ध के एकमात्र ऐसे छात्र थे, जिनके साथ भगवान बुद्ध ने वस्त्रों का आदान-प्रदान किया था। भगवान बुद्ध ने महाकश्यप को अपने बराबर का दर्जा दिया था। हाकश्यप भगवान बुद्ध के तीन शिष्य सारिपुत्र, मोंगलियान में एक है। महाकश्यप ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे बुद्ध विरासत की अहम कड़ी है। बिहारशरीफ जिला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिलाव गांव में 1934 में खुदाई के दौरान उनकी महत्वपूर्ण मूर्ति पायी गई थी। माना जाता है कि यही वह स्थान है जहां महाकश्यप और बुद्ध के बीच मुलाकात हुई थी। गौतम बुद्ध के पास जब पहली दफा महाकश्यप गए थे, तब वे महापंठित थे और सभी शास्त्रों के जानकार थे। ऐसे में भगवान बुद्ध से उन्होंने कहा कि मैं कुछ जिज्ञासाएं लेकर आया हूं। बुद्ध ने कहा, कि जिज्ञासाएं तुम्हारे ज्ञान से उठती है या अज्ञान से? तुम इसलिए पूछते हो कि कुछ जानते हो, या इसलिए पूछते हो कि कुछ नहीं जानते? महाकश्यप ने कहा, इससे आपको क्या प्रयोजन? बुद्ध ने कहा, इससे मुझे प्रयोजन है, क्योंकि तुम किस भाव से पूछते हो, भाव मेरे ध्यान में न हो तो मेरे उतर का कोई अर्थ न होगा। अगर तुम जानकर ही पूछने आए हो, तो व्यर्थ समय को व्यय मत करो। तुम जानते ही हो, बात समाप्त हो गयी। अगर तुम न जानते हुए आए हो, तो मैं तुमसे कुछ कहूं। महाकश्यप ने कहा कि मेरी स्थिति थोड़ी बीच-बीच की है। थोड़ा जानता भी हूं, थोड़ा नहीं भी जानता हूं। तो बुद्ध ने कहा कि उसमें हिस्से कर लो। जो तुम नहीं जानते हो पूरा, उस संबंध में ही हम चर्चा शुरू करें। जो तुम जानते हो, उसे छोड़े। महाकश्यप ने जो नहीं जानता था पूछना शुरू किया और धीरे-धीरे, जैसे-जैसे पूछता गया, उसे पता चलता गया कि जो वह जानता है, वह भी नहीं जानता है। एक वर्ष निरंतर बुद्ध के पास रहकर उन्होंने बहुत कुछ जिज्ञासाएं की, उनकी सब जिज्ञासाएं शांत हो गयी। तब बुद्ध ने उनसे कहा कि अब मैं तुम्हारे संबंध में थोड़ा जानना चाहता हूं, जो तुम जानते हो। महाकश्यप ने कहा, मैं कुछ भी नहीं जानता था। जैसे-जैसे मुझे पता चला, वैसे-वैसे मेरा जानना बिखरता गया। मैं कुछ भी नहीं जनता। महाकाश्यप बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। भगवान बुद्ध की मृत्यु के बाद बौद्ध संघ की प्रथम बौद्ध संगीति के लिए सभापति के रूप में महाकाश्यप को चुना गया था। उन्हे बौद्ध धर्म के झेन समुदाय का पहला प्रधान भी माना जाता है। वे बुद्ध के एकमात्र ऐसे शिष्य थे जिनके साथ भगवान बुद्ध ने वस्त्रों का आदान-प्रदान किया था। बुद्ध ने बहुत बार महाकाश्यप की बड़ाई भी की थी और महाकाश्यप को अपने बराबर का स्थान दिया था। Here only a selection of the stanzas is given, which may be read in full in the translations by C.A.F. Rhys Davids and K.R. Norman. An exhortation to the monks to practice contentment with regard to the four basic requisites of a monk's life. Down from my mountain-lodge I came one day And made my round for alms about the streets. A leper there I saw eating his meal And courteously I halted at his side. (1054) He with his hand all leprous and diseased Put in my bowl a morsel; as he threw, A finger broke off and fell into my food. (1055) At a wall nearby I ate my share, Not at the time nor after felt disgust. (1056) For only he who takes as they come The scraps of food, cow's urine for medicine, Lodging beneath a tree, the patchwork robe, Truly is a man contented everywhere. (1057) #kassapa_buddha #Buddha_and_his_disciples_stories #Buddha_stories #Buddha_Dhammapada #Buddhism_in_Hindi #Buddhism_Literature #Buddha_Motivational_speech #Buddha_inspirational_quotes #Buddha_positive_attitude #Buddha_New_Life #Buddha_Motivational_quotes #Buddha_Positive_quotes #Buddha_Best_quotes #Buddha_Success_quotes #Buddha_Good_quotes #Buddha_Positive_life_quote #Buddha_Meditation #Buddha_Hindi_stories #Buddhist_literature_tripitaka #Essential_Buddhist_texts #Buddhism #Buddhist_sutras #Buddhist_literature_in_Hindi Contact information : [email protected] www.tathagat.tv/
4 سال پیش در تاریخ 1399/06/08 منتشر شده است.
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