जानिए कहाँ से तृष्णा उत्पन्न होती है / CRAVING (Taṇhā Pali) IN THERAVADA BUDDHISM / Samyutta Nikaya

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6 هزار بار بازدید - 4 سال پیش - नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धो
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धो (महासतिपट्ठानसुत्त, दीघनिकाय, सुत्तपिटक)
दुःखसमुदय(दुःख का कारण) आर्यसत्य
"भिक्षुओं! यह 'दुःख-समुदय आर्यसत्य' क्या है?
वह जो रागयुक्त नन्दी(मनोविनोद), उन-उन वस्तुओं में अभिनन्दन करने वाली, पुनर्जन्म लेने की इच्छा जो कि तृष्णा कहलाती है। यह तृष्णा तीन प्रकार की होती है ; जैसे– १.कामतृष्णा(कामभोगों की इच्छा), २. भवतृष्णा(जन्म लेने की इच्छा), ३. विभवतृष्णा(ऐश्वर्य- प्राप्ति की इच्छा)।" "भिक्षुओं! यह तृष्णा उत्पन्न होना चाहती हुई कहाँ उत्पन्न होती है, स्थित होना चाहती हुई कहाँ स्थित होती है? भिक्षुओं! लोक में मनुष्य का जो प्रिय एवं अनुकूल विषय है, वहीं यह तृष्णा उत्पन्न होना चाहने पर उत्पन्न होती है, स्थित होना चाहते हुए स्थित (अभिनिविष्ट) होती है।" "और लोक में प्रिय एवं अनुकूल विषय क्या हैं? चक्षु लोक में प्रिय एवं अनुकूल है, यहाँ यह तृष्णा उत्पन्न होना चाहती हुई उत्पन्न होती है-। श्रोत्र--घ्राण-जिह्वा--काय-मन लोक में प्रिय एवं अनुकूल-यहाँ यह तृष्णा-।" "लोक में चक्षु इन्द्रिय का विषय रूप प्रिय और अनुकूल है, शब्द--गन्ध--रस--स्प्रष्टव्य--धर्म--होती है।" "चक्षुर्विज्ञान लोक में-श्रोत्रविज्ञान--घ्राणविज्ञान--जिह्वाविज्ञान--कायविज्ञान--मनोविज्ञान प्रिय एवं अनुकूल विषय हैं। यहाँ यह तृष्णा-होती है।" "लोक में चक्षुसंस्पर्श--श्रोत्रसंस्पर्श--घ्राणसंस्पर्श--जिह्वासंस्पर्श--कायसंस्पर्श--मनःसंस्पर्श लोक में प्रिय एवं अनुकूल विषय हैं। यहाँ यह तृष्णा उत्पन्न होना चाहती हुई--स्थित होती है।" "लोक में चक्षुसंस्पर्शजन्य वेदना (अनुभव)--श्रोत्रसंस्पर्शजन्य वेदना--घ्राणसंस्पर्शजन्य वेदना--जिह्वासंस्पर्शजन्य वेदना--कायसंस्पर्शजन्य वेदना--मनः संस्पर्शजन्य वेदना--प्रिय एवं अनुकूल विषय है। यहाँ यह तृष्णा--स्थित होती है।" "लोक में रूपसंज्ञा-शब्दसंज्ञा-गन्धसंज्ञा-रससंज्ञा-स्प्रष्टव्यसंज्ञा--धर्मसंज्ञा प्रिय एवं अनुकूल विषय हैं। यहाँ यह तृष्णा-स्थित होती है।" "लोक में रूप सञ्चेतना-शब्द सञ्चेतना--गन्धसञ्चेतना--रससञ्चेतना--स्प्रष्टव्य सञ्चेतना-धर्मसञ्चेतना प्रिय एवं अनुकूल विषय है। यहाँ यह तृष्णा-स्थित होती है।" "लोक में रूपतृष्णा-शब्दतृष्णा--गन्धतृष्णा--रसतृष्णा-स्प्रष्टव्यतृष्णा--धर्मतृष्णा प्रिय एवं अनुकूल विषय है। यहाँ यह तृष्णा-स्थित होती है।" "लोक में रूपवितर्क--शब्दवितर्क--गन्धवितर्क--रसवितर्क-स्प्रष्टव्यवितर्क-धर्मवितर्क प्रिय एवं अनुकूल विषय हैं। यहाँ यह तृष्णा-स्थित होती है।" "लोक में रूपविचार-शब्दविचार --गन्धविचार--रसविचार--स्प्रष्टव्यविचार-धर्मविचार प्रिय एवं अनुकूल विषय हैं। यहाँ उत्पन्न होना चाहती हुई यह तृष्णा उत्पन्न होती है और स्थित(अभिनिविष्ट) होना चाहती हुई अभिनिविष्ट होती है। भिक्षुओं! यह कहलाता है– दुःखसमुदय आर्यसत्य।"

बौद्ध धर्म में 108 प्रकार की तृष्णा का जिक्र
बौद्ध धर्म में 108 प्रकार की तृष्णा का जिक्र है। संसार में दुख की वजह तृष्णा का बलवती होना है। लोक कल्याण के लिए बुद्ध ने शील, प्रज्ञा और समाधि की राह बताई। गृहस्थों के लिए पंचशील बताया, जिसमें जीव हिंसा, चोरी, कामवासना, असत्य भाषण और शराब से बचने का संदेश है। गृहस्थों के लिए बुद्ध ने आय को 4 हिस्सों में बांटा है। एक भाग, अपने और परिवार के लिए, दूसरा भविष्य की जरूरतों के लिए, तीसरा उद्योग व्यवसाय और चौथा है दान।

तण्हा-- तृष्णा

(प्रतीत्य समुत्पाद की आठवीं कडी)
वेदना पच्चया तण्हा।

वेदना के कारण (प्रत्यय)  से तृष्णा।

तथागत बुद्ध ने कहा -

यायं तण्हा पोनोभविका नन्दिरागसहगता तत्रतत्राभिनन्दिनी, सेय्याथीदं - कामतण्हा, भवतण्हा, विभवतण्हा - यो जो तृष्णा हैं - फिर जन्म ने की, नन्दिराग सहित जहां तहां प्रसन्न होने वाली, जैसे कि काम तृष्णा, भव तृष्णा, विभव तण्हा।
वेदना के कारण तृष्णा उत्पन्न होती हैं।

भिक्खुओ को संबोधित करते हुए घम्म सेनापति सारिपुत्त ने कहा -
जब आवुस ! आर्य श्रावक तृष्णा को जानता हैं, तृष्णा के समुदय (कारण) को जानता हैं, तृष्णा के निरोघ को जानता हैं तब वह तृष्णा का मुलोच्छेद करने के लिए प्रयत्न करता हैं।
आवुस! तृष्णा के यह छः आकार हैं - रुप तृष्णा, शब्द तृष्णा, गंध तृष्णा, रस तृष्णा, स्प्रष्टव्य तृष्णा, धम्म तृष्णा ।

वैसे मुख्यतः काम तृष्णा भव तृष्णा, विभव तृष्णा - ये तीन ही हैं।
इसके पहले के छःसे गुणा करने से अठारह तृष्णाएं (3 ×6=18) हो जाती हैं।
इसको आध्यात्मिक एवं बाह्य इन दो सन्तानों से गुणा करने से तृष्णाओं की संख्या 3 6 (18×2 =3 6) हो जाती हैं।
इसको भी तीन कालों से गुणा करने से यह संख्या 108 (36×3 =108)हो जाती हैं।

नमो बुद्धाय

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4 سال پیش در تاریخ 1399/03/17 منتشر شده است.
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