भगवान बुद्ध के 32 लक्षण क्या थे, आचार्य दिनेश मेश्राम से समझिये Palmistry Auspicious Sign of Buddha

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9.1 هزار بار بازدید - 3 سال پیش - बत्तीस महापुरुष लक्षण ये हैं
बत्तीस महापुरुष लक्षण ये हैं : -
(१) (सुप्रतिष्ठित पाद) पांव के तलवे समतल होते हैं। उनमें खड्डे नहीं होते और इस कारण पांव जमीन पर समतल पड़ते हैं।
(२) (चक्र वरंकित) - पैरों के दोनों तलवों में चक्र अंकित होते हैं, जो नाभि, नेमि तथा सहस्त्र आरों से सर्वाकार परिपूर्ण होते हैं।
(३) (आयत-पाष्णि) - पांव की एड़ियां सामान्य जन की एड़ियों की तुलना में अधिक लंबी और चौड़ी होती हैं।
(४) दीर्घ अंगुल) हाथों और पांवों की अँगुलियां लंबी होती हैं।
(५) (मृदु तरुण हस्त-पाद) - हाथ और पांव रूखे और कड़े नहीं बल्कि मृदुल और तरुण होते हैं।
(६) (जाल हस्त-पाद) हाथ और पांव की अँगुलियों के बीच थोड़ी सी दूर में ऐसी जालनुमा त्वचा होती है, जैसी हंस, बतख आदि के पंजों में होती है, जिससे दो अँगुलियों के बीच कोई विवर नहीं रहता।
(७) (उस्संख पाद) - पांव के टखने यानी गुल्फ सामान्य जन के टखनों की तुलना में जरा ऊपर की ओर स्थित होते हैं।
(८) (एणी जंघ) - एणी जाति के मृग की सी सुंदर जांघें होती हैं।
(९) (आजानुबाहु) - इतनी लंबी भुजाएं कि सीधे खड़े होने पर जरा भी झुके बिना हथेलियों से अपने घुटनों को थपथपा सकें, मसल सकें, यानी घुटनों तक कि लंबी भुजाएं होती हैं।
(१०) (कोषाच्छादित वस्तिगुह्य) - पुरुषेन्द्रीय त्वचा-कोष में गुप्त, गुंफित रहता है।
(११) (सुवर्ण-वर्ण) - त्वचा कंचनवर्णी होती है।
(१२) (सूक्ष्म-छवि) - शरीर की चमड़ी पर एक सूक्ष्म त्वचा मढ़ी होती है, जिस पर धूल आदि नहीं सटती।
(१३) (एकैक लोम) - प्रत्येक (रोम) लोम-कूप में एक-एक लोम होता है।
(१४) ऊर्ध्वांग लोम) - सभी लोम बाएं से दाहिनी ओर कुंडलित होते हैं और उनके सिरे ऊपर की ओर स्थित होते हैं।
(१५) (ब्राह्मऋजु-गात्र) - शरीर लंबा और सीधा होता है जिसके कारण लोग उन्हें ब्रह्म उजु कहते हैं।
(१६) (सप्त उत्सद) - दोनों हाथ, दोनों पांव सामने और पीछे की धड़ और चेहरे सहित मस्तिष्क- शरीर के ये सातों अंग विशाल और पूर्ण आकार वाले होते हैं।
(१७) (सिंह-पूर्वार्द्ध-काय) - छाती सहित काया का ऊपरी भाग सिंह का सा होता है।
(१८) (चितांतरांस) - दोनों कंधों के बीच का भाग भरा-पूरा होता है।
(१९) (न्यग्रोध परिमंडल) - न्यग्रोध वृक्ष जितना ऊंचाई में बढ़ता है, ठीक उतना ही चौड़ाई में फैलता है। इसी प्रकार खड़े होकर दोनों लंबे हाथों को दोनों ओर फैला देने से जितना व्याम यानी शरीर की चौड़ाई का माप बनता है, उतना ही सिर से पांव तक की ऊंचाई का माप होता है।
(२०) (समवर्त स्कंध) - समान गोलाकार कंधे होते हैं।
(२१) (रस रसाग्रि) - समस्त रसों का पूर्णतः आस्वादन करने वाली जीभ तथा उससे जुड़ी हुई गले तक उभरी हुई एक नस होती है।
(२२) (सिंह हनु) - सिंह की सी सुंदर, चौड़ी ठोड़ी होती है।
(२३) (चत्तालीस दंत) - चालीस दांतों से भरा-पूरा भव्य चेहरा होता है।
(२४) (समदन्त) - दांत आगे-पीछे न होकर समान पंक्तिबद्ध होते हैं।
(२५) (अविवर दंत) - दांतों के बीच विवर अर्थात छेद नहीं होते हैं।
(२६) (सुशुक्ल दाढ़) - दाढ़ (दांत) अत्यंत शुक्ल होते हैं।
(२७) (प्रभूत जिव्हा) - बहुत लंबी जीभ होती है।
(२८) (ब्रम्ह स्वर) - करविंक पक्षी (कोयल) के स्वर के समान निन्नादि ब्रम्ह-स्वर होता है।
(२९) (अभिनील नेत्र) - अलसी के फूल जैसी सुंदर नीली आंखें होती हैं।
(३०) ( गो-पक्ष्म) - गाय की सी बड़ी-बड़ी सुंदर बरौनियां (पलकों के बाल) होती हैं।
(३१) (श्वेत ऊर्णा) - दोनों भौहों के बीच श्वेत, कोमल, रुई सदृश वर्तुलाकार रोमावली होती है।
(३२) (ऊष्णीष शीर्ष) - सिर के ऊपर बीचोबीच उठा हुआ एक उपशीष होता है, मानो सिर पर एक जटामुकुटनुमा पगड़ी बंधी हो। इस एक चिह्न के कारण आज भी कोई बुद्ध मूर्ति अन्य ध्यानावस्थित मूर्तियों से स्पष्टतया भिन्न दिखती है।
   इनमें से कुछ कुछ एक शरीर लक्षण स्पष्ट देखे जा सकते थे और अत्यंत भव्य तथा दर्शनीय होने के कारण किसी भी सामान्य व्यक्ति को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेते
3 سال پیش در تاریخ 1400/01/19 منتشر شده است.
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