ईश्वर कौन है ? इस पर तथागत बुद्ध ने क्या कहा..जानिए

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#क्या_ईश्वर_सत्याश्रित_है ?
इस संसार को किसने बनाया , यह एक सामान्य प्रशन है लेकिन इस दुनिया को ईश्वर ने बनाय यह वैसा ही सामन्य सा उत्तर है । इस सृष्टि रचयिता के कई नाम है , अलग –२ प्रांत और देशानुसार अलग-२ । यदि यह पूछा जाये कि तथागत ने ईश्वर को सृष्टि कर्ता के रुप में स्वीकार किया तो उत्तर है “ नही” बुद्ध ने कहा कि ईशवराश्रित धर्म कल्पनाश्रित है । इसलिये ऐसे धर्म का कोई उपयोग नही है । बुद्ध ने इस प्रशन को ऐसे ही नही छोड दिया । उन्होने इस प्रशन के नाना पहलूऒं पर विचार किया है ।
बुद्ध का तर्क था कि कि ईशवर का सिद्धान्त सत्याश्रित नही है । भगवान्‌ बुद्ध ने वासेठ्ठ और भारद्धाज के साथ हुई बातचीत मे स्पष्ट किया है ।
वासेठ्ठ और भारद्धाज के साथ भगवान्‌ बुद्ध के संवाद :
तथागत का चौथा तर्क था कि “ यदि ईश्वर कल्याण-स्वरुप है तो आदमी हत्यारे , चोर, व्यभिचारी , झूठे , चुगलखोर, लोभी , द्धेषी , बकवादी और कुमार्गी क्यों हो जाते हैं ? क्या किसी अच्छॆ , भले ईश्वर के रहते यह संभव है ? ”
तथागत का पाँचवां तर्क ईश्वर के सर्वज्ञ , न्यायी , और दयालु होने से संम्बधित था ।
“ यदि कोई ऐसा महान्‌ सृष्टि-कर्ता है जो न्यायी भी है और दयालु भी है , तो संसार मे इतना अन्याय क्यों हो रहा है ?” भगवान्‌ बुद्ध का प्रश्न था । उन्होनें कहा – “ जिसके पास भी आंख है वह इस दर्दनाक हालत को देख सकता है । ब्रह्मा अपनी रचना सुधारता क्यों नही है ? यदि उसकी शक्ति इतनी असीम है कि उसे कोई रोकने वाला नही तो उसके हाथ ही ऐसे क्यों हैं कि शायद वह किसी का कल्याण करते हो ?उसकी सारी की सारी सृष्टि दु:ख क्यों भोग रही है ? वह सभी को सुखी क्यों नही रखता है ? चारों ओर ठ्गी , झूठ , और अज्ञान क्यों फ़ैला हुआ है ? सत्य पर झूठ क्यों बाजी मार ले जाता है ? सत्य और नयाय क्यों पराजित हो जाते है? मै तुम्हारे ब्रह्मा को परं-अन्यायी मानता हूँ जिसने केवल अन्याय देने के लिये इस जगत की रचना की है । “
“ यदि सभी प्राणियों में कोई ऐसा सर्वशक्तिमान ईश्वर व्याप्त है जो उन्हें सुखी और दुखी बनाता है और जो उनसे पाप पुण्य कराता है तो ऐसा ईश्वर भी पाप से सनता है । या तो आदमी ईश्वर की आज्ञा में नही है या ईश्वर नेक और न्यायी नही है अथवा ईश्वर अन्धा है ।”
ईश्वर के अस्तित्व के सिद्धान्त के विरुद्ध उनक अगला तर्क यह था कि ईश्वर की चर्चा से कोई प्रयोजन सिद्ध नही होता । भग्वान्‌ बुद्ध के अनुसार धर्म की धुरि ईश्वर और आदमी का सम्बन्ध नही है बल्कि आदमी का आदमी के साथ संम्बन्ध है । धर्म का प्रयोजन यही है कि वह आदमी को शिक्षा दे कि वह दूसरे आदमी के साथ कैसे व्यवहार करे ताकि सभी आदमी प्रसन्न रह सकें ।
तथागत की दृष्टि में ईश्वर विश्वास सम्यक्‌ दृष्टि के मार्ग मे अवरोधक है । यही कारण था कि वह रीति रिवाजों , प्रार्थना और पूजा के आडंबरों के सख्त खिलाफ़ थे । तथागत का मानना था कि प्रार्थना कराने की जरुरत ने ही पादरी पुरोहित को जन्म दिया और पुरोहित ही वह शरारती दिमाग था जिसने इतने अन्धविशवास को जन्म दिया और सम्यक दृष्टि के मार्ग को अवरुद्ध किया ।
तथागत का ईश्वर अस्तित्व के विरुद्ध आखिरी तर्क प्रतीत्य-समुत्पाद के अन्तर्गत आता है । इस सिद्धान्त के अनुसार ईश्वर का अस्तित्व है या नही , यह मुख्य प्रश्न नही है और न ही की ईश्वर ने सृष्टि की रचना की है या नही ? असल प्रश्न है कि ईश्वर ने सृष्टि किस प्रकार रची ? प्रशन महत्वपूर्ण यह है कि ईश्वर ने सृष्टि भाव ( =किसी पदार्थ ) में से उत्पन्न की या अभाव ( = शून्य ) में से ?
यह तो एक्दम विशवास नही किया जा सकता कि ‘ कुछ नही ‘ में से कुछ की रचना हो गई । यदि ईश्वर ने सृष्टि की रचना कुछ से की है तो वह कुछ – जिस में से नया कुछ उत्पन्न किया गया है – ईश्वर के किसी भी अन्य चीज के उत्पन्न करने के पहले से ही चला आया है । इसलिये ईश्वर को उस कुछ का रचयिता नही स्वीकार किया जा सकता क्योंकि वह कुछ पहले से ही अस्तित्व मे चला आ रहा है ।
यदि ईश्वर के किसी भी चीज की रचना करने से पहले ही किसी ने कुछ में से उस चीज की रचना कर दी है जिससे ईश्वर ने सृष्टि की रचना की है तो ईश्वर सृष्टि का आदि-कारण नही कहला सकता ।
भगवान्‌ बुद्ध का यह आखिरी तर्क ऐसा था कि जो ईश्वर विश्वास के लिये सर्वथा मारक था और जिसका वासेठ्‌ और भारद्धाज के पास कोई जबाब नही था ।
( संकलन : पृष्ठ संख्या १९४-१९९ , भगवान्‌ बुद्ध और उनका धर्म , लेखक डां भीमराव रामजी अम्बेड्कर , अनुवादक :डां भदन्त आनन्द कौसल्लायन )

Track Info: Music Title: Passing Time by Kevin MacLeod
Genre and Mood: Ambient + Sad
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Music: Passing Time - Kevin MacLeod Passing Time – Kevin MacLeod (No Copy...

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5 سال پیش در تاریخ 1398/06/05 منتشر شده است.
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