Bhavani ashtakam in hindi - भवानी अष्टकम हिंदी में | bhavanyastakam | Mantra Sarovar |Bhaskar Pandit

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18.4 هزار بار بازدید - 2 سال پیش - Bhavani ashtakam in hindi -
Bhavani ashtakam in hindi - भवानी अष्टकम हिंदी में | bhavanyastakam | Mantra Sarovar |Bhaskar Pandit
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आप इस अष्टकम की महिमा इस कथा के द्वारा समझ सकते हैं -

माँ भगवती को समर्पित यह अत्यन्य ही सुन्दर रचना है । यह दिव्य स्तोत्र साधक के मन में माँ भवानी के चरणों के प्रति भक्ति और प्रेम का संचार करने वाला है भवानी अष्टकम की रचना जगत गुरु आदि शंकराचार्य जी ने की है।
आदि गुरु शंकराचार्य भगवान शिव के परम भक्त थे उन्होंने भगवान शिव की स्तुति में अनेक श्लोकों और स्तोत्रों की रचना की , परन्तु जगतजननी माँ भगवती दुर्गा की श्लोकों और स्तोत्रों के द्वारा स्तुति कभी नहीं की
भवानी अष्टकम की रचना के पीछे की प्रचलित  कथा के अनुसार
एक समय की बात है जगत गुरु आदि शंकराचार्य बीमार पड़ गए आत्याधिक पीड़ा और शरीर के कमज़ोर पड़ जाने के कारण वह स्वयं जल ग्रहण करने में सर्वथा असमर्थ हो गए
आदि शंकर पर कुछ क्रोधित परन्तु साथ ही साथ जगत की माता होने के कारण मन में दया का भाव लिए आदि शंकराचार्य की परीक्षा लेने हेतु उसी समय माता महामाया कष्ट निवारणी माँ भगवती प्रकट हुईं

माता को आपने समक्ष देख जब शंकराचार्य जी ने माता से पूछा कि वह उनके इस कष्ट का निवारण क्यों नहीं कर रहीं हैं
आदि शंकराचार्य को इस प्रकार कष्ट में देखकर करुणा के वशीभूत होने पर भी माता भवानी ने उनसे प्रश्न किया की तुम तो केवल भगवान शिव  की ही आराधना करते हो और केवल उन्ही के स्तोत्रों की रचना करते हो ? कहाँ हैं भगवान भोलेनाथ वह तुम्हारे कष्ट का निवारण क्यों नहीं करते
पुत्र के कष्ट में होने पर सर्व प्रथम माता ही उसका सहारा होती है
माता के इन वचनों को सुनकर आदि शंकराचार्य को बहुत अपराध बोध हुआ और उन्होंने माँ दुर्गा भवानी की स्तुति में इस परम कलयाणकारी स्तोत्र की रचना की और इससे प्रसन्न हो माँ ने उनके सभी कष्टों का निवारण कर दिया
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न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥1॥

भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥2॥

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥3॥

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥4॥

कुकर्मी कुसंगी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥5॥

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥6॥

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥7॥

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥8॥

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॥1॥
इसका अर्थ :- हे भवानि! पिता माता भाई दाता पुत्र पुत्री भृत्य स्वामी स्त्री विद्या और वृत्ति–इनमें से कोई भी मेरा नहीं है, हे देवि! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो।


॥2॥
इसका अर्थ :- मैं अपार भवसागर में पड़ा हूँ महान दु:खों से भयभीत हूँ कामी लोभी मतवाला तथा घृणायोग्य संसार के बन्धनों में बँधा हुआ हूँ, हे भवानि! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

॥3॥
इसका अर्थ :- हे देवि!मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ध्यानमार्ग का ही मुझे पता है,तन्त्र और स्तोत्र-मन्त्रों का भी मुझे ज्ञान नहीं है, पूजा तथा न्यास आदि की क्रियाओं से तो मैं एकदम कोरा हूँ,
अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।


॥4॥
इसका अर्थ :- न पुण्य जानता हूँ न तीर्थ न मुक्ति का पता है न लय का। हे माता!भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञात नहीं है, हे भवानि! अब केवल तुम्हीं मेरा सहारा हो।

॥5॥
इसका अर्थ :- मैं कुकर्मी, बुरी संगति में रहने वाला,दुर्बुद्धि,दुष्टदास,कुलोचित सदाचार से हीन,दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि रखने वाला और सदा दुर्वचन बोलने वाला हूँ,हे भवानि! मुझ अधम की एकमात्र तुम्हीं गति हो।


॥6॥
इसका अर्थ :- मैं ब्रह्मा विष्णु शिव इन्द्र सूर्य चन्द्रमा तथा अन्य किसी भी देवता को नहीं जानता हे शरण देने वाली भवानि!एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

॥7॥
इसका अर्थ :- हे शरण्ये!तुम विवाद विषाद प्रमाद परदेश जल अनल पर्वत वन तथा शत्रुओं के मध्य में सदा ही मेरी रक्षा करो,हे भवानि!एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

॥8॥
इसका अर्थ:- हे भवानि!मैं सदा से ही अनाथ,दरिद्र जरा-जीर्ण रोगी अत्यन्त दुर्बल दीन गूंगा विपदा से ग्रस्त और नष्ट हूँ,अब तुम्हीं एकमात्र मेरी गति हो।

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स्वर - भास्कर पंडित
Voice By - Bhaskar Pandit  

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"लगाइये आस्था की डुबकी "
~ मंत्र सरोवर ~
@MantraSarovar  
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2 سال پیش در تاریخ 1401/10/16 منتشر شده است.
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