जीवन का एक गहरा रहस्य / जिसने समझ लिया वही सही से जी पाया। @AnandDhara

Anand Dhara आनंद धारा
Anand Dhara आनंद धारा
11.5 هزار بار بازدید - 2 سال پیش - महान ग्रंथ महाभारत से एक
महान ग्रंथ महाभारत से एक बहुत चर्चित प्रकरण है ।

संक्षेप में उसका विवरण यूं है: पांडवजन अपने तेरह-वर्षीय वनवास पर वनों में विचरण कर रहे थे । तब उन्हें एक बार प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश हुई । पानी का प्रबंध करने का जिम्मा प्रथमतः सहदेव को सोंपा गया । उसे पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वह वहां पहुंचा । जलाशय के स्वामी अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी के द्वारा उसे रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी, जिसकी सहदेव ने अवहेलना कर दी । यक्ष ने उसे निर्जीव (संज्ञाशून्य?) कर दिया । उसके न लौट पाने पर बारी-बारी से क्रमशः नकुल, अर्जुन एवं भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई । वे उसी जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण सभी का वही हस्र हुआ । अंत में युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे । यक्ष ने उन्हें आगाह किया और अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा । युधिष्ठिर ने धैर्य दिखाया, यक्ष को संतुष्ट किया, और जल-प्राप्ति के साथ यक्ष के वरदान से भाइयों का जीवन भी वापस पाया । यक्ष ने अंत में यह भी उन्हें बता दिया कि वे धर्मराज हैं और उनकी परीक्षा लेना चाहते थे ।

उस समय संपन्न यक्ष-युधिष्ठिर संवाद वस्तुतः काफी लंबा है ।
संवाद का विस्तृत वर्णन वनपर्व के अध्याय ३१२ एवं ३१३ में दिया गया है ।
यक्ष ने सवालों की झड़ी लगाकर युधिष्ठिर की परीक्षा ली ।
अनेकों प्रकार के प्रश्न उनके सामने रखे और उत्तरों से संतुष्ट हुए । अंत में यक्ष ने चार प्रश्न युधिष्ठिर के समक्ष रखे जिनका उत्तर देने के बाद ही वे पानी पी सकते थे

उन्हीं प्रश्नों में से एक प्रश्न है...

किमाश्चर्यम्..? आश्चर्य क्या है

युधिष्ठिर उत्तर देते हैं

अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम् ।
शेषाः स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्।।१६।।
सरल संस्कृत....
(इह अहनि अहनि भूतानि यम-आलयम् गच्छन्ति, शेषाः स्थावरम् इच्छन्ति, अतः परम् आश्चर्यम् किम् ।)

यहां इस लोक से जीवधारी प्रतिदिन यमलोक को प्रस्थान करते हैं, यानी एक-एक कर सभी की मृत्यु देखी जाती है । फिर भी जो यहां बचे रह जाते हैं वे सदा के लिए यहीं टिके रहने की आशा करते हैं । इससे बड़ा आश्चर्य भला क्या हो सकता है ?

तात्पर्य यह है कि जिसका भी जन्म हुआ है उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है और उस मृत्यु के साक्षात्कार के लिए सभी को प्रस्तुत रहना चाहिए । किंतु हर व्यक्ति इस प्रकार जीवन-व्यापार में खोया रहता है जैसे कि उसे मृत्यु अपना ग्रास नहीं बनाएगी ।

सामान्य व्यक्तियों को भले ही यह एक छोटी सी बात लगे
लेकिन जो जीवन को गहराई से सोचने वाले व्यक्ति हैं
या फिर जीवन जीने की कला को सीखने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति हैं
उनके लिए यह जीवन का महत्वपूर्ण सूत्र है।

हरिॐ
हरे कृष्ण

महंत आनंद स्वामी
कृष्ण मंदिर गीता धाम

‪@AnandDhara‬

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2 سال پیش در تاریخ 1401/05/22 منتشر شده است.
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