क़ौमी यकजहती का अलमबरदार "बइयतउलयाल" राजा झाऊलाल का इमामबाड़ा | Raja Jhau Lal Ka Imambara | Lucknow |

Sunil Batta Films
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2 هزار بار بازدید - 5 سال پیش - Channel- Sunil Batta Films
Channel- Sunil Batta Films
                 Documentary- "Bait-ul-Maal" Hindu Raja Jhau Lal Ka Imambara , Lucknow
Produced & Directed by Sunil Batta, Voice- Navneet Mishra, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Production- Dhruv Prakesh, Camera Asst.- Runak Pal, Kuldeep Shukla,

Synopsis of the Film-
                                                     ‘‘बइयतउलयाल" इमाम बाड़ा राजा झाऊ लाल
                         हिन्दुस्तान में हिन्दु मुस्लिम एकता का जैसा शानदार नमूना लखनऊ की नवाबी में मिलता है, शायद कहीं नहीं मिलेगा। यह अस्सी बरस का दौर लखनऊ की सरज़मीं पर गुज़रा और सिर्फ यहीं तख्ते सल्तनत ऐसा हुआ है, जिसके पाए पर साम्प्रदायिक दंगे का खून नहीं लगा है।
                        ईरानी नस्ल के नवाबों ने हिन्दू संस्कृति और अपनी हिन्दुस्तानी जनता की भावनाओं का सम्मान करके उनके दिलों के दरवाजे खोल दिये थे और इसका जवाब उन्हें अवाम की तरफ से भी बराबर मिला। इस आपसी मेलमिलाप से ही उस गंगा-जमुनी तहज़ीब की बुनियाद पड़ी, जिसे आज लखनवी तहज़ीब कहते हैं।
राजा टिकैतराय अपनी मज़हब के मुरीद इन्सान थे उन्होंने तमाम मन्दिरों के साथ-साथ मस्जिदें भी बनवाईं थीं।  उस समय हिन्दू मुसलमानों में आपसी इत्तेफाक इस कदर था कि तमाम हिन्दू ताजियादारी करते थे और मजलिसों में शिरकत करते थे तो नवाब रामलीला के जुलूस में देवताओं की आरती उतारते थे। राजा झाऊलाल ने ठाकुरगंज लखनऊ में  एक इमामबाड़ा बनवाया था जिसे ‘‘बइयतउलयाल’’ कहा जाता है
                     शहरे दिल्ली को अगर हिन्दुस्तान का दिल कहा जाता है तो शहर लखनऊ इस मुल्क के होंटों पर सजी हुई एक हसीन मुसकुराहट का नाम है। इस शहर को ख़ूबसूरत और तारीख़ी हैसियत का हामिल बनाने में नवाबीने अवध ने बहुत अहम किरदार अदा किया है। उन्हीं तारीख़ी अहमियत की इमारतों में नवाबीने अवध के दौरे हुकुमत में तामीर किए गये हसीनो जीमल इमाम बाड़े भी बड़ी अहमियत के हामिल हैं। उन्हीं इमामबाड़़ों में एक बहुत ही मशहूर मारूफ इमामबाड़ा राजा झाऊलाल का इमामबाड़ा भी है। यह गुज़रे वक़्त की मज़हबी एकता का सबूत हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि बाबा गोमती दास के मंन्दिर का ख़र्च नवाब आसिफुद्दौला ने उठाया था और शीआ बैतुलमाल को उनके ख़ास नायेब राजा झाऊलाल ने बनवाया था। इसी लिए शीआ बैतुलमाल को झाऊलाल का इमामबाड़ा भी कहा जाता है। अगर बाबा गोमती दास के मन्दिर का डीज़ाइन मुग़ल बारादरी जैसा और शाहजहानी मेहराबों से सजा है तो इमामबाड़ा बैतुलमाल जिसको राजा झाऊलाल का इमामबाड़ा भी कहते हैं उस की अंदरूनी बनावट राज़पूती कला पर मबनी है। जिन के दायें बायें दोनों जानिब चन्द्र कलाये और धनुष की तरह डिजा़इन बना हुआ है।
                     राजा झाऊलाल सकसेना काइस्त थे। नवाब आसिफद्दौला के ज़माने में वह असतबल शाही फैज़ाबाद में दारोग़ा थे। आसिफद्दौला ने राजा झाऊलाल को फैजाबाद़ से लखनऊ बुलवा लिया और पहले उनको तोप ख़ाने का दारोग़ा बनाया फिर मीर बख्शी तनख़्वाह तक़सीमी बना कर ख़लअत अता फरमायी अब उनको सफर के लिए हाथी और झालदार पालिकयां मिल गयी थीं। इन सब शानों शौकत की वजह से उनको राजा झाऊलाल कहा जाने लगा।
                   बैतुलमाल नाम का राजा झाऊलाल का इमाम बाड़ा आज भी नवाबी दौर की क़ौमी यकजहती का एक बेजोड़ नमूना है। 1936 ईस्वी के ज़लज़ले में इस मशहूर इमारत की छतें गिर गयी थीं, मगर अब अंजुमन रज़ाकाराने हुसैनी के ज़रीये उसकी तामीरात मुकम्मल हो चुकी है। राजा झाऊलाल अपनी जिन्दगी के आखि़री अय्याम में कुछ बेग़माते अवध को साथ लेकर करबाल की ज़ियारत के लिए इराक़ गये थे और वहीं उनका इंतिक़ाल हो गया।
                 इमाम बाड़े के सामने झाऊलाल की बनवायी हुई एक ख़ूबसूरत सी मस्जिद भी है। जो आजकल इम्ली वाली मस्जिद के नाम से मशहूर हैं। किसी ज़माने में यह मस्जिद इमामबाड़े के हाते में आती थी लेकिन बाद में दरमियान काकोरी रोड निकलने की वजह से सड़क के उस पार चली गयी।
               इस इमामबाड़े की तामीर में लखनऊ की गंगा जमुनी तहज़ीब को बड़ा दख़ल रहा है और यह इमामबाड़ा क़ौमी यकजहती का अलमबरदार भी है। लखनऊ के दीगर इमामबाड़ों की तरह इस इमामबाड़े की रौनक भी माहे मुहर्रम में देखने के लायक़ होती है। मुहर्रम की पहली तरीख़ तक मौलाना सैय्यद तक़ी रज़ा साहब का बयान मजलिसों में होता है यहां मजलिसों के अलावा मातम भी होता है। माहे सफर के पहले इतवार को क़रीब से अलम उठ कर यहां आते हैं। और इस में शहर की बहुत सी अंजुमन हिस्सा लेती हैं। दीगर प्रोग्रामों में हर इतवार की शाम को मजलिस होती है। ईदे ग़दीर की महफिल मुनअक़िद होती है और 8 मुहर्रम को खिचड़े का प्रोग्राम रहता है। इस इमामबाड़े में एक हाॅल मौलाना कलबे हुसैन हाल के नाम से मौसूम है। जिसका इफतिताह मौलाना सैय्यद मुहम्मद जाफर ने 15 अप्रैल 1994 ईस्वी को किया था। तामीर जदीद में सैय्यद फैय्याज़ हुसैन उर्फ छब्बन साहब मरहूम ने बहुत अहम किरदार अदा किया।



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5 سال پیش در تاریخ 1398/06/12 منتشر شده است.
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