नर हो न निराश करो मन को | nar ho na nirash karo man ko | मैथिली शरण गुप्त | कविता सन्देश

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20.7 هزار بار بازدید - 7 ماه پیش - नर हो न निराश करो
नर हो न निराश करो मन को | nar ho na nirash karo man ko | मैथिली शरण गुप्त | कविता सन्देश




महान कवि रामधारी सिंह दिनकर एक ऐसे  कवि जिनकी कविताएं हमारे जीवन को श्रेष्ठ दिशा प्रदान करती यदि हम उनकी कविताओं को सुनते, समझते एवम् अनुभव करते हुए स्वयं में सम्पूर्ण मानवता के प्रति एक न्याय संगत दृष्टिकोण का विकास कर सकें; तो यह हमारी एक श्रेष्ठ उपलब्धि होगी।

मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपने साठ वर्षीय काव्य साधना, कला में लगभग सत्तर कृतियों की रचना करके न केवल हिन्दी साहित्य की अपितु सम्पूर्ण भारतीय समाज की अमूल्य सेवा की है। उन्होंने अपने काव्य में एक ओर भारतीय राष्ट्रवाद, संस्कृति, समाज तथा राजनीति के विषय में नये प्रतिमानों को प्रतिष्ठित किया, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र के अंत:सम्बंधों के आधार पर इन्हें नवीन अर्थ भी प्रदान किया है।



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मैथिलीशरण गुप्त की कविताएं
मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त की रचना
मैथिली शरण गुप्त की कविता
7 ماه پیش در تاریخ 1402/10/12 منتشر شده است.
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