Gratefulness | मंदिर जाने से क्या होगा? | Harshvardhan Jain | 7690030010
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6 ماه پیش
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#Gratefulness
#Gratefulness #मंदिर_जाने_से_क्या_होगा #harshvardhanjain
If you want to build a great personality, then follow the path of truth and virtues. It is through the feeling of gratitude that a person's size can be estimated. For one whose conduct is based on gratitude, gratitude is his duty. This duty keeps him on the right path.
प्राचीन काल में सत्य बोलना सर्वोत्तम गुण माना जाता था। इसी तर्क से "सत्यमेव जयते" की उत्पत्ति हुई। जो सत्य का अनुसरण करते हैं, अवगुण उनके आसपास भटकने से भी घबराते हैं। जो सत्य बोलने का साहस रखते हैं, अवगुणी लोग उनसे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। इसलिए यदि आप महान व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहते हैं, तो सत्य और सदाचार का पालन करने का संकल्प करें। महानता का आवरण आपको अभेद्य कवच रूपी मोती बना देगा। जिससे आपको समृद्धि और प्रसिद्धि से भी अधिक पूजनीय, दर्शनीय और अनुसरणीय व्यक्तित्व का उपहार प्राप्त होगा। प्राचीन काल में ऐसे ही संस्कारों का संगम विकसित करने पर जोर दिया जाता था। जो लोगों को साधारण से असाधारण व्यक्ति बनने की ओर ले जाने में सक्षम होता है। यही सोच और सार्थकता साधारण व्यक्ति को असाधारण व्यक्तित्व का मालिक बनाती है।
जो ज्ञानी होता है, अज्ञानता के भूत उसके आसपास भटकने से भी घबरातें हैं। जहां ज्ञान का सागर होता है, वहीं से असाधारण समृद्धि रूपी गंगा प्रवाहित होती है। इसलिए अपने ज्ञान के सागर का विस्तार करने का प्रयास करें क्योंकि ज्ञान का सागर शेष बचे सभी अवगुणों को बहाकर किनारे लगा देता है। जैसी संगति होती है, वैसे ही संस्कार विकसित होते हैं। इसलिए अपने भविष्य को शानदार बनाने के लिए शानदार लोगों की संगति करने की आदत विकसित करें क्योंकि यही आदत भविष्य का संस्कार बनती है। जिसके पास यह आदत होती है, वही भविष्य के सिंहासन का उत्तराधिकारी होता है। इसलिए आप जब भी किसी व्यक्ति से मिलें, अपने भविष्य को ध्यान में रखकर अपने व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने का अवसर भुनाने की कोशिश करें। ऐसे अवसर बार-बार नहीं मिलते हैं और जब भी ऐसे अवसर मिलें तो अपने आचरण की झलक दिखाने का प्रयास करें। आप अपने चरित्र से दूसरों को प्रभावित भी कर सकते हैं और प्रेरित भी।
कृतज्ञता के भाव से ही व्यक्ति के आकार का अनुमान लगाया जाता है। जिसका आचरण कृतज्ञता पर आधारित होता है, उसके लिए कृतज्ञता ही उसका कर्तव्य होता है। यही कर्तव्य उसे सही रास्ते पर बनाए रखता है। सभी बच्चे एक समान होते हैं। परंतु उनके पालन पोषण में जिस शैली का प्रयोग किया जाता है, उसी से उनके भविष्य का परिणाम रूपी प्रमाणित चरित्र निर्मित होता है। जिस माहौल में बच्चा होता है, वही माहौल उसके चरित्र का अभिन्न अंग बन जाता है। इसलिए हमें ऐसे महान मार्गदर्शकों की आवश्यकता है, जिनके आचरण का प्रतिबिंब भारत के भावी युवाओं के चरित्र में स्थापित किया जा सके। जब व्यक्ति ईश्वर का दर्शन करता है, तब उसे अपने अंदर के ईश्वर के दर्शन होते हैं। इसलिए सदैव ईश्वर का स्मरण करने से आपके अंदर के ईश्वर की जागृति हो जाती है। यही ईश्वर आपको सत्य के रास्ते पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए जब भी आप किसी व्यक्ति से मिलें, तो धन्यवाद करने में संकोच नहीं, बल्कि उत्साह पैदा होना चाहिए। धन्यवाद करने से आप अपने ईश्वर का ही धन्यवाद करते हैं। यही आपकी महानता की परीक्षा भी है और प्राण प्रतिष्ठा भी है।
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प्राचीन काल में सत्य बोलना सर्वोत्तम गुण माना जाता था। इसी तर्क से "सत्यमेव जयते" की उत्पत्ति हुई। जो सत्य का अनुसरण करते हैं, अवगुण उनके आसपास भटकने से भी घबराते हैं। जो सत्य बोलने का साहस रखते हैं, अवगुणी लोग उनसे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। इसलिए यदि आप महान व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहते हैं, तो सत्य और सदाचार का पालन करने का संकल्प करें। महानता का आवरण आपको अभेद्य कवच रूपी मोती बना देगा। जिससे आपको समृद्धि और प्रसिद्धि से भी अधिक पूजनीय, दर्शनीय और अनुसरणीय व्यक्तित्व का उपहार प्राप्त होगा। प्राचीन काल में ऐसे ही संस्कारों का संगम विकसित करने पर जोर दिया जाता था। जो लोगों को साधारण से असाधारण व्यक्ति बनने की ओर ले जाने में सक्षम होता है। यही सोच और सार्थकता साधारण व्यक्ति को असाधारण व्यक्तित्व का मालिक बनाती है।
जो ज्ञानी होता है, अज्ञानता के भूत उसके आसपास भटकने से भी घबरातें हैं। जहां ज्ञान का सागर होता है, वहीं से असाधारण समृद्धि रूपी गंगा प्रवाहित होती है। इसलिए अपने ज्ञान के सागर का विस्तार करने का प्रयास करें क्योंकि ज्ञान का सागर शेष बचे सभी अवगुणों को बहाकर किनारे लगा देता है। जैसी संगति होती है, वैसे ही संस्कार विकसित होते हैं। इसलिए अपने भविष्य को शानदार बनाने के लिए शानदार लोगों की संगति करने की आदत विकसित करें क्योंकि यही आदत भविष्य का संस्कार बनती है। जिसके पास यह आदत होती है, वही भविष्य के सिंहासन का उत्तराधिकारी होता है। इसलिए आप जब भी किसी व्यक्ति से मिलें, अपने भविष्य को ध्यान में रखकर अपने व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने का अवसर भुनाने की कोशिश करें। ऐसे अवसर बार-बार नहीं मिलते हैं और जब भी ऐसे अवसर मिलें तो अपने आचरण की झलक दिखाने का प्रयास करें। आप अपने चरित्र से दूसरों को प्रभावित भी कर सकते हैं और प्रेरित भी।
कृतज्ञता के भाव से ही व्यक्ति के आकार का अनुमान लगाया जाता है। जिसका आचरण कृतज्ञता पर आधारित होता है, उसके लिए कृतज्ञता ही उसका कर्तव्य होता है। यही कर्तव्य उसे सही रास्ते पर बनाए रखता है। सभी बच्चे एक समान होते हैं। परंतु उनके पालन पोषण में जिस शैली का प्रयोग किया जाता है, उसी से उनके भविष्य का परिणाम रूपी प्रमाणित चरित्र निर्मित होता है। जिस माहौल में बच्चा होता है, वही माहौल उसके चरित्र का अभिन्न अंग बन जाता है। इसलिए हमें ऐसे महान मार्गदर्शकों की आवश्यकता है, जिनके आचरण का प्रतिबिंब भारत के भावी युवाओं के चरित्र में स्थापित किया जा सके। जब व्यक्ति ईश्वर का दर्शन करता है, तब उसे अपने अंदर के ईश्वर के दर्शन होते हैं। इसलिए सदैव ईश्वर का स्मरण करने से आपके अंदर के ईश्वर की जागृति हो जाती है। यही ईश्वर आपको सत्य के रास्ते पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए जब भी आप किसी व्यक्ति से मिलें, तो धन्यवाद करने में संकोच नहीं, बल्कि उत्साह पैदा होना चाहिए। धन्यवाद करने से आप अपने ईश्वर का ही धन्यवाद करते हैं। यही आपकी महानता की परीक्षा भी है और प्राण प्रतिष्ठा भी है।
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6 ماه پیش
در تاریخ 1402/11/06 منتشر شده
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