O Mere Shahe Khuban-Karaoke

Ravindra Kamble
Ravindra Kamble
23.4 هزار بار بازدید - 2 سال پیش - निर्देशक प्रमोद चक्रवर्ती जी तेज
निर्देशक प्रमोद चक्रवर्ती जी तेज गति से बढ़ती कहानी या पटकथा में विश्वास रखते थे. उनका मापदंड सरल था. फिल्म दर्शकों का मनोरंजन करे, उन्हें पसंद आए. फिल्म में हर तरह की सामग्री का इंतज़ाम वो करते थे. ज़ाहिर है फ़िल्में न सिर्फ चलती थी बल्कि सिल्वर जुबिलियाँ मनातीं थीं. उनकी 1966 की “लव इन टोकियो” भी एक सुपर डुपर हिट फिल्म थी. और एक बड़ी वजह ये थी कि फिल्म की शूटिंग जापान में हुई थी. ये किसी बाहरी फिल्म की जापान में  होने वाली पहली शूटिंग थी.  1964 के ओलम्पिक खेल जापान में हुए थे और इन गेम्स की लोकप्रियता के चलते प्रमोद चक्रवर्ती ने सोचा कि  क्यों न दर्शकों को जापान की सैर कराई जाए. दर्शकों की विदेश की सैर की आकांक्षाओं को भुनाने वाली और भी फ़िल्में उस दौर में बनीं और खूब चली. “नाईट इन लंडन” “ऍन इवनिंग इन पेरिस” वगैरा. ताज़ा तरीन ख़ूबसूरत आशा पारेख जी की चुलबुली इमेज और चॉकलेट बॉय जॉय मुख़र्जी की जोड़ी को दर्शकों ने पसंद किया. हालांकि सभी की राय ये रही कि हीरो शम्मी कपूर  होते तो और मज़ा आता.
तेज कहानी,  खूब सूरत लोकेशंस और खुसूरत हीरोइन के अलावा कामयाबी का जो सबसे मजबूत पक्ष था वो था फिल्म के गीत संगीत. महम्मद रफ़ी (या लता मंगेशकर), शंकर जयकिशन और हसरत जयपुरी... ये तिकड़ी जब एकसाथ हो तो कहर ढाती है. इस फिल्म के सभी गीत बहुत लोकप्रिय हुए. (केवल एक गीत “कोई मतवाला आया मेरे द्वारे” शैलेन्द्र जी का लिखा था)
पर जो गीत आज भी उतना ही लोकप्रिय है और रोमांच पैदा करता वो है “ओ मेरे शाह-ए-खूबां...” . मुश्किल शब्दों की शायरी के बावजूद अगर ये गीत आम लोगों में इतना पॉप्युलर हुआ तो ये जादू यकीनन शंकर जयकिशन जी के संगीत और उससे भी आगे रफ़ी साहब की गायकी का है. प्रस्तुत ट्रैक में मैंने उन कठिन उर्दू-पर्शियन शब्दों के अर्थ/भावार्थ देने की कोशिश की है. और मुझे पूरा यकीन है की गीत के मायने जानने के बाद आप सभी इस गीत को पहले से ज्यादा एंजॉय करेंगे.  परदे पर इस गीत का फिल्मांकन भी ख़ूबसूरत है. ख़ासकर आशा पारेख जी ने लुका-छुपी की तलाश की बेचैनी और निराशा आँखों में पूरी तरह उतार दी है

हसरत जयपुरी जी ने इस गीत की प्रेरणा महान उर्दू शायर जनाब मोमिन खां ‘मोमिन’ के उस मशहूर शेर से ली
तुम मेरे पास होते गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता

फिल्म में, और जैसा हम सब मानते हैं कि ये एक ख़ूबसूरत रोमांटिक गीत है, मगर शायरी के जानकार इसमें एक “सूफ़ी” अंदाज़ का रंग भी देखते हैं . जब मैं एकदम अकेला होता हूँ, अकेला महसूस करता हूँ तब मेरी तनहाई में (या ख़ुदा) तुम मेरे पास, मेरे साथ होते हो.  जनाब मोमिन खां ‘मोमिन’ साहब के ज़ेहन में भी शायद उनके शेर का यही रंग था और फिल्म में इस गीत का लता जी वाला वर्जन भी शायद यही रंग लिए हुए है.
वैसे ये ट्रैक male / female दोनों आवाजों को सूट करेगा.

मुझे लगता है की ट्रैक बहुत ही सुंदर है. पर सच्ची राय आप सब judges देंगे

मेरे सबसे पसंदीदा गीतों में से एक  (दोनों versions)
2 سال پیش در تاریخ 1401/06/18 منتشر شده است.
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