Yagyaseni Draupadi || Tribute to Mata Panchali by Deepankur Bhardwaj

Deepankur Bhardwaj Poetry
Deepankur Bhardwaj Poetry
195.9 هزار بار بازدید - 3 سال پیش - There are some foolish people
There are some foolish people around us who thinks Mata Draupadi was responsible for Mahabharat Yudh. This is an answer to all those idiots....

Jai Shree Krishna ❤️🙏🏻❤️🙏❤️


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Poem Lyrics :

ज्वाला का रौद्र रूप हूं मैं
यज्ञ से निकली काली हूं,
पांडवों का गौरव हूं मैं
यज्ञसेनी पांचाली हूं।

यज्ञ से जन्मी वो ज्वाला हूं
जो सर्वभक्ष कहलाई है,
उसका क्या अपमान करोगे
जिसकी लाज नारायण ने बचाई है।

पांडव और मेरे रिश्ते को
नारायण में सम्मान दिया,
तुम मुझ पर लांछन लगाते हो
तुम्हें इतना किसने ज्ञान दिया।

नारी को अपमानित करके
समझते खुद को वीरेंद्र हो,
अरे शरीर से छोड़ो
तुम तो आत्मा से दरिद्र हो।

अधर्मीयों के महिमामंडन में
आगे तुम निकल गए,
ग्रंथों की ना लाज रखी
और श्लोक सभी बदल दिए।

अरे हिंदू रीति है
ससुर पिता के समान है,
मैंने अंधे का पुत्र अंधा कहा
किस ग्रंथ ने दिया तुमको ऐसा ज्ञान है।
अरे कहां से तुम्हें पता चला
किया मैंने तात श्री का अपमान था,
किस ग्रंथ में है यह श्लोक लिखा
या गीता में ये प्रमाण था।

स्वयंवर मेरा भव्य हुआ
ना किया किसी का भी अपमान था,
उठा सका ना शिव धनुष को कोई
टूटा सभी का अभिमान था।

कहते हो तुम नहीं दिया धनुष उठाने
क्योंकि छोटी जाति के कर्ण थे,
अरे महामूर्खों तब जाती नहीं थी
होते केवल चार वर्ण थे।

जब धनुष उठा ना अंगराज से
तब से उनका चकराया था,
इसी प्रतिकार स्वरूप उन्होंने
द्यूत सभा में वैश्या कह के बुलाया था।

और सूत पुत्र ना कहा किसी को
क्यों तुमने यह जाति का मुद्दा उठाया है,
मां ब्रह्माणी और पिता क्षत्रिय
ऐसा योद्धा सूत पुत्र कहलाया है।

मेरे चरित्र पर उंगली उठा कर
संतोष कैसे तुम पाते हो,
क्या हश्र हुआ था दुःशासन का
यह भी भूल जाते हो।

लांछन लगा दिया मुझ पर
कारण थी मैं महासंग्राम का,
अरे शांतिदूत श्री कृष्ण का
प्रस्ताव ठुकराया किसने था 5 ग्राम का।

अपमान का कड़वा घूंट पिया
और शांति प्रस्ताव भिजवाया था,
फिर श्री कृष्ण की ना बात मानकर
दुर्योधन ने युद्ध का बिगुल बजाया था।

नारी का अपमान करके
सुख कैसे तुम पाते हो,
जिस नारी से जन्म लिया है
उससे नजरें कैसे मिलाते हो।

जब सहनशीलता चरम पर होगी
और अधर्मियों की मनमानी बढ़ती चली जाएगी,
यही कोमल सी ममता की प्रतिमा
फिर से तुमको दुर्गा बन दिखलाएगी।

दुष्कर्मियों के रक्त का खप्पर भर के
चंडी वह बन जाएगी,
क्या हश्र हुआ था रक्तबीज का
इतिहास को फिर दोहराएगी।

शक्ति बिना शिव, शव समान है
और नारी ही वो शक्ति है,
वही दुर्गा का स्वरूप है और बन द्रौपदी
की उसी ने गोविंद की भक्ति है।

युग जैसे-जैसे बढ़ता है
विवेक मनुज अब खोता है,
अरे देख नारी की व्यथा को आज
दुर्योधन भी रोता है।

देख नारी की व्यथा को आज
दुर्योधन भी रोता है।
3 سال پیش در تاریخ 1400/03/13 منتشر شده است.
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