काली कर्पूर स्तोत्रम् Kali Karpoor Stotram Karpuradistotram Kali Karpura

4.7 هزار بار بازدید - پارسال - माँ काली का यह स्तोत्र
माँ काली का यह स्तोत्र महाकाल द्वारा प्रणित है इसे कर्पूरस्तोत्रम् या काली कर्पूरस्तोत्रम् या कर्पूरादिस्तोत्रम् या स्वरूपाख्य स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है।

This stotra of Maa Kali is inspired by Mahakal. It is also known as Karpoorstotram or Kali Karpoorstotram or Karpuradistotram or Swaroopakhya Stotra.

कर्पूरं मधमान्त्यस्वरपरिरहितं सेन्दुवामाक्षियुक्तं

बीजं ते मातरेतत्त्रिपुरहरवधु त्रिःकृतं ये जपन्ति ।

तेषां गद्यानि पद्यानि च मुकुहुहरादुल्लसन्त्येव वाचः

स्वच्छन्दं ध्वान्तधाराधरुरुचिरुचिरे सर्वसिद्धिं गतानाम्॥ १॥

हे माते! हे त्रिपुर हरवधु! हे काले मेघ के तुल्य काले वर्णवाली भगवति ‘कपूर’ शब्द के मध्य और अनत्य व्यंजन (प और र) एवं उसमें लगे हुए स्वर-पकार के अकार और र के अकार से अलग करके अर्थात् ‘क्र’ शब्द के आगे अनुस्वार, वामाक्षी दीर्घ इकार से युक्त कर ‘क्रीं’ इस मंत्र को जो (साधक) तीन बार जपते हैं, उनके मुख से अनायास ही गद्य और पद्य स्वयं निकलने लगता है, ऐसे (साधक) को अणिमादि सभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त हो जाती है ।। १॥

ईशान सेन्दुवामश्रवणपरिगतो बीजमन्यन्महेशि!

द्वन्द्वं ते मन्दचेता यदि जपति जनो वारूमेकं कदाचित् ।

जित्वा वाचामधीशं धनमपि चिरं मोहयन्नम्बुजाक्षीवृन्दं

चन्द्रार्धचूडे प्रभवति स महाघोरबालावतंसे॥ २॥


हे महेशि! हे चन्द्रार्धचूडे! हे अतिभयानक! बालक के शव का अपने कानों में कर्णभूषण धारण करने वाली, हे भगवति! ईशान-हकार उसमें बिन्दु और वाम श्रवण या ॐ लगाकर अथवा ‘हूं हूं’ इसका दो बार उच्चारण कर या ‘हूं हूं’ इस मंत्र को यदि मूर्ख भी एक बार जपता है, तो वह शास्त्रार्थ करने में बृहस्पति – तुल्य होता है । वह धन में कुबेर को भी जीतने में सक्षम हो जाता है। ऐसा साधक समस्त सुन्दरियों को आकर्षित कर लेने में पूर्णत: समर्थवान होता है ।। २ ।।

ईशो वैश्वानरस्थः शशधरविलसद् वामनेत्रेण युक्तो

बीजं ते द्वन्द्वमन्यद् विगलितचिकुरे कालिके ये जपन्ति ।

द्वेष्टारं घ्नन्ति ते च त्रिभुवनमपि ते वश्यभावं नयन्ति

ह्रीं ह्रीं इस बीज मंत्र का दो बार अर्थात् ‘ह्रीं ह्रीं’ का जो (साधक) जप कर लेते हैं, वे शत्रु का वध कर सकते हैं तथा विस्त्रस्त केशों से युक्त! हे ओष्ठ प्रान्तों में निरवच्छिन्न खून की दो धाराओं को धारण करने वाले मुख से युक्त हे दक्षिणकालिके माते! अधिक क्या कहे, ‘ह्रीं’ इस मंत्र का जप करने वाले पुरुष सम्पूर्ण त्रिलोकी को अपने वशीभूत कर लेने में समर्थ होते हैं ॥ ३ ॥

जो साधक ऋतु से युक्त योनि का ध्यान करता हुआ भक्तिभाव से आपके मन्त्र जप करता है, वह गायन कला में गन्धर्वों का स्वामी हो जाता है और कविता रूप अमृत नदियों का वह सागर के तुल्य पति बन जाता है। इसके साथ ही साथ मृत्यु के समय वह भगवती महाकाली के अत्यन्त परमपद को प्राप्त करता है ॥ १७॥

The seeker who chants your mantras with devotion while meditating on the seasoned vagina, becomes the master of the Gandharvas in the art of singing and he becomes the husband of the nectar rivers like the ocean. Along with this, at the time of death, he attains the supreme position of Bhagwati Mahakali. 17॥

हे माते! पन्द्रह कोण के पीठ में शवरूपी शिव के हृदय पर महाकाल के साथ रतिक्रिया में युक्त एवं मन्द-मन्द हँसी से युक्त मुखवाली आपके रूप का ध्यान स्वयं एकाग्रचित्त से जो भक्त रात्रि में स्वयं रतिक्रिया में आसक्त होकर करते हैं, ऐसे भक्त साक्षात् शिव हो जाते हैं ॥ १८॥

Oh mother! A devotee who meditates on your form with self-concentration in the form of Shiva on the heart of Shiva in the form of a body in the form of fifteen angles, with Mahakal in sexual intercourse with Mahakal, and with a soft smile, such a devotee becomes Shiva in person. ॥ 18.

हे माते! जो साधक खीर का भोजन कर दिन में आपके चरण-कमलों का ध्यान करता हुआ आपके मंत्र का एक लाख जप करता है और रात्रि के समय वस्त्ररहित हो रतिक्रीड़ा में आसक्त रहते हुए आपके मन्त्र का एक लाख जप करता है, ऐसा साधक इस पथ्वीलोक में निश्चय ही भगवान शिव के तुल्य योगीश्वर हो जाता है ।। २० ॥

Oh mother! An aspirant who eats kheer and meditates on your lotus feet during the day and chants one lakh of your mantras during the night without clothes and being engrossed in promiscuous sex, such an aspirant will surely end up in this path. He becomes Yogishwar equal to Lord Shiva. 20 ॥

हे माते! जो साधक मन्त्रोद्धार पूर्वक आपके पवित्र चरणों की सविधि पूजा एवं ध्यान करते हुए इस स्वरूपाख्य नामक स्तोत्र का पाठ अर्धरात्रि में या पूजा करते समय करते हैं उनके मुखारविन्द से निकला हुआ अनर्थक प्रलाप भी कविता के रूप में अमृतरस से परिपूर्ण होता है ॥ २१ ॥

Oh mother! Those devotees who recite this hymn named Swaroopakhya at midnight or while worshiping your holy feet with devotion and meditation, their senseless delirium is also filled with nectar in the form of poetry. 21 ॥
हे माते! इस स्तोत्र का पाठ करनेवाले साधक के पीछे-पीछे तरुणी वृन्दों का समूह प्रेमरस से उन्मत्त होकर चलता है। कुबेर के सदृश धनी राजा भी उसके वशीभूत हो जाते हैं एवं उसके शत्रु भी कारागार में अश्रुपात करते हैं। ऐसा साधक केलिकला से परिपूर्ण होकर बहुत काल पर्यन्त जीवित रहता है और जीता हुआ भी वह जीवनमुक्त हो जाता है ॥ २२॥

Oh mother! A group of young girls, ecstatic with love, follows the devotee reciting this stotra. Rich kings like Kubera also become subjugated by him and his enemies also shed tears in the prison. Such a seeker being full of Kalikala lives for a long time and even while living, he becomes free from life. 22॥
پارسال در تاریخ 1402/01/29 منتشر شده است.
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