visit kedarnath | देखिए Chaurabadi Taal | 2013 आपदा का एपिसेंटर | Chardham Yatra

Rural Tales
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visit kedarnath | देखिए Chaurabadi Taal | 2013 आपदा का एपिसेंटर

कहानी केदारनाथ त्रासदी की

2013 की हिमालयन सुनामी को आखिर कौन भूल सकता है।पूरे पहाड़ ने इस जलजले को सहा लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान केदारघाटी में दिखाई दिया।आखिर क्या कारण रहे जिससे पूरी केदारघाटी में आज भी तबाही के मंजर जिंदा है।

2013 के जून महीने में मानसून और पश्चिमी विक्षोभ हिमालय में आकर टकरा गए जिससे पूरे हिमालयी क्षेत्र में 72 घंटो तक भारी बारिश हुई जिसमें नेपाल और हिमाचल भी शामिल है।गंगोत्री,यमुनोत्री,केदारनाथ, बद्रीनाथ,हेमकुंड साहिब,घनसाली,कपकोट,धारचूला सहित ऊपरी इलाको में भारी बारिश से नदियां उफान पर आ गई।जून महीने में जब भीषण गर्मी पड़ रही हो तो आसमान से अचानक आई इस तबाही ने कभी कल्पना भी नही की थी।मौसम विभाग ने भले ही 12 तारीख को रेड अलर्ट जारी कर दिया हो लेकिन किसी को भी संभलने का मौका नही मिला।चार धाम यात्रा उस समय अपने चरम पर थी।

केदारघाटी में सबसे ज्यादा जनहानि क्योंकि हुई और चोराबाड़ी ताल कैसे फटा इस पर कई भू वैज्ञानिकों और हिमनद वैज्ञानिकों ने शोध किया है।केदारघाटी रामबाड़ा से आगे करीब 67 वर्ग किमी में फैली है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 2700 मीटर से लेकर 6900 मीटर तक है।यह पूरा क्षेत्र वृक्षविहीन है।यहाँ बुग्याल,मोरेन और ग्लेशियर और हिम धवल चोटियाँ है।यह घाटी अंग्रेजी के u आकार की है जिसके 23 प्रतिशत क्षेत्र में हमेशा बर्फ रहती है।

कैसे बनी चोराबाड़ी झील?
चोराबाड़ी ताल टूटने से पहले हम आपको इस झील की बनने की कहानी बताते है।वाडिया संस्थान के हिमनद वैज्ञानिक मनीष मेहता बताते है यह झील चोराबाड़ी ग्लेशियर के आगे खिसकने के कारण बनी है जिसे राइट लेटरन मोरेन कहते है।वाडिया संस्थान ने ओएसएल(OSL) तकनीक से इसका पता लगाया है जो करीब 5 हजार साल पहले बढ़ा और करीब 13 हजार साल पहले ग्लेशियर रामबाड़ा में था।

कैसे टूटा चोराबाड़ी ग्लेशियर?

16 और 17 जून से भी पहले करीब 2 दिनों से पूरी केदारघाटी में मूसलाधार बारिश से इस क्षेत्र की सभी  नदिया उफान पर थी।दूध गंगा,मधु गंगा ,मंदाकिनी और सरस्वती नदियां में लगातार बढ़ता जा रहा था।सबसे ज्यादा पानी मधु गंगा में था।पिछले 20 सालों से चोराबाड़ी ग्लेशियर पर कार्य कर रहे हिमनद वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल कहते है कि  चोराबाड़ी ताल जब बना तक उसकी गहराई मात्र 8 मीटर थी और चौड़ाई करीब 300 मीटर लेकिन टूटने से पहले इसकी गहराई 25 मीटर तक हो गई।16 और 17 जून की अत्यधिक भारी बारिश के कारण झील पूरी तरह भर गई और 17 जून को 5 बजकर 45 मिनट पर झील के पश्चिम दिशा के पहाड़ से बड़ा एवलांच आया जिसमे बड़े बड़े बोल्डर टूट कर झील में समा गए उसके बाद ताल टूट गया।ताल का मुहाना पहले ही कमजोर था जैसे ही ताल टूटा उसमें 6 लाख क्यूबिक मीटर पानी जमा था जो 1429 मीटर/प्रति सेकंड से डिस्चार्ज हुआ मतलब एक सेकंड में उस पानी की रफ्तार डेढ़ किमी थी।2017 में वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों जिसमें डॉ डी पी डोभाल और मनीष मेहता शामिल थे यह पूरी रिपोर्ट प्रकाशित की।

ताल के टूटने के बाद तबाही का मंजर

चोराबाड़ी ताल टूटने के बाद पहके केदारनाथ मंदिर के आस पास की सभी बसावट को मिनटों में पानी के सैलाब ने उखाड़ दिया।मनीष मेहता बताते है कि पानी की रफ्तार इतनी ज्यादा और तेज थी कि जो भी उनके रास्ते में आया उसे उखाड़ ले गया।मंदिर के ठीक पीछे एक बड़ा बोल्डर रुक गया जिसने मंदिर की रक्षा की जिसे अब भीमशिला या दिव्य शिला का नाम दिया जा रहा है।मन्दाकिनी में चोराबाड़ी ताल टूटने से अचानक पानी बढ़ा लेकिन मधु गंगा में उस समय ज्यादा पानी था जिसने मंदाकिनी से आये सैलाब को धक्का मार दिया जिससे कंपेनियन ग्लेशियर की और से आ रही सरस्वती नदी ने अपनी धारा मोड़ दी।पहले सरस्वती,मधु गंगा और मंदाकिनी का संगम मंदिर के ठीक पीछे होता था लेकिन अब मंदिर के नीचे संगम होता है।

क्या ताल टूटने की पहले की गई थी भविष्यवाणी?

।2003 में वाडिया संस्थान ने केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे करीब साढ़े 3 किमी और समुद्र तल से 3800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित चोराबाड़ी ताल और ग्लेशियर के अध्ययन शुरू किया।इस अध्ययन की कमान डॉ डी पी डोभाल और उनके साथ मनीष मेहता शामिल थे।केदारघाटी के ठीक पीछे चोराबाड़ी ग्लेशियर है जो 7 किमी लंबा है और दूसरा कंपेनियन ग्लेशियर है जो 3 किमी लंबा है और यह मंदिर से डेढ़ किमी की दूरी पर बसा है।2003 से वाडिया ने शोध शुरू किया और 2004 में दैनिक जागरण में लक्ष्मी प्रसाद पंत से सबसे पहले चोराबाड़ी ग्लेशियर के भविष्य में बड़े खतरे की खबर प्रसारित की।डॉ डोभाल कहते है वाडिया संस्थान ने चोराबाड़ी ग्लेशियर के पास एक छोटी सी प्रयोगशाला लगाई थी जिससे ग्लेशियर और ताल दोनो पर निगरानी रखी जाए।डॉ डोभाल कहते है कि रामबाड़ा का नुकसान ज्यादा मधु गंगा नदी से हुआ क्योंकि यह बरसात में मंदाकिनी से भी ज्यादा खतरनाक है।

conact person-प्रकाश सिमल्टी-9599080174

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2 سال پیش در تاریخ 1401/02/28 منتشر شده است.
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