कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए || दुष्यंत कुमार || Dushyant Kumar
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4 سال پیش
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हिंदी ग़ज़लों के कोहिनूर, जिनकी
हिंदी ग़ज़लों के कोहिनूर, जिनकी ग़ज़लें शुरू से ही सत्ता के गलियारे तक दहाड़ती रही हैं। सरकारी पद पर कार्यरत होते हुए भी भ्रष्टाचार और अव्यवस्था पर सरकार के समक्ष प्रश्न रखने की निडर आवाज़ कवि दुष्यंत कुमार जी को जन्मदिवस पर बहुत-बहुत प्रणाम।।
सुनिए उनकी एक ग़ज़ल___
कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए ।
जले जो रेत में तलवे तो हमने ये देखा
बहुत से लोग वहीं छटपटा के बैठ गए ।
खड़े हुए थे अलावों की आंच लेने को
सब अपनी अपनी हथेली जला के बैठ गए ।
दुकानदार तो मेले में लुट गए यारों
तमाशबीन दुकानें लगा के बैठ गए ।
लहू लुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तो
शरीफ लोग उठे दूर जा के बैठ गए ।
ये सोच कर कि दरख्तों में छांव होती है
यहाँ बबूल के साए में आके बैठ गए ।
~ दुष्यंत कुमार
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#dushyantkumar #ghazal #kavita
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Background Music ORIGINAL CREDITS
Provided to YouTube by Fesliyan Studios
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Sad Souls: Heartbreaking Background Music
℗ 2019 Fesliyan Studios
Released on: 2019-01-18
Auto-generated by YouTube.
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Tears Won't Stop · David Fesliyan
Sad Souls: Heartbreaking Background Music
℗ 2019 Fesliyan Studios
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Auto-generated by YouTube.
4 سال پیش
در تاریخ 1399/06/11 منتشر شده
است.
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