मन से स्मरण अवश्य करो, दो प्रकार का रूपध्यान करना है प्रैक्टिकल
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2 سال پیش
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रसमय उपदेश :
जगद्गुरु श्री
रसमय उपदेश :
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की काव्य रचनाओं में जो रस सिक्त तत्त्वज्ञान भरा है, वह इस बात का द्योतक है कि उनका अपना व्यक्तित्व भक्ति के परमोज्ज्वल स्वरूप से ऊर्जस्वित, जीव कल्याण की करुणामयी भावना से द्रवित एवं श्रीराधा-कृष्ण के अलौकिक प्रेम रस से ओतप्रोत है। भक्तियोगरसावतार की उपाधि प्राप्त श्री कृपालु जी महाराज हमारे वर्तमान विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु हैं। वेद-शास्त्रों के प्रमाणों पर आधारित उनके सारगर्भित प्रवचन तो वैदिक हिन्दू सनातन धर्म के वास्तविक सिद्धान्त को सरलता एवं स्पष्टता से समझने का प्रमुख आधार हैं ही, उनकी सरस संगीतमय संकीर्तन रचनाएँ भी सिद्धांत ज्ञान से परिपूरित हैं। श्री महाराज जी द्वारा रचित रसमय संगीतात्मक काव्य कृतियों में कितना गहन तत्त्व ज्ञान लबालब भरा है, इसका वास्तविक परिचय तब मिलता है जब वे स्वयं अपने स्वरचित संकीर्तनों की व्याख्या करते हैं। ये बहुत आकर्षक व्याख्याएँ हैं, जिनमें रस (भक्तियोगरसावतार) एवं उपदेश (जगद्गुरूत्तम) का कृपामय सामंजस्य है।
यह वीडियो
'युगल रस' नामक काव्य संग्रह
के एक रसमय संकीर्तन—
'गावो सब हिलिमिलि राधे, राधे राधे राधे।'
पर आधारित है, जिसकी सुन्दर व्याख्या
श्री महाराज जी ने दिनांक : 05.09.2000 को
रँगीली महल, बरसाना धाम में की थी।
इसमें श्रीमुख की माधुरी का पान करते-करते सहज ही परमोत्कृष्ट उपदेश साधक के अंतर्मन में उतर जाता है।
इस वीडियो के कुछ अंश हैं—
"दूसरा ध्यान वियोग का।
ये ध्यान सर्वश्रेष्ठ है।
किशोरी जी आप खड़ी तो हैं बोल नहीं रहीं हैं।
मेरी ओर देख नहीं रहीं हैं।
मैं इतना पापी हूँ? इतना अधम हूँ?
आप तो पतितपावनी हैं।
फिर आप मेरे ऊपर इतनी कृपा
और क्यों नहीं कर रहीं हैं कि
प्रत्यक्ष सामने हमसे बात करें।
अपना प्यार दें। अपनी दासी बनावें।
ये तड़पन, व्याकुलता …परम व्याकुलता।
रहा न जाय।
जैसे मछली को पानी से अलग कर दो
तो पानी के लिये तड़पती है।
ऐसा तुम्हारा हो जाये मन का हाल।
युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावर्षायितं
शून्यायितं जगत् सर्वं
ये भावना बनाना।
और इससे क्या होगा?
इससे तुम्हारे अंतःकरण का विकार
आँसू बनकर निकलेगा। तब मन शुद्ध होगा।
तुम्हारा काम केवल अंतःकरण शुद्ध करना।
बाकी काम हरि गुरु का।
तुम्हारा कुछ काम नहीं।
उसके आगे तुम कुछ नहीं कर सकते।"
—जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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कलियुग में दान को ही कल्याण का एकमात्र माध्यम बताया गया है। 'दानमेकं कलौयुगे'।
दान पात्र के अनुसार ही अपना फल देता है तथा भगवान एवं महापुरुष के निमित्त किया गया दान सर्वोत्कृष्ट फल प्रदान करता है।
हम साधारण जीव यथार्थ में यह नहीं जान सकते कि वास्तविक महापुरुष के प्रति किया गया हमारा दान/समर्पण हमारे कल्याण का कैसा अद्भुत द्वार खोल देगा। अतएव, समर्पण हेतु आगे बढिये।
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2 سال پیش
در تاریخ 1401/06/30 منتشر شده
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