Swargarohini पर्वत में Swarg Ki Sidi को देखने के लिए लोगो ने काफी प्रयास करे और फिर भी असफल रहे 😓

Nainital Mania
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660.3 هزار بار بازدید - 2 سال پیش - Swargarohini Parvat me Swarg Ki
Swargarohini Parvat me Swarg Ki Sidi Dekhne ke liye jab log Uttrakhand pahuch gaye.

Swarg Ki Sidi History: उत्तराखंड में मिल गयी हैं "स्वर्ग की ...

Swarg Ki Sidi Pandav Yatra:
स्वर्ग की सीढ़ियां - Stair Of Heaven,...


उत्तराखंड को कई धार्मिक स्थानों और देवी-देवताओं के वास होने के कारण से ‘धरती पर स्वर्ग’ और ‘देव भूमि’ कहा जाता है, और यह कहना भी उचित है क्योंकि देवभूमि से जुडी पौराणिक गाथाओं का जिक्र हमारे प्रसिद्ध ग्रंथों में किया गया है जिनके अनुसार, उत्तराखंड के गढ़वाल में हिमालय के बंदरपूंछ में स्थित ‘स्वर्गारोहिनी’ चोटी से ही स्वर्ग का रास्ता जाता है। क्योंकि इस रास्ते से पांडव स्वर्ग की और गए थे।

स्वर्गारोहिनी विश्व विख्यात तीर्थस्थल है। उत्तराखंड में चमोली जिले में स्थित ऊंचाई -17,987 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ आने वाले तीर्थयात्रियों का कहना है कि इस स्थान पर देवीय नूर है यहाँ की खूबसूरती भी सर्वोपरि है। यहां अपार शांति और स्वर्ग में होने का एहसास प्राप्त होता है। उत्तराखंड से स्वर्गारोहिनी तक का रास्ता काफी कठिन है। साथ ही यह पूरा स्थान बर्फ से ढ़के होने के कारण इसकी खूबसूरती में चार-चांद लगाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार स्वर्गारोहिणी ही एकमात्र ऐसा मार्ग है जहां से मनुष्य मानव रूप में स्वर्ग तक पहुंच सकता है।

पांडवो की स्वर्ग यात्रा-

श्री कृष्ण सहित पुरे यदुवंशियों के मारे जाने से दुखी पांडव भी परलोक जाने का निश्चय करते है और इस क्रम में पांचो पांडव और द्रोपदी स्वर्ग पहुँचते है। जहाँ द्रोपदी, भीम, अर्जुन, सहदेव और नकुल शरीर को त्याग कर स्वर्ग पहुँचते है वही युधिष्ठर सशरीर स्वर्ग पहुँचते है। यात्रा करते-करते पांडव हिमालय तक पहुंच गए। हिमालय लांघ कर पांडव आगे बढ़े तो उन्हें बालू का समुद्र दिखाई पड़ा। इसके बाद उन्होंने सुमेरु पर्वत के दर्शन किए।

स्वर्ग जाने के रास्ते मे सरस्वती नदी ने पांडवो की यात्रा रोक दी पांडवो ने सरस्वती से रास्ता मांगा लेकिन सरस्वती माता ने रास्ता देने से इन्कार कर दिया फिर बलशाली भीम ने 2 बडे पत्थर के खण्ड उठाकर नदी पर पुल बना दिया था जिसमे होकर पांडवो ने आगे का रास्ता शुरू किया था यह रास्ता बहुत ही कठिन था।

पांचों पांडव, द्रौपदी तथा वह कुत्ता तेजी से आगे चलने लगे। तभी द्रौपदी लडख़ड़ाकर गिर पड़ी….द्रौपदी को गिरा देख भीम ने युधिष्ठिर से कहा कि- द्रौपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया। तो फिर क्या कारण है कि वह नीचे गिर पड़ी। युधिष्ठिर ने कहा कि- द्रौपदी हम सभी में अर्जुन को अधिक प्रेम करती थीं। इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ है। ऐसा कहकर युधिष्ठिर द्रौपदी को देखे बिना ही आगे बढ़ गए।

थोड़ी देर बाद सहदेव भी गिर पड़े। भीमसेन ने सहदेव के गिरने का कारण पूछा तो युधिष्ठिर ने बताया कि सहदेव किसी को अपने जैसा विद्वान नहीं समझता था, इसी दोष के कारण इसे आज गिरना पड़ा है। कुछ देर बाद नकुल भी गिर पड़े। भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था। इसलिए आज इसकी यह गति हुई है।

थोड़ी देर बाद अर्जुन भी गिर पड़े। युधिष्ठिर ने भीमसेन को बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था। अर्जुन ने कहा था कि मैं एक ही दिन में शत्रुओं का नाश कर दूंगा, लेकिन ऐसा कर नहीं पाए। अपने अभिमान के कारण ही अर्जुन की आज यह हालत हुई है। ऐसा कहकर युधिष्ठिर आगे बढ़ गए।

युधिष्ठिर कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ गए। तब युधिष्ठिर ने इंद्र से कहा कि- मेरे भाई और द्रौपदी मार्ग में ही गिर पड़े हैं। वे भी हमारे हमारे साथ चलें, ऐसी व्यवस्था कीजिए। तब इंद्र ने कहा कि वे सभी पहले ही स्वर्ग पहुंच चुके हैं। वे शरीर त्याग कर स्वर्ग पहुंचे हैं और आप सशरीर स्वर्ग में जाएंगे। इंद्र की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता मेरा परमभक्त है। इसलिए इसे भी मेरे साथ स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए, लेकिन इंद्र ने ऐसा करने से मना कर दिया।

काफी देर समझाने पर भी जब युधिष्ठिर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने के लिए नहीं माने तो कुत्ते के रूप में यमराज अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए (वह कुत्ता वास्तव में यमराज ही थे)। युधिष्ठिर को अपने धर्म में स्थित देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद देवराज इंद्र युधिष्ठिर को अपने रथ में बैठाकर स्वर्ग ले गए। यही जगह ‘स्वर्गारोहिनी’ के नाम से विख्यात हो गई।

Mahaprathnika Parva, the 17th chapter of the 18 chapters of the Mahabharata, states that after the battle of Kurukshetra, the five Pandava brothers took sannyasa with their wife Draupadi and left the palace and the kingdom, and went for penance. This journey of penance brought him between the mountains of the Himalayas. While moving towards heaven and on this last journey, everyone started getting the fruits of their actions one by one. Draupadi died first. His fault was his love for Arjuna more than the rest. Sahadeva could not complete this journey and was killed because he was too proud of his knowledge. After this Nakula and Arjun died, the reason for which was also their pride. Then came Bhima’s turn and his fault was his greed.

This long journey took the Pandavas to the lap of the Himalayas, but everyone died one by one except Yudhishthira. It is believed that Yudhishthira climbed the stairs of heaven here with hidden religion in the disguise of a dog. It is also told in this part of Mahabharata that without leaving the human body, this is the way to Swargarohini from where you can go to heaven.

Swarg Ka Rasta
Satopath Lake
Pandav Last Trip
Pandav Yatra

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2 سال پیش در تاریخ 1401/08/27 منتشر شده است.
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