श्री कृष्ण लीला | महासंग्राम महाभारत (भाग -1)

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693.2 هزار بار بازدید - 2 سال پیش - भक्त को भगवान से और
भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।

Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - दर्शन दो भगवान | Darshan Do Bhagwaan ...

Watch the story of "Mahaasangraam mahaabhaarat (Part -1)" now!

Watch Janmashtami Special Krishna Bhajan - Govind Madhav Jai Jai Gopal by Dev Negi - http://bit.ly/GovindMadhavJaiJaiGopal

महाभारत के युद्ध के शुरू होने से पहले कौरव और पांडव दोनों के शिविरों में प्रातः सूर्योदय से पहले अपने कुल के अनुसार यज्ञ पूजन करते हैं। अर्जुन अपनी यज्ञ की पूर्ण आहुति देने ही वाला था तो श्री कृष्ण अर्जुन को विजय प्राप्ति के लिए माँ दुर्गा को पूजा करनी के लिए कहते हैं। अर्जुन श्री कृष्ण की आज्ञा से माँ गौरी की आराधना करता है। और उनके नो रूपों की पूजा करता है। माँ गौरी अर्जुन से प्रसन्न हो कर अर्जुन को आशीर्वाद देती हैं। सूर्योदय होते ही युद्ध की तैयारी शुरू हो जाती है। कौरव और पांडव अपने अस्त्र शस्त्र लेकर युद्ध के लिए चल पड़ते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बन कर युद्ध में जाते हैं। हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र को संजय युद्ध भूमि का सम्पूर्ण वर्णन सुनाता हैं। सभी अपने अपने व्यूह की रचना करते हैं। युद्ध शुरू हो जाता है। भीम युद्ध का शंख नाद कर देता है। युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन श्री कृष्ण से कहता है की मैं ये देखना चाहता हूँ की हमसे युद्ध करने के लिए कौन कौन आया है मैं ये देखना चाहता हूँ। श्री कृष्ण अर्जुन के रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में ले आते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं की तुम्हें किस किस का युद्ध में वध करना होगा। अर्जुन मोह माया और प्रेम की भावनाओं में फँस कर विचलित हो जाता है और युद्ध में वीरता को भूल कर भावनाओं में फँस जाता है।

अर्जुन अपने बचपन की बातें याद करता है। और पितामह भीष्म और गुरु द्रोणाचार्य के साथ बीते पल को याद करता है। अर्जुन को अपने सगे सम्बन्धी की हत्या करने से भय लगने लगता है और उनके वध की सोच कर वह परेशान होने लगता है। श्री कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देते हैं और उसे उसके कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए प्रेरित करते हैं। धृतराष्ट्र संजय से इन सब बातों को होते हुए सुन रहा था। श्री कृष्ण अर्जुन को कल चक्र के बारे में समझाते हैं की कैसे एक आत्मा कैसे मृत्यु के द्वार से निकल कर नए जनम के बाद फिर मरना पड़ता है। श्री कृष्ण अर्जुन से मृत्यु को भय और किसी को मारने से चिंतित होने से मुक्त करते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश में कहते है की तुम जो भावनाओं में बह कर अपने कर्तव्य को छोड़ना चाहते हो तुम्हें उस पर नियंत्रण पाना होगा। श्री कृष्ण अर्जुन को अपनी इंद्रियों के बारे में बताते हैं की कैसे अपनी इंद्रियों को कैसे भोग विलास को त्यागने और उन का सही रूप से भोग करने के शक्ति जागृत करनी चाहिए। अर्जुन सभी बातों को सुन कर श्री कृष्ण से कहता है की मैं ये सब बातें तो समझ रहा हूँ पर में इसे अपना क्यों नहीं पा रहा तो श्री कृष्ण उसे बताते हैं की तुम अभि भी मोह और भावनाओं में फँसा हुआ है। तुम्हें इन सब मोह माया रिश्तेदारी के मोह को त्यागना होगा। अर्जुन फिर भी इन भावनाओं से मुक्त नहीं हो पता। महादेव भी पार्वती माता को श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन के दिए उपदेश को समझाते हैं।

और धृतराष्ट्र संजय से ये सब होते हुए सुन रहा था। श्री कृष्ण अर्जुन को मोह माया को त्यागने के लिए कहते हैं और सन्यासी बने बिना सन्यासी के कर्मों पर चले और इन भावनाओं को त्याग दे। श्री कृष्ण अर्जुन को अपना शिष्य बना कर अब तक ज्ञान दे रहे थे। श्री कृष्ण अर्जुन को कर्म योग का भी ज्ञान देते हैं जिस से वह कर्म करने के लिए प्रेरित हो सके। श्री कृष्ण उसे उदाहरण देते हुए समझाते हैं की कर्म को महत्व कैसे दिया जाता है। श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं वैसे ही तुम्हारा युद्ध करना कर्म है क्योंकि तुम एक क्षत्रिय हो। श्री कृष्ण निष्काम कर्म करने की शिक्षा देते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं की तुम्हें अपना कर्म करना चाहिए उस कर्म के फल की तुम्हें इच्छा त्याग देनी चाहिए। श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं की तुम कर्म कर सकते हो और उसका फल पाने का समय तुम निर्धारित नहीं कर पाओगे। इसलिए तुम्हें अपना कर्म करना चाहिए फल समय आने पर तुम्हें स्वयं मिल जाएगा। अर्जुन श्री कृष्ण से कहता है की यदि मुझे अपने कर्म करने पर फल मिलना निश्चित ही नहीं है तो मैं वो कर्म हाई क्यों करूँ।

श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं की यदि तुम निष्काम होकर कर्म करोगे तो तुम भय मुक्त रहोगे और अपने कर्म को बड़ी सहज ही कर पाओगे और तुम्हें उस कर्म को करने में आनंद भी आएगा। श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं की तुम इंद्रलोक अस्त्र शस्त्र लेने गए थे तब तुम अपने धर्म और कर्म योग से चल रहे थे तुमने उर्वशी के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया था। लेकिन अब तुम्हारा मन क्यों विचलित है। श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं की तुम्हें एक योगी की तरह साधना करनी के द्रिड़ होना चाहिए। तब तुम्हें कर्म करते हुए कर्म का बंधन नहीं होगा। श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं की कर्म के फल पर यदि तुम अपने मन को केंद्रित रखोगे तो तुम्हें फल की कामना के बंधन से मुक्त नहीं हो पाओगे और इस तरह तुम्हारा कर्म निरार्थक हो जाता है इसलिए तुम्हें मोह को त्यागना होगा। जैसे योग बल के कारण मनुष्य का मोह पर नियंत्रण हो जाता है और वह भगवान के दर्शन पा लेता है। यदि मनुष्य अपनी कामनाओं पर नियंत्रण करना चाहता है तो उसे अपनी हर फल पर और अपने पस जो है उस पर संतोष रखने से ही होगा।

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2 سال پیش در تاریخ 1401/07/09 منتشر شده است.
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