OSHO: आशाएं भटका रही हैं Aashayen Bhatka Rahi Hain
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3 سال پیش
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"आशा ही तुम्हें भटका रही
"आशा ही तुम्हें भटका रही है। फांसी लगी है आशा से ही। इसे थोड़ा समझो।" ओशो
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3 سال پیش
در تاریخ 1400/01/13 منتشر شده
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