Sidh Kunjika Stotra Hindi | Kunjika Stotra Hindi | सिद्ध कुंजिका हिंदी | कुंजिका स्तोत्र हिंदी

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Sidh Kunjika Stotra Hindi | Kunjika Stotra Hindi | सिद्ध कुंजिका हिंदी | कुंजिका स्तोत्र हिंदी

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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के फायदे / सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ / सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के गुप्त रहस्य

- निर्धन भक्त को धन संपन्न बनाना, रोगी को निरोगी बनाना, शत्रु भय से व्याकुल भक्त के शत्रुओं का मर्दन करना, भक्त को किसी भी तांत्रिक प्रयोग से सुरक्षित रखना इन देवी का स्वभाविक गुण है, जगत की माता होने के कारण यह सच्चे ह्रदय वाले अपने किसी भी बालक का दुःख यह नहीं देख पातीं तथा उसे तत्क्षण भय मुक्त करती हैं

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भगवान् शिव जी बोले-
देवी! सुनिए। मैं परम उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिसके मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप अर्थात पाठ सफल होता है ॥ १॥ कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है॥ २॥

केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है। यह कुंजिका अत्यन्त गुप्त और देवों के लिये भी दुर्लभ है ॥ ३॥ हे पार्वती! इसे स्वयोनि की भाँति प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिये।

यह उत्तम कुंजिकास्तोत्र केवल पाठके द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि (आभिचारिक) उद्देश्योंको सिद्ध करता है॥ ४॥ मन्त्र-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥

ॐ ग्लौं हूं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥ मन्त्र में आये बीजों का अर्थ जानना न सम्भव है, न आवश्यक और न वांछनीय। केवल जप पर्याप्त है।

हे रुद्रस्वरूपिणी ! आपको नमस्कार। हे मधु दैत्य को मारनेवाली ! आपको नमस्कार। कैटभ विनाशिनी को नमस्कार। महिषासुर को मारनेवाली देवी! आपको नमस्कार है ॥ १॥ शुम्भ का हनन करनेवाली और निशुम्भ को मारनेवाली! आपको नमस्कार है॥ २ ॥


हे महादेवि ! मेरे जपको जाग्रत् और सिद्ध करो। 'ऐंकार' के रूपमें सृष्टिस्वरूपिणी, 'ह्रीं' के रूपमें सृष्टिपालन करनेवाली ॥ ३॥ 'क्लीं' के रूपमें कामरूपिणी (तथा निखिल ब्रह्माण्ड) की बीजरूपिणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।
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श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डिजाप: शुभो भवेत्
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्
पाठमात्रेण संसिद्धयेत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि
नमस्ते शुम्भहन्त्रयै च निशुम्भासुरघातिनि
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तुते
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि
धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नम:
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धि कुरुष्व मे
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा

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3 ماه پیش در تاریخ 1403/02/19 منتشر شده است.
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