‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ एवं ‘मेरी कल्पना का आदर्श समाज’

331 بار بازدید - 4 سال پیش - ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’
‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ एवं ‘मेरी कल्पना का आदर्श समाज’    / lj7h-z9pt5   अभ्यास के प्रश्न उत्तर- प्रश्न- जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप में मानने के पीछे अंबेडकर के क्या तर्क हैं? उत्तर -आम्बेडकर जी जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का एक रूप इसलिए नहीं मानते, क्योंकि यह विभाजन स्वाभाविक नहीं है। यह मानव की रुचि पर आधारित नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें व्यक्ति की क्षमता और योग्यता की उपेक्षा की जाती है। यह माता-पिता के सामाजिक स्तर को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती है अर्थात् जन्म आधारित है। जन्म से पूर्व ही मनुष्य के लिए श्रम विभाजन करना पूर्णतया अनुचित है। जाति-प्रथा आदमी को आजीवन एक ही व्यवसाय से जोड़ देती है। विपरीत परिस्थितियों में भी व्यवसाय बदलने की अनुमति नहीं होती, भले ही मनुष्य को भूखा मरना पड़े। प्रश्न- जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी वह भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है? उत्तर- जाति-प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा व्यवसाय चुनने की आज्ञा नहीं देती, जो उसका पैतृक व्यवसाय ना हो; चाहे वह उस व्यवसाय में पारंगत ही क्यों न हो। आधुनिक औद्योगिक युग में उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व तकनीक में लगातार विकास हो रहा है और कभी-कभी अचानक भी ऐसे परिवर्तन होते हैं कि व्यक्ति व्यवसाय बदलने के लिए बाध्य हो जाता है। ऐसे में यदि जाति-प्रथा व्यवसाय बदलने की अनुमति ना दे, तो भुखमरी और बेरोजगारी अवश्य आएगी। प्रश्न- लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है? उत्तर- आम्बेडकर जी के अनुसार ‘दासता’ केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं मानना चाहिए। दासता में वह स्थिति भी शामिल है, जिससे कुछ मनुष्यों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्य का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता ना होने पर भी पाई जा सकती है। उदाहरण के रूप में कहा जा सकता है कि जाति-प्रथा के समान समाज में ऐसे लोगों का वर्ग भी संभव है, जिन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध किसी व्यवसाय को अपनाना पड़ सकता है। उदाहरण के रूप में सफाई करने वाले कर्मचारी इसी प्रकार के कहे जा सकते हैं। प्रश्न- शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क है? उत्तर- आंबेडकर यह जानते हैं कि शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि से लोगों में असमानता तो हो सकती है, किंतु फिर भी वह समता के व्यवहार्य सिद्धांत को अपनाने का आग्रह करते हैं। इस संदर्भ में उनका यह तर्क है कि यदि हमारा समाज अपने सदस्यों का अधिकतम प्रयोग प्राप्त करना चाहता है, तो इसे समाज के सभी लोगों को आरम्भ से ही समान अवसर और समान व्यवहार प्रदान करना होगा। वंश में जन्म लेना या सामाजिक परंपरा व्यक्ति के वश में नहीं है, अतः उस आधार पर निर्णय लेना उचित नहीं है। हमारे राजनीतिज्ञों को भी सब लोगों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता को विकसित करने का उचित अवसर मिलना चाहिए। प्रश्न- सही में आम्बेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है; जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं? उत्तर- इस विषय में बाबा साहेब आंबेडकर से हम पूरी तरह सहमत हैं। कारण यह है कि कुछ लोग किसी वंश में पैदा होने के कारण ही उत्तम व्यवहार के हकदार बन जाते हैं। यदि हम थोड़ा विचार करें, तो उनमें उनका अपना क्या योगदान है? अतः समय की माँग यह है कि जातिवाद का उन्मूलन किया जाए और सभी को समान भौतिक सुविधाएँ और स्थितियाँ प्रदान की जाएँ। प्रश्न- आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे/समझेंगी? उत्तर- समाज के तीसरे तत्व ‘भ्रातृता’ अर्थात् भाईचारे पर विचार करते हुए लेखक ने अलग से स्त्रियों का उल्लेख नहीं किया, परंतु लेखक ने समाज की बात कही है और स्त्रियाँ समाज से अलग नहीं होती, बल्कि स्त्री और पुरुष दोनों के मिलने से ही समाज बनता है। लेखक कहता है कि ऐसे समाज के बहुविध हितों में सब का समभाग होना चाहिए और सब को उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। उनके द्वारा प्रयुक्त ‘सबका’ और ‘सबको’ शब्द वृहत्तर अर्थ प्रस्तुत करते हैं। इन शब्दों का संबंध केवल पुरुषों से ही नहीं, बल्कि स्त्रियों, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब आदि सभी से है। हम इस भ्रातृता’ शब्द से सहमत हैं। बहु-विकल्पी प्रश्नोत्तर – प्रश्न – ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ अध्याय के लेखक का नाम क्या है? (1) डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर (2) हजारी प्रसाद द्विवेदी (3) विष्णु खरे (4) धर्मवीर भारती उत्तर- डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर प्रश्न- लेखक के अनुसार हिंदू धर्म की जाति-प्रथा व्यक्ति को कौन सा पेशा चुनने की अनुमति देती है? (1) स्वतंत्र पेशा (2) कर्मानुसार (3) कार्यकुशलता के अनुसार (4) पैतृक पेशा उत्तर- पैतृक पेशा प्रश्न- स्वतंत्रता, समता, भ्रातृता पर आधारित समाज को अंबेडकर ने कैसा समाज कहा है? (1) अच्छा (2) महत्वपूर्ण (3) आदर्श (4) स्वीकार्य उत्तर -आदर्श प्रश्न- किस क्रांति में ‘समता’ शब्द का नारा लगाया गया था? (1) रूसी क्रांति में (2) जर्मन क्रांति में (3) फ्रांसीसी क्रांति में (4) जापानी क्रांति में उत्तर- फ्रांसीसी क्रांति में प्रश्न- लेखक के अनुसार ‘दासता’ का संबंध किससे नहीं है? (1) समाज से (2) कानून से (3) शिक्षा से (4) धन से उत्तर- कानून से
4 سال پیش در تاریخ 1399/11/13 منتشر شده است.
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