Ghazal | Dushyant Kumar | रोज़ रात को जब बारह का गज़र होता है | Hindi Poetry | Hindi Ghazal | ग़ज़ल | AT
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3 سال پیش
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कोई रहने की जगह है
कोई रहने की जगह है मिरे सपनों के लिए
वो घरौंदा ही सही मिट्टी का भी घर होता है
रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है
यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है
सिर से सीने में कभी पेट से पाँव में कभी
इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है
ऐसा लगता है कि उड़ कर भी कहाँ पहुँचेंगे
हाथ में जब कोई टूटा हुआ पर होता है
सैर के वास्ते सड़कों पे निकल आते थे
अब तो आकाश से पथराव का डर होता है
हिंदी गजलों की दुनिया में अगर किसी का सबसे बड़ा योगदान है तो वह नाम है दुष्यंत कुमार त्यागी जिसने दुनिया को यह सिखाया की ग़ज़लें सिर्फ उर्दू फारसी अरबी की मोहताज ही नहीं है जिन्होंने हिंदी भाषियों को यह जज्बा दिया कि वह भी हिंदी में गजलों को लिख, पढ़, सुन सकते हैं । यह हमारी छोटी सी कोशिश है उनकी बेहतरीन गजलों का एक संग्रह बनाकर संजोने की जिससे आने वाली पीढ़ियों को इन्हें सुनकर पढ़कर प्रेरणा मिलती रहे ।
हिंदी ग़ज़ल सम्राट दुष्यंत कुमार जी की कुछ बेहतरीन गजलो को उनकी इस प्ले लिस्ट "ग़ज़ल संग्रह" दुष्यंत कुमार में सुन सकते हैं ।
#Ghazal #DushyantKumar
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सिर से सीने में कभी पेट से पाँव में कभी
इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है
ऐसा लगता है कि उड़ कर भी कहाँ पहुँचेंगे
हाथ में जब कोई टूटा हुआ पर होता है
सैर के वास्ते सड़कों पे निकल आते थे
अब तो आकाश से पथराव का डर होता है
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3 سال پیش
در تاریخ 1399/12/14 منتشر شده
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