हिंदी कविता -1 | मैं नीर भरी दुःख की बदली | Sanjoli pandey
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4 سال پیش
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प्रवाहिनी
हिंदी के महान कवियों
प्रवाहिनी
हिंदी के महान कवियों की अद्भुत कविताओं को संगीतबद्ध करके उन्हें आपके सामने लाने
के प्रयास का नाम है प्रवाहिनी |
प्रवाहिनी आपको कविताओं की बहती धारा में बहाने की एक कोशिश है | आप कविताओं की नाव पर धारा के साथ प्रवाहित होते जाइये और प्रवाहिनी आपको निश्चय की उस पार पहुंचाने की पूरी कोशिश करेगी |
मैं नीर भरी दुख की बदली !
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली !
मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली !
मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली !
पथ को न मलिन करता आना,
पद चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली !
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली !
महादेवी वर्मा जी
लोकगायिका संजोली पाण्डेय
जन्म- अयोध्या ,उत्तर प्रदेश ,1995
अध्यक्ष ~ धरोहर -लोककलाओं का संगम (NGO)
लोकगीतों और लोकविधाओं की संरक्षिका
संगीत-सचिन अमित
रिकॉर्डिस्ट-सागर
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4 سال پیش
در تاریخ 1399/06/23 منتشر شده
است.
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