पृथ्वीराज रासो महाकाव्य Prithviraj Raso : Chand Baradayi (summary in Hindi) BA 3rd sem DSC Hindi

53.3 هزار بار بازدید - 2 سال پیش - पृथ्वीराज रासो  महाकाव्य का सारांश,
पृथ्वीराज रासो  महाकाव्य का सारांश, विशेषताएँ और प्रामाणिकता
रासो शब्द का अर्थ : हिंदी साहित्य का आदिकाल वीरगाथाओं के लिए प्रसिद्ध है| आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस काल की 12 पुस्तकें विवेचन योग्य मानी हैं, जिनमें से 6 रासो ग्रन्थ हैं| ‘रासो’ शब्द के अर्थ के सम्बन्ध में विद्वानों के विभिन्न मत रहे हैं|
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार 'रासो' का अर्थ है, रसायन (काव्य में जीवन की विविध वृत्तियों का मिलन)
रामकुमार वर्मा के अनुसार रासो का अर्थ है 'रहस्य' (काव्य में जीवन के रहस्यों का उद्घाटन) कुछ विद्वान रासो शब्द का अर्थ युद्ध मानते हैं| रासो साहित्य में राजाओं के युद्धों का वर्णन अधिकतर मिलता है |
'पृथ्वीराज रासो' रचनाकार : 'पृथ्वीराज रासो' यह हिंदी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है जिसमें सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन और चरित्र का वर्णन किया गया है। 1165 से 1192 के बीच पृथ्वीराज चौहान का राज्य अजमेर से दिल्ली तक फैला हुआ था। 'पृथ्वीराज रासो' के रचयिता चंद बरदाई पृथ्वीराज के बचपन के मित्र तथा उनके राजकवि थे और युद्ध के समय वीर रस की कविताओं से सेना को प्रोत्साहित भी करते थे।
कथानक : 'पृथ्वीराज रासो' की कथा संक्षेप में इस प्रकार है| दिल्ली के तत्कालीन राजा अनंगपाल की दो बेटियां थीं - सुंदरी और कमला| सुंदरी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल राठोड से हुआ था जिनका पुत्र था, जयचंद राठोड| कमला का विवाह अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान से हुआ था जिनका पुत्र था पृथ्वीराज चौहान| अनंगपाल को पुत्र नहीं था, और पृथ्वीराज अपने नाना राजा अनंगपाल को अधिक प्रिय थे, इसलिए उन्होंने पृथ्वीराज को गोद लिया जिससे दिल्ली और अजमेर का राज्य एक हो गया और पृथ्वीराज दिल्ली के सम्राट बने | जयचंद राठोड को यह बात अच्छी नहीं लगी और मन में शत्रुता की भावना जाग उठी |
कुछ समय पश्चात् राजा जयचंद ने राजसूय यज्ञ करने का और इसी अवसर पर अपनी कन्या संयोगिता का स्वयंवर भी करने का संकल्प किया। राजसूय का निमंत्रण उसने दूर दूर तक के राजाओं को भेजा और पृथ्वीराज को भी उसमें सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित किया। पृथ्वीराज और उसके सामन्तों को यह बात खली कि बहुराजाओं के होते हुए भी कोई अन्य राजसूय यज्ञ करे, इसलिए पृथ्वीराज ने जयचंद का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया। जयचन्द ने फिर भी राजसूय यज्ञ करना ठानकर यज्ञमण्डप के द्वार पर द्वारपाल के रूप में पृथ्वीराज की एक प्रतिमा स्थापित कर दी। पृथ्वीराज इस घटना से क्षुब्ध हुए| इसी बीच उन्हें यह भी समाचार मिला कि जयचंद की कन्या संयोगिता पृथ्वीराज से ही विवाह करना चाहती है और जयचंद ने उसकी इस इच्छा पर क्रोधित होकर उसे अलग गंगातटवर्ती एक महल में भिजवा दिया है। पृथ्वीराज ने अपनी सेना के साथ कन्नौज पर आक्रमण कर यज्ञ का विध्वंस किया और संयोगिता का अपहरण कर दिल्ली ले आए , वहां संयोगिता से विवाह किया |  
इससे पहले मुग़ल आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज पर कई आक्रमण किए, पर पृथ्वीराज को हरा नहीं पाया, आखिर बड़ी भारी सेना लेकर फिर आक्रमण किया। पृथ्वीराज के अनेक शूर योद्धा और सामंत कन्नोज युद्ध में ही मारे जा चुके थे। परिणामत: पृथ्वीराज की सेना रणक्षेत्र से लौट पड़ी और मुहम्मद गोरी विजयी हुआ। पृथ्वीराज को बंदी बनाकर गजनी ले जाया गया। वहाँ पर मुहम्मद गोरी ने उनकी आँखें निकलवा लीं।
जब चंद बरदाई को पृथ्वीराज के कष्टों का समाचार मिला, वह अपने मित्र तथा स्वामी के उद्धार के लिये साधू के वेष में गजनी चल पड़ा। वह मुहम्मद गोरी से मिला। वहाँ आने का कारण पूछने पर उसने बताया कि वह बद्रीकाश्रम जाकर तप करना चाहता था किंतु एक इच्छा उसके मन में थी, वह पृथ्वीराज का शब्दवेधी बाण चलाने का  कौशल देखकर अपनी इच्छा पूरी करना चाहता था। मुहम्मद गोरी ने उसकी यह माँग स्वीकार कर ली और तत्संबंधी सारा आयोजन कराया।  पृथ्वीराज ने भी अपना संघान कौशल दिखाने के बहाने शत्रु के वध करने का चंद बरदाई का आग्रह स्वीकार कर लिया। पृथ्वीराज से स्वीकृति लेकर चंद मुहम्मद गोरी के पास गया और कहा कि वह लक्ष्यवेध तभी करने को तैयार हुआ है, जब वह (मुहम्मद गोरी) स्वयं अपने मुख से उसे तीन बार लक्षवेध करने का आह्वाहन करे। मुहम्मद गोरी ने इसे भी स्वीकार कर लिया। शाह ने ज्यों ही तीसरा फर्मान दिया, वह पृथ्वीराज के बाण से घायल होकर वह धराशायी हुआ। पृथ्वीराज और चंद का भी अंत हुआ। यहाँ पर 'पृथ्वीराज रासो' की कथा समाप्त होती है। माना जाता है कि चंद के पुत्र जल्हण ने पिता की मृत्यु के बाद अधूरा काव्य पूरा किया
विशेषताएँ : पृथ्वीराज रासो यह वीर रस का सर्वश्रेष्ठ काव्य है। कन्नौज युद्ध के पूर्व संयोगिता का प्रेम और विरह तथा युद्ध के बाद पृथ्वीराज संयोगिता के मिलन और प्रणय का वर्णन भी अत्यन्त आकर्षक हैं। वीर रस तथा श्रृंगार रस के अलावा अन्य रसों का भी अभाव नहीं है। युद्ध क्षेत्र का वर्णन बड़े ही कौशल के साथ किया गया है तथा प्रकृति चित्रण सुंदर है। भाषाशैली  प्रभावपूर्ण है|  उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग भी अधिक हुआ है। नाना प्रकार की भाषाएँ इस ग्रन्थ में मिलती हैं।
प्रामाणिकता : पृथ्वीराज रासो यह ग्रंथ प्रामाणिक है अथवा अप्रामाणिक; अर्थात इसमें दिए गए तथ्य या घटनाएँ ऐतिहासिक हैं या नहीं इसपर बहुत विवाद हुए| हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे अर्धप्रामाणिक रचना माना है।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु 1192 में और मुहम्मद गोरी की मृत्यु 1206 में हुई थी, इसलिए यह कहना असंभव है कि पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को मार डाला। महाराजा पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद मुहम्मद गोरी ने एक दशक से अधिक समय तक शासन करना जारी रखा| भलेही यह ग्रन्थ इतिहास की कसौटी पर न उतरता हो, परन्तु हिंदी का प्रथम महाकाव्य, वीर रस का श्रेष्ठ काव्य तथा पृथ्वीराज चौहान जैसे पराक्रमी राजा की गाथा होने के कारन इसका महत्त्व सर्वोपरि है|
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2 سال پیش در تاریخ 1401/11/07 منتشر شده است.
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