हिंदी कविता: जल्दी में: कुँवर नारायण: Jaldi Mein: Kunwar Narayan: Hindi Poetry: Hindi Kavita

Voysuhz
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20.5 هزار بار بازدید - 3 سال پیش - प्रस्तुत कविता बहुत जल्दी में
प्रस्तुत कविता बहुत जल्दी में रहने वाले तरक्की-आफ्ता लोगों से कुंवर नारायण का एक सवाल है।  प्रसिद्ध कवि कुंवर नारायण ने अपनी व्यापक सोच की वजह से आदमी और उसके जीवन को बड़े ही तीखे ढंग से परिभाषित किया है।  भागम भाग वाले इस युग में यह कविता लोगों को एक गहरा ठहराव देती है।

Gratitude:
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Poetry:  Kunwar Narayan
BGM:  Dance of the U-boat by Aakash Gandhi (YT Audio Library)
Voice:  #Voysuhz
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जल्दी में - कुंवर नारायण

प्रियजन!
मैं बहुत जल्दी में लिख रहा हूं
क्योंकि मैं बहुत जल्दी में हूं लिखने की
जिसे आप भी अगर
समझने की उतनी ही बड़ी जल्दी में नहीं हैं
तो जल्दी समझ नहीं पायेंगे
कि मैं क्यों जल्दी में हूं ।

जल्दी का जमाना है
सब जल्दी में हैं
कोई कहीं पहुंचने की जल्दी में
तो कोई कहीं लौटने की …

हर बड़ी जल्दी को
और बड़ी जल्दी में बदलने की
लाखों जल्दबाज मशीनों का
हम रोज आविष्कार कर रहे हैं
ताकि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती हुई
हमारी जल्दियां हमें जल्दी से जल्दी
किसी ऐसी जगह पर पहुंचा दें
जहां हम हर घड़ी
जल्दी से जल्दी पहुंचने की जल्दी में हैं ।

मगर….कहां ?
यह सवाल हमें चौंकाता है
यह अचानक सवाल इस जल्दी के जमाने में
हमें पुराने जमाने की याद दिलाता है ।

किसी जल्दबाज आदमी की सोचिए
जब वह बहुत तेजी से चला जा रहा हो
एक व्यापार की तरह
उसे बीच में ही रोक कर पूछिए,
‘क्या होगा अगर तुम
रोक दिये गये …इसी तरह
बीच ही में एक दिन
अचानक….?’

वह रुकना नहीं चाहेगा
इस अचानक बाधा पर उसकी झुंझलाहट
आपको चकित कर देगी ।

उसे जब भी धैर्य से सोचने पर बाध्य किया जायेगा
वह अधैर्य से बड़बड़ायेगा ।
‘अचानक’ को ‘जल्दी’ का दुश्मान मान ….रोके जाने से घबड़ायेगा ।
यद्यपि   आपको आश्चर्य होगा
कि इस तरह रोके जाने के खिलाफ
उसके पास कोई तैयारी नहीं…


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3 سال پیش در تاریخ 1400/03/06 منتشر شده است.
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