भारत की आयु बड़ी लंबी है। #viral #youtube #bharat #aatmanirbharbharat #nalanda

24 بار بازدید - 3 ماه پیش - मित्रों भारत का निर्माण हस्तिनापुर
मित्रों भारत का निर्माण हस्तिनापुर के राजा भरत से ही नहीं हुआ था। भारत पहले आर्यों अनार्य, जिसे द्रविण आदि कहते हैं, उसकी सयुंक्त रूप से या पवित्र भूम थी। यदि आप इतिहास में जाएंगे तो देवताओं एवं असुरों के माता दो और पिता एक थे मित्रों भारत का जन्म यहीं से हुआ यह भारत तीनों लोकों का भार लेकर महाभारत की रथ पर श्रीं कृष्ण के रूप में हनुमंत पताका के नीचे अर्जुन के रूप में धर्म के रथ पर बैठा था दूसरी तरफ कर्ण था कर्ण किसी भी प्रकार से अर्जुन से कम नहीं बल्कि अधिक ही था। इसी कारण श्रीं कृष्ण ने कहा कि हे अर्जुन तुम भारत हो भार लेकर के धर्म का चल रहे हो। लेकिन कर्ण तुमसे भी अधिक धर्मात्मा है जिसके साथ तुम युद्ध लड़ रहे हो लेकिन जब धर्मात्मा धर्म के भूम पुर धर्म के साथ बल ज्ञान व अभिमान को धारण करता है तो हे भारत इतिहास एवं गीता महाभारत भी कहती हैं कि अर्जुन को कर्ण की ताकत श्रीं कृष्ण के कहने पर भी दिखाई नहीं पड़ता है इसी कारण श्रीं कृष्ण ने (हनुमंत) पटाखे को पल भर के लिए हटा दिया और अर्जुन से कहा अब तुम कर्ण की ताकत को तौलो जो की तुमको कमजोर एवम शुद्र दिखता है जब कर्ण ने बाड़ मारा तो अर्जुन का घमंड अभिमान धराशाही होकर के युद्ध भूम के बाहर जा कर गिरा अर्जुन केवल लज्जित ही नहीं हुआ बल्कि उसे भारत एवम हनुमंत पताखे को धारण करने वाले वीर हनुमान के आष्टा रुद्र अवतार हनुमंत एवम भगवान शिव के संबंधों का ज्ञान भी हुआ भगवान शिव भी महाभारत के युद्ध में शामिल थे। लेकिन यह बात धर्म ग्रंथो में नहीं लिखा गया कारण था यह सुष्म स्वरुप को धारण करके हनुमंत पताखे पर बैठे थे कोई धर्मात्मा पुरुष धर्म अधर्म के युद्ध से भाग नहीं सकता भागना युद्ध में कमजोरी नहीं है। यह कमजोरी तब आती हैं जब सामने वाला अधिक बलशाली है इसीलिए कायरों से कहा जाता हैं कि पहले झुंड में संगठित होकर के बलशाली बनो तभी जंगल के राजा शेर से युद्ध करो भारत की यह पवित्र भूम ऋषियों की ही थी। क्योंकि ऋषि ब्रम्हज्ञानी थे इसी कारण इन्होंने तप का मार्ग गृहस्थ आश्रम में रहकर के चुना। इन्होंने सत्ता को भगवान सूर्य को सौंप दिया मूर्ख लोग ख़ुद को विद्यवान घोषित करते हैं सूर्य तो समूचे धरती को अपनी ऊर्जा के माध्यम से समूचे धरती को समान रूप से प्रकाश देते हैं इसी कारण भारत की ही नहीं समूचे धरती की सत्ता सूर्य को सौंप गई और देवताओं एवम असुरों के सहयोग से यह सत्ता रघुकुल को सौंपी गई कारण था कि उस समय का रघुकुल ही इस योग्य था, व ब्राह्मण एवम शूद्रों का ही राजा नही बना पशु पक्षी भी उसके अधीन किए गए और वचन दिया गया कि आप पिता के समान पशु पक्षी की भी रक्षा व भोजन कि व्यवस्था करेंगे हम ऋषि गड़ भी सूर्य पताखा व भगवान शिव का दंड शिवदंड देखकर यह वचन देते हैं कि हम तब तक आपके अधीन रहेंगे जब तक कि आप ब्राह्मण लोग व धर्म की रक्षा करेंगे जिस दिन रघुकुल का शिवदंड लुप्त हुआ उसी दिन से धरती से सतयुग चला गया रघुकुल में भी शिकायत की परंपरा प्रकट हुए रघुकुल खुद ही पशु की रक्षा से खुद को मुक्त किया। भगवान राम ने रघुकुल परंपरा को आगे बढ़ाया और उन्हों ने माना कि रघुकुल ने भी नियम को तोड़ा क्योंकि कोई भी पिता अपनी अधीन रहने वालों की हत्या या शिकार नहीं कर सकता मृच एवम बाली दोनो ही अपराधी थे यह मैं नहीं कह सकता कारण है कि मैं अपराध व उसकी जन्मदाता जो मन हैं उसको मैं कुछ ही सही जानता हूं इसी ने सबको अपने मार्ग से विचिलित किया इसी कारण भारत से धर्म के पटाखे को उतार दिया गया इसी के स्थान पर तिरंगा बना दिया इसे ही हम अब धर्म निरपेक्षता का प्रतिक मानते हैं इस कारण हमें धर्म कि आवश्यकता अब नही रही लेकिन भारत तो धर्म का हैं इसे धर्म निरपेक्षता तोड़ नहीं सकती क्योंकि सूर्य अब भी प्रकट हैं इसका प्रकाश अपना मुख अभी धरती से मोड़ नहीं सकती इसलिए हे भारत तुम सो मत और पुनः जगो देखो विश्वकर्मा अभी धर्म के पहिए को अपने ज्ञान के माध्यम से पुनः धर्म कि रक्षा के लिए वह संपूर्ण मानवता की रक्षा के लिए तैयार कर रहे हैं रथ की पहियों को हे ज्ञानी जन धर्मचक्र कहा जाता हैं इसी से प्रेणा लेकर के हमने चक्र सुदर्शन भी इसी के रचना के आधार पर बनाया था लेकिन मैं परमानंद इस चक्र को कभी धारण हमने खुद कभी नहीं किया जो स्मार्थवन था उसी को हमने सौप दिया मेरे चक्र सुदर्शन में हज़ार धर्म की तिल्ली थी इसी तिल्ली को हमने हज़ार ऋषि एवम मुनि सन्याशी एवम ब्रम्हज्ञान को सौंप दिया और मैं खुद केंद्र बिंदु जिसे तुम शूद्र देखते हो उसी को लेकर के मैं पंक्तिपावन कहके बीच में ही धर्म के पहिए में ही बैठ गया और कहा हे श्री कृष्ण हे विष्णू हे दुर्गा व समस्त देवियों व देव्ताओं के ग्रह नक्षत्रों तुम इसी मेरे ब्रह्म एवम धर्म चक्र सुदर्शन को चलाओ कारण की यह मृत लोक है यह सारे हे अर्जुन आज भी उसी अवस्था में पड़े हैं जिस अवस्था में तुमने महाभारत एवम बंगाल की एवम हिरोशिमा के परमारू बम के रूप में देखा था इन पापी राजाओं भूख एवम प्रयाश सतयुग से लेकर के कलयुग व अब तक नही मिटी इस कारण हे विश्वकर्मा तुम धर्म की पहिए के साथ उस पहिये में एक किल्ली भी दालों ताकि मैं इन पापियों के वध के लिए अर्जुन की तलाश में भारत को लेकर करूं क्योंकि भारत वह भूम है जहां भगवान शिव ने प्रथम बार चरण रखा था उसी को हम धर्म पादूका कहते हैं इस पादुका को कराहे के समान बना कर के उसे धर्म की तिल्ली पर रख दो मैं पूर्ण रथ को तैयार मैं ख़ुद कभी नहीं करता इसी कारण देवता भी कहते हैं की परमब्रह्म तुम शांत हो जाओ तुम धर्म एवम मानवता का भार भारत को सौप दो भारत से कोई न कोई सोया अर्जुन अवस्य ही उठेगा और वही भारत एवम धर्म चक्र अशोक भी इसी धर्म चक्र से ज्ञान देने से मिटेगा।
3 ماه پیش در تاریخ 1403/04/02 منتشر شده است.
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