पक्खी प्रतिक्रमण। Daivsik Pakkhi Pratikraman। Pakkhi Pratikraman। Shravak Pakkhi Pratikraman
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4 سال پیش
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दैवसिक पक्खी प्रतिक्रमण। पक्खी प्रतिक्रमण।
दैवसिक पक्खी प्रतिक्रमण। पक्खी प्रतिक्रमण। Daivsik Pakkhi Pratikraman। Pakkhi Pratikraman। Shravak Pakkhi Pratikraman। Jain Pratikraman।
जय जिनेन्द्र,
जैन श्रावक धार्मिक अनुष्ठान का इच्छुक बन १२ व्रतों को स्वीकार करता है, १२ व्रतों से उसका अव्रत द्वार अल्प हो जाता है, संसार के अंतर्गत लगने वाला दोष कम हो जाता है, श्रावक १२ व्रती तो बन जाता है और नियम भी स्वीकार कर लेता है, मगर कई बार जाने-अनजाने उन व्रतों में दोष लग जाता है, प्रतिक्रमण श्रावक को उन्ही दोषों से निवृत करवाता है और शुद्ध बनता है|
एक तरह से प्रतिक्रमण आध्यात्मिक स्नान है, जिससे आत्मा पर लगें कर्म रुपी रज से आत्मा शुद्ध हो जाती है|
प्रतिक्रमण ५ प्रकार के होते है-
१. दैवसिक- प्रतिदिन किया जाने वाला शाम सूर्यास्त के साथ प्रारम्भ होता है, इसमें दिन भर में लगे दोषों की आलोचना करते है|
२. रायसिक- सुबह सूर्योदय से ४८ मिनट पहले प्रारम्भ करना होता है, इसमें रात्रि में लगे दोषों की आलोचना करते है|
३. पाक्षिक या पक्खी- १५ दिन में पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा, अमावस्या या तिथि बढ़ने या घटने पर चतुर्दशी को किया जाने वाला शाम सूर्यास्त के साथ प्रारम्भ होता है, इसमें १५ दिनों में लगे दोषों की आलोचना करते है|
४. चातुर्मासिक पाक्षिक- ये वर्ष में ३ बार आषाढ़ी पूर्णिमा या चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा या चतुर्दशी और फाल्गुन पूर्णिमा या चतुर्दशी को किया जाने वाला शाम सूर्यास्त के साथ प्रारम्भ होता है, इसमें ४ महीनों में लगे दोषों की आलोचना करते है|
५. सांवत्सरिक- वर्ष में एक बार भाद्रव शुक्ल पंचम या चतुर्थी को किया जाने वाला शाम सूर्यास्त के साथ प्रारम्भ होता है, इसमें वर्ष भर में लगे दोषों की आलोचना करते है|
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जय जिनेन्द्र,
जैन श्रावक धार्मिक अनुष्ठान का इच्छुक बन १२ व्रतों को स्वीकार करता है, १२ व्रतों से उसका अव्रत द्वार अल्प हो जाता है, संसार के अंतर्गत लगने वाला दोष कम हो जाता है, श्रावक १२ व्रती तो बन जाता है और नियम भी स्वीकार कर लेता है, मगर कई बार जाने-अनजाने उन व्रतों में दोष लग जाता है, प्रतिक्रमण श्रावक को उन्ही दोषों से निवृत करवाता है और शुद्ध बनता है|
एक तरह से प्रतिक्रमण आध्यात्मिक स्नान है, जिससे आत्मा पर लगें कर्म रुपी रज से आत्मा शुद्ध हो जाती है|
प्रतिक्रमण ५ प्रकार के होते है-
१. दैवसिक- प्रतिदिन किया जाने वाला शाम सूर्यास्त के साथ प्रारम्भ होता है, इसमें दिन भर में लगे दोषों की आलोचना करते है|
२. रायसिक- सुबह सूर्योदय से ४८ मिनट पहले प्रारम्भ करना होता है, इसमें रात्रि में लगे दोषों की आलोचना करते है|
३. पाक्षिक या पक्खी- १५ दिन में पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा, अमावस्या या तिथि बढ़ने या घटने पर चतुर्दशी को किया जाने वाला शाम सूर्यास्त के साथ प्रारम्भ होता है, इसमें १५ दिनों में लगे दोषों की आलोचना करते है|
४. चातुर्मासिक पाक्षिक- ये वर्ष में ३ बार आषाढ़ी पूर्णिमा या चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा या चतुर्दशी और फाल्गुन पूर्णिमा या चतुर्दशी को किया जाने वाला शाम सूर्यास्त के साथ प्रारम्भ होता है, इसमें ४ महीनों में लगे दोषों की आलोचना करते है|
५. सांवत्सरिक- वर्ष में एक बार भाद्रव शुक्ल पंचम या चतुर्थी को किया जाने वाला शाम सूर्यास्त के साथ प्रारम्भ होता है, इसमें वर्ष भर में लगे दोषों की आलोचना करते है|
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4 سال پیش
در تاریخ 1399/03/07 منتشر شده
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