Vastu Purush birth story part 1 ǀ वास्तु पुरुष रहस्य ǀ वास्तुपुरुष जन्म कथा ǀ Know Vastu Mandir

VASTU-AJIT
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1.6 هزار بار بازدید - پارسال - पुराणाेक्त वास्तु पुरूष उत्पत्ती एवम्
पुराणाेक्त वास्तु पुरूष उत्पत्ती एवम् जन्म कथा
the Puranokta Vastu Purush origin and birth story.
पुरान्धवधे रूद्रललाटात पतित: क्षिताै । स्वेद स्तस्मात समुदभूतं भूतमत्यन्त दु:सहम् । चत्वारिशद् युता: पंच वास्तूदेहे स्थिता: सुश:। देव्याेष्टाे बाह्यगास्तेषां वसनाव्दास्तुरूच्यते । (प्रासादमंडन 8.96.98)  
इस वास्तु पुरूष के देहपर अंदर की कक्षा मे पैंतालीस देवता विराजमान है । और बाहर की कक्षा मे आठ देवीयाँ स्थानापन्न है । इसलिए भवन, वास्तु, Factory, दुकान,खुली जगह काे वास्तु कहते है । समरांगण सूत्रधार, विश्वकर्मप्रसाद, भवनभास्कर आदि संस्कृत ग्रंथाेमे वास्तु पुरूष उत्पत्ती एवम् जन्म कथा वर्णीत है ।     Popular story of Vastu purush as per Matsya puran  त्रेतायुग मे अंधकासुर नामक महापराक्रमी, क्रूर असूर था। अंधकासूर के अत्याचार से प्रजाजन, स्वर्गनिवासी देवता,गंधर्व पीडित थे ।  भाेलेनाथ ने सबकाे जीवन के अभय का वचन दिया । भाेलेनाथ के वचन सुनकर अंधकासूर काे गुस्सा आ गया और भगवान शंकर काे ही युद्ध की चुनाैती दि ।  दाेनाे बलशाली और अनेक संहारक शस्त्राेके अधिपती थे इसलिए युद्ध सालाे चला ।  माथा पाेंछते समय भाेलेनाथके पसीने की कुछ बुंदे युद्धभूमी पर गिरी । उन बुंदाेसे विराट पुरूषभूत की उत्पत्ती हुई। देवताओंकाे लगा की यह राक्षसाेंकी ओर से काेई मायावी असुर पुरूष है । असुराेंकाे लगा की यह देवताेओंकी ओर से काेई नया तेजस्वी देवता प्रकट हाे गया है । विराट पुरूषने भाेलेनाथ काे नमन किया और अंधकासूर का संहार किया । उसका रक्त जमीन पर गिरने से पहिले हि उसे निगल लिया । पुरूषभूतने उग्र तपाचरण से भगवान शंकर काे प्रसन्न किया ।आकाश, जमीन और पाताल में रहने वाले सभी प्राणी मेरा भाेजन बने ऐसा त्रैलाेक्यभक्षण वर प्राप्त किया । वरप्राप्ती के बाद विराटपुरूषने प्राणी, ऋषिमुनी, असूर, आकाशस्थ देवता इन्हे अपना भक्ष बनाना शुरू किया । इस जान पे आई बला से मुक्ती पाने के लिए ,छुटकारा पाने के लिए सभी भयभीत देवता, ऋषिगण सृष्टीरचैता ब्रह्मदेव काे शरण गये । और पुरूषभूतसे रक्षा करणे की प्रार्थना की । ब्रह्माजी ने उसका नाम धरतीपुत्र रख दिया ।
ब्रह्मदेव की नेतृत्वमे सभी देवता, गंधर्व, असूर, ऋषीमुनी आदि लाेगाेंने एकसाथ उसपर आक्रमण कर दिया ।  वही जमीन पर उसे ऐसा दबाेचा की वह ना हिल सके ना डुल सके । जाे देवता विराट पुरूष के जीस अंग पर विराजमान हाे गयी वह उस शरीर के अंग का स्वामी बन गयी । लाचार भूमीपुरूष ब्रह्मदेवकाे शरण गया ।ब्रह्मदेव ने उस विराट पुरूष काे अपने मानसपुत्र हाेने की संज्ञा दी। उसके नामकरण के वक्त उपहार स्वरूप एक वरदान दिया की हर निर्माणाधीन मकान,दुकान,बंगले के तुम प्रमुख देवता माने जावाेगे ।  मै तुम्हे वरदान देता हूँ की जाे काेई भी व्यक्ती  धरती के किसी भी भूभाग पर भवन, नगर, तालाब, मंदीर, वास्तू, Factory, दुकान आदि का निर्माण कार्य करेगा ।
   यानी भवन निर्माण कार्य के समय भूमीपूजन, भूमीशांती, भूमी संस्कारण, भूमि शुद्धिकरण,शिलान्यास विधी,देहली पूजन, स्लॅब यानी छत पूजन और भवन बनने के बाद सग्रहमख वेदोक्त एवं पुराणोक्त वास्तुशांती कार्य शास्त्राेक्त संपन्न करने चाहिए ।
इन शुभकार्याेंके  दाैरान जाे भी हाेम-हवन ,नैवेद्य तुम्हारे नाम से नही चढायेगा वही तुम्हारा भाेजन हाेगा । ब्रह्मदेवने तथास्तु आशिर्वाद देनेकी क्षमता वास्तुपुरूष काे प्रदान की । ब्रह्मदेव के वचन सुनकर वास्तुपुरुष प्रसन्न हुआ ।  वास्तु समय चक्र के अनुसार उसके पाँव नैऋत्य काेन और मुख ईशान्य काेन मे था । इसके उपरांत वह अपने दाेनाे हाथ जाेड के पिता ब्रह्मदेव और धरती माता अदिती काे नमस्कार करते हुए औंधे मुॅंह धरती मे समा गया ।  हर भूखंड में  विशाल से अनु मे बदल गया मॅक्राे से मायक्राे बन गया । भूखंड के नाै प्लाॅट बना दिये और हर प्लाॅट काे कंपाउंड बना दिया  ताे automatically हर छाेटे छाेटे कंपाउंड प्लाॅट मे वास्तुपुरूष का पूर्णरूपसे वास रहेगा ।  वास्तुपुरूष की शरीर अवस्था गुण और अवगुण के समान विचार दर्शाती है । वास्तुपुरूष के माथे से पैर तक एक रेखा खिची दिखाई देती है ।  वाे रेखा उत्तर और पश्चिम दिशा वैसेही पूरब और दक्षिण दिशा मे वास्तुपुरूष के अंगाे का समान बटवारा करती है  This is what Vastu Purush building called the rule of law and equality justice.
     मत्स्यपुराण के अनुसार प्रमुख देवता, ऋषी, गंधर्व नए वास्तूमे ,भवनमे स्थानापन्न है । इसलिए भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार नूतन वास्तू मे,मकान मे सभी देवता, राक्षसगण, ऋषीमुनी आदि काे उनका यथायाेग्य स्थान देना चाहिए । अपना घर मंदिर समझ के स्वच्छ और सुंदर रखना चाहिए। स्वच्छ मकान मानसिक शांती और समाधान प्रदान करता है ।
मानसिक स्वास्थ के कारण घरके सदस्याेंमे लडाई झगडे नही हाेते ।
देवताओंके आशीर्वादसे घरपरिवार की तरक्की हाे जाती है । घर मे पैसा, प्रसिद्धी आने लगती है । घर मे शुभ उर्जा यानी पाॅझिटिव्ह एनर्जी आती है ।  इसलिए बड़े बुजुर्ग कहते है की घर मे कभी झगडा नही करना चाहिए,  गृहलक्ष्मी पत्नी ,बेटी,माता आदि का सन्मान करना चाहिए ।  खाने की बरबादी नही करनी चाहिए । घर मे शांती बनाये रखने से वास्तुपुरूष प्रसन्न हाेता है । सिद्धी, सुख-समृद्धी और सफलता प्रदान करने मे सहाय्यभूत हाेता है । सेहतमंद बननेका आशिश देता है ।  
वास्तुपुरुष समित अष्ट दिक्पाल मूर्तीयाँ सिन्नर गाव नाशिक जिला महाराष्ट्र के ऐरेश्वर मंदिर के वितनपर अंकित है । वैसेही मध्यप्रदेश के छतरपुर जिलेमे स्थित खजुराहाे मंदिर के वितनपर उन्हे दर्शाया है ।
इसलिए भारतीय वास्तुशास्त्र और ज्याेतीषशास्त्रके अनुसार घर ऐसा बनाओ की सभी देवताओंकाे ऋषीमुनी आदिकाे वास्तू और भवन मे उनका सन्मानजनक स्थान प्रदान हाे, प्राप्त हाे । क्याेकि वास्तुपुरूष का प्रभुत्व वास्तू के सभी दिशाओं मे व्याप्त है  ।
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پارسال در تاریخ 1401/12/15 منتشر شده است.
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