आमलकी एकादशी की कथा | Ekadashi Vrat Katha - Amalaki Ekadashi vrat katha | Ekadashi ki kahani

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103.6 هزار بار بازدید - 4 سال پیش - आमलकी एकादशी की कथा ||
आमलकी एकादशी की कथा || Amalaki Ekadashi ki katha || आमलकी एकादशी व्रत कथा
नमस्कार दोस्तों, आज 25 मार्च 2021 फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी के अवसर पर मैं आप सभी के समक्ष आमलकी एकादशी की कथा प्रस्तुत कर रही हूं। आइए शुरू करते हैं: द्वापर युग में एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने  श्रीकृष्ण से कहा - मधुसूदन ! फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम और माहात्म्य बताने की कृपा कीजिये। भगवान् श्रीकृष्ण बोले—महाभाग धर्मनन्दन! आपका प्रश्न अति उत्तम है,  प्राचीन समय में यही प्रश्न राजा मान्धाता   ने  महर्षि वशिष्ठ से पूछा था।  महर्षि वशिष्ठ ने कहा: फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम ‘आमलकी एकादशी’ है। इसका पवित्र व्रत विष्णु लोक की प्राप्ति कराने वाला है।  तब राजा मान्धाता ने पूछा—द्विजश्रेष्ठ! यह ‘आमलकी’ कब उत्पन्न हुई, मुझे  विस्तार से बताइये। वसिष्ठ जी  बोले —महाभाग! —पृथ्वी परआमलकी महान् वृक्ष है, जो सब पापों का नाश करने वाला है। भगवान् विष्णु के थूकने पर उनके मुख से चन्द्रमा के समान कान्तिमान् एक बिन्दु प्रकट हुआ। वह बिन्दु पृथ्वी पर गिरा। उसी से आमलकी  अर्थात आँवले का महान् वृक्ष उत्पन्न हुआ। यह सभी वृक्षों का आदिभूत कहलाता है।  उसी समय ब्रह्माजी  उत्पन्न हुए। और ब्रह्मा जी से इन प्रजाओं की सृष्टि हुई। देवता, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, नाग तथा निर्मल अन्तःकरण वाले महर्षियों को ब्रह्माजी ने जन्म दिया। उनमें से देवता और ऋषि  गण उस स्थान पर आये, जहाँ विष्णुप्रिया आमलकी का वृक्ष था। महाभाग ! उसे देखकर देवताओंको बड़ा आश्चर्य हुआ। वे एक-दूसरे पर दृष्टिपात करते हुए उस वृक्ष की ओर देखने लगे और खड़े-खड़े सोचने लगे कि हम विभिन्न प्रकार के वृक्षों के बारे में जानते हैं, किन्तु इस वृक्ष   के बारे में हमें नहीं पता। उन्हें इस प्रकार चिन्ता करते देख आकाशवाणी हुई—‘महर्षियो! यह सर्वश्रेष्ठ आमलकी का वृक्ष है, जो विष्णु को प्रिय है। इसके स्मरण मात्र से गोदान का फल मिलता है। स्पर्श करने से इससे दूना औरइसका फल खाने से तिगुना पुण्य प्राप्त होता है। इसलिये सदा प्रयत्नपूर्वक आमलकी का सेवन करना चाहिये। यह सब पापों को हरने वाला वैष्णव वृक्ष है। इसके मूल में विष्णु, ऊपर के भाग में ब्रह्मा, स्कन्ध में परमेश्वर भगवान् रुद्र, शाखाओं में मुनि, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्‌गण तथा फलों में समस्त प्रजापति वास करते हैं। आमलकी  का वृक्ष सर्वदेवमयी है। अतः  भगवान विष्णु के भक्तों के लिये यह परम पूज्य है।’ ऋषि बोले—[अव्यक्त स्वरूपसे बोलनेवाले महापुरुष!] हम आपको क्या समझें—आप कौन हैं? देवता हैं या कोई और? हमें अपना परिचय दीजिए।
तब पुनः आकाशवाणी हुई—जो सम्पूर्ण भूतों के कर्ता और समस्त भुवनों के स्रष्टा हैं, जिन्हें विद्वान् पुरुष भी कठिनता से देख पाते हैं, वही सनातन विष्णु मैं हूँ। देवाधिदेव भगवान् विष्णु का कथन सुनकर ब्रह्मकुमार महर्षि आश्चर्यचकित हो उठे। वे उसी समय भगवान  विष्णु की स्तुति करने लगे। ऋषि बोले—सम्पूर्ण भूतोंके आत्मभूत, आत्मा एवं परमात्मा को नमस्कार है। अपनी महिमा से कभी च्युत न होने वाले अच्युत को नित्य प्रणाम है। अन्तरहित परमेश्वर को बारम्बार प्रणाम है। दामोदर, कवि (सर्वज्ञ) और यज्ञेश्वर को नमस्कार है। मायापते! आपको प्रणाम है। आप विश्व के स्वामी हैं; आपको नमस्कार है। ऋषियों के इस प्रकार स्तुति करने पर भगवान् श्री हरि संतुष्ट हुए और बोले—महर्षियो ! तुम्हें कौन-सा अभीष्ट वरदान दूँ?’ ऋषि बोले—भगवन्! यदि आप संतुष्ट हैं तो संसार के हित के लिये कोई ऐसा व्रत बतलाइये, जो स्वर्ग और मोक्ष रूपी फल प्रदान करने वाला हो। श्री विष्णु भगवान बोले — महर्षियो! फाल्गुन शुक्ल पक्ष में यदि पुष्य नक्षत्र से युक्त  एकादशी हो तो वह महान् पुण्य देने वाली और बड़े-बड़े पातकों का नाश करनेवाली होती है। द्विजवरो! उसमें जो विशेष कर्तव्य है, उसको सुनो। आमलकी एकादशी में आँवले के वृक्ष के पास जाकर वहाँ रात्रि में जागरण करना चाहिये। इससे मनुष्य सब पापों से छूट जाता और सहस्र गोदानों का फल प्राप्त करता है।
आमलकी एकादशी व्रत करने से जो पुण्य होता है, वह सब बतलाता हूँ; सुनो। सम्पूर्ण तीर्थों के सेवन से जो पुण्य प्राप्त होता है तथा सब प्रकार के दान देने से जो फल मिलता है, वह सब उपर्युक्त विधि के पालनसे सुलभ होता है। समस्त यज्ञों की अपेक्षा भी अधिक फल मिलता है; इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। यह व्रत सब व्रतों में उत्तम है, जिसका मैंने तुमसे पूरा-पूरा वर्णन किया है। वसिष्ठ जी कहते हैं—महाराज! इतना कहकर देवेश्वर भगवान् विष्णु वहीं अन्तर्धान हो गये। तत्पश्चात् उन समस्त महर्षियों ने उक्त व्रत का पूर्णरूप से पालन किया। नृपश्रेष्ठ! इसी प्रकार तुम्हें भी इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिये। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं—युधिष्ठिर! यह दुर्धर्ष व्रत मनुष्य को सब पापों से मुक्त करने वाला है।
I tell you all the virtues that come from fasting on Amalaki Ekadashi; listen. The virtue which is attained through the consumption of entire pilgrimages and the fruit that comes from giving all kinds of donations, all of them are accessible by following the above method. All yagyas yield even more fruit than that; There is no doubt at all. This fast is the best among all the fasts, which I have fully described to you. Vasistha ji says - Maharaj! By saying this, Deveshwar Lord Vishnu became incarnate there itself. After that, all those Maharishis followed the fast. Best of all! Similarly, you should also do the ritual of this fast. Lord Sri Krishna says - Yudhishthira! This bad fast is going to free man from all sins.

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4 سال پیش در تاریخ 1400/01/04 منتشر شده است.
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