Maharana Pratap | में निमंत्रण नहीं दूँगा कृष्ण के अवतार को | Thikana Rajputana

RanGhosh (रणघोष)
RanGhosh (रणघोष)
3 میلیون بار بازدید - - अपने मन मे जानता हूँ
अपने मन मे जानता हूँ महाभारत सार को,
मे निमंत्रण नहीं दूंगा कृष्ण के अवतार को।

अपने मन मे जानता हूँ महाभारत सार को,
मे निमंत्रण नहीं दूंगा कृष्ण के अवतार को।

जानता हूँ अंत तह निष्कर्ष यही आयेगा,
कायर कहेगा विश्व उसे जो युद्ध नहीं कर पायेगा।।२


ओर राजस्थान की नारीयो के बारे में चित्रण करदूँ तो बताइयेगा,

माँ के बारे मे वो सोचते हैं
की क्षत्राणी है वो राज की रणनीतियों को जानती है। २
मात्र भू के बेरीयो को माँ भी बेरी मानती है।

तो विजयी श्री के बाद रण मे क्षत्रु बचने ना दूँगा,
अपनी माँ के दुध को मे कभी लजने ना दूँगा। २

कल्पना से निकल राणा फिर देखते रणक्षेत्र को,
फिर निहारा क्रोध से रक्तीम हुए हर नेत्र को,

धरा के दुलार का अँगार मन मे भर चुका था,
घटीयो मे युद्ध की वो घोषणा भी कर चुका था,

सब विर तब एक दुसरे के खुन के प्यासे बने,
धनुष की हर डोर पर तिर भी मानो तने।

इस वेग से शोणित बहाके जो बहे मंदाकिनी,
प्रतिपल वहाँ पर घट रही थी क्षत्रुओं की वाहिनी,

पराक्रम से मुगल दल के दाँत खट्टे पड़ रहे थे,
ओर बिन मुँड के क्षत्रिय तलवार लेकर लड़ रहे थे।।

~कवि अशोक चारण

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55 سال پیش در تاریخ 1403/04/27 منتشر شده است.
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