Sita Samahit Sthal Sitamarhi temple full documentary 2018 | सीतामढ़ी- सीता समाहित स्थल

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प्रतापगढ़ से सीतामढ़ी की इस यात्रा में आप सभी का स्वागत है।  इस यात्रा के दौरान हम 110 किलोमीटर का सफर तय करके सीतामढ़ी पहुंचेंगे।  यात्रा के पहले पड़ाव में प्रतापगढ़ भुपियामऊ चौराहे से  जौनपुर वाले  हाईवे से होते हुए पहले पहुंचेंगे 35 km का सफ़र तय करके मुंगरा बादशाहपुर, मुंगरा बादशाहपुर से 16km दूर फूलपुर, फूलपुर से 11.5 km चलने के बाद पहुंचेगे  NH 2, जिस पर उच्च गति से आगे बढ़ते हुए हड़िया बाजार उसके आगे बरौत मार्केट फिर वहां से 7 km दूर सीतामढ़ी। वह जगह जहां पर सीता ने अपनी जननी वसुंधरा के गोद में समाधि ले ली।

इस मंदिर का निर्माण किया स्वामी जीतेंद्रान्नद जी ने जो पाकिस्तान के रावलपिंडी में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। अपना अधिकतर समय उन्होंने ऋषिकेश के एक आश्रम में गुजारा।  यहां पर उन्होंने धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया।  उसके पश्चात वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संपूर्ण भारत में भगवान श्री राम के कई मंदिर मिलते हैं लेकिन उस जगह का कोई विवरण नहीं प्राप्त होता जहां पर सीता ने समाधि ली थी।  उस जगह की खोज में वह गंगा नदी के किनारे 900 किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए यहाँ पहुंचे क्योंकि पुराणों के अनुसार वह जगह गंगा नदी के ही किनारे कहीं पर सम्भव था। स्थानीय लोगों द्वारा पता चला की यहां वाल्मीकि का प्राचीन आश्रम था।  धर्म ग्रंथों के अनुसार माता सीता के जीवन काल का अंतिम समय बाल्मीकि के ही आश्रम में गुजरा था।  अतः उन्होंने इस आश्रम के आसपास ही सीता समाहित स्थल के बारे में अनुमान लगाया तत्पश्चात इस भव्य मंदिर का निर्माण हो सका।  

पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान श्रीराम ने माता सीता का त्याग कर दिया था तब  इसी जगह पर निवास कर रहे बाल्मीकि जी ने माता सीता को शरण दिया।  लव कुश का बचपन यहीं पर गुजरा और यही पर उनकी शिक्षा भी हुई।  जब भगवान श्री राम के द्वारा अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया गया तब लवकुश ने उनके अश्व को रोकने का दुस्साहस किया।  अयोध्या से हनुमान एवं अन्य लोग उस घोड़े को छुड़ाने के लिए यहां पर पहुंचे परंतु लव कुश के आगे सभी विवस थे।  अंत में भगवान श्री राम जब यहाँ पर आये तब उन्हें इस बात का  ज्ञान हुआ कि लव कुश स्वयं उनके पुत्र थे।  माता सीता ने भगवान श्रीराम को उनके पुत्र सौपते हुए  स्वयं पृथ्वी माता से यह आग्रह किया कि यदि उन्होंने संपूर्ण जीवन भगवान श्रीराम को अपना पति मानकर मन वचन एवं कर्म से सतीत्व का जीवन जिया हो तो वह उन्हें अपनी गोद में समा लें।  तब धरती फटी और माता सीता उसमें समां गई। इस तरह से भगवान श्रीराम को माता सीता के सतीत्व का प्रमाण प्राप्त हुआ।  उसके बाद दु:खी मन से वह लवकुश को लेकर अयोध्या लौट गए।  

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Sita Samahit Sthal (Sitamarhi) Temple
Sita Samahit Sthal is located in Bhadohi District, Uttar Prades India.

Founded by- Sri Prakash Narayan punj.
Sita Samahit Sthal (Sitamarhi), the holy place of Sitamarhi is situated between Allahabad and Varanasi, near the national highway No. 2 and also connected with Allahabad and Varanasi railway line with Jungiganj, the nearest railway station. It is a well known Hindu pilgrimage and a good tourist spot with a lot of tourists almost throughout the year.

It is said that this temple is the place where Sita went into the earth when she willed it while she was living with Saint Valmiki in the forest of Sitamarhi. It was Saint Valmiki who wrote Ramayana. According to Ramayana when Lord Rama came to Sita to ask her to come with him. According to Ramayana and other sacred books of Hindu dharma, when Lord Rama returned from the grand victory on Ravana the powerful king of Lanka. After becoming the king of Ayodhya a big yaga was held by Lord Rama and the horse of that grand yagya Ashvamedha was released from Ayodhya, the horse was to move in any direction or in any kingdom, the king of that kingdom should have to declare Rama as his Emperor. When the horse was wandering in the jungle of now Baripur village of Bhadohi, the two sons of Sita captured the horse according to the declaration that was tagged on the forehead of the horse.

for more information visit this link-
https://en.wikipedia.org/wiki/Sita_Sa...

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इस वीडियो को बनाया और एडिट किया गया है ब्रेन्स नेत्र लैब में
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6 سال پیش در تاریخ 1396/12/20 منتشر شده است.
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