चंद्रवंशी क्षत्रिय इतिहास मनीष कश्यप के द्वारा। भारत में राजपूतों के दो प्रकार।

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19.9 هزار بار بازدید - 6 ماه پیش - आखिर_मै_कौन_हूँ?Akhir Mai Kaun Hu? एक
आखिर_मै_कौन_हूँ?
Akhir Mai Kaun Hu? एक समाजिक प्रयास है, जिसके माध्यम से मै भारतवर्ष के सम्पूर्ण चन्द्रवंशी क्षत्रियों को हर प्रकार से जागरुक करनें का प्रयास कर रहा हूँ। "चन्द्रवंशीयों" का इतिहास ऐतिहासिक, पौराणिक व गौरवशाली रहा है, इसके बावजूद भी आज हम कितनें पिछे हैं और कुछ राजनैतिक दबंगों नें हमें क्षत्रिय के स्थान पर अतिपिछड़ा का टोपी पहनाने का काम किया है। हम उसी चन्द्रवंशी भरतवंशी कुल से हैं जिस कुल के चक्रवर्ती सम्राट "भरत" के नाम पर इस देश का नाम भारत पडा। भारत के सबसे पवित्र नदी माँ गंगा का विवाह भी चंद्रवंशी राजा "शान्तनू" से हुआ। कोई भी ऐसा महाकाव्य नहीं जिसका सम्बंध चंद्रवंशीयों से ना हो। फिर भी आज हम भिखारियों के श्रेणी में खड़े हैं। आज ये हमारे लिये बहूत बड़ी चिंता का विषय है और मैं समझता हूँ की जीनें के लिये जितना पानी की जरूरत है उतना ही इस पर जमीनी कार्य करनें की जरूरत है। अत: आप सभी आदरनीय गार्जियन, भाई बंधुओं से नम्र निवेदन है की आज ओ समय आ गया है की हम हर एक-दूसरे भाई को उनके अतीत की जानकारी देकर उन्हें इस सभ्य क्षत्रिय समाज को पुन: अस्तित्व में लानें का प्रयास करें। मैं जानता हूँ कोई भी बड़ा कार्य अकेले सायद संभव न हो पर मुझें पूर्ण विश्वास है की जब आप जैसे ऊर्जावान और उत्साही स्वयंसेवक इस कार्य में तन-मन से लग जायें तो कुछ भी असंभव नहीं होगा। तो आइये इन्हीं संकल्पों के साथ आज-अभी से ही एक दूसरे को जागरुक करनें का प्रयास करें। जय माँ भवानी, जय हिंद, वन्दे मातरम्।
Post credit: Abhishek Chandravanshi
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रवानी वंश के क्षत्रिय राजपूतों ने 2800 वर्ष वैदक काल से लेकर कलियुग तक मगध पर शासन किया। रवानीवंश मगध (बिहार) को स्थापित एवं शासन करने वाला प्रथम एवं प्राचीनतम क्षत्रिय राजवंश है। रवानी वंश बृहद्रथ वंश का ही परिवर्तित नाम है। रवानी वंश की उत्पत्ति चंद्रवंश से है, व इनकी वंश श्रंखला पुरुकुल की है। सबसे पहले यह कुल पुरुवंश कहलाया, फिर भरतवंश, फिर कुरुवंश, फिर बृहद्रथवंश कालांतर में इसी वंश को रवानी क्षत्रिय बोला जाता है। परंतु यह वही प्राचीन कुल पुरुकुल है, जो क्षत्रिय राजा पूरू से चला एवं प्रथम कुल कहलाया। शासन स्थापित करने एवं निवास क्षेत्र में अपना मजबूत अस्तित्व रखने के कारण रवानी राजपूतों को उनका विरुद रमण खड्ग खंडार प्राप्त हुआ,जिसका अर्थ होता है, मूल स्थान छोड़ कर रवाना हुए अलग अलग स्थानों पर खंडित हुए एवं जहां जहां खंडित हुए खड्ग (तलवार) के दम पर वही शासन स्थापित किया एवं अपनी तलवार के दाम पर अपना अस्तित्व कायम रखा। इस वंश के नामकरण की मान्यता यह है कि मगध की जब मगध की सत्ता पलटी एवं 344 ई.पु ने शुद्र शासक महापद्म नंद मगध की गद्दी पर बैठा फिर उसके बाद जब उसका पुत्र धनानंद गद्दी पर आसीन हुए तो वह मगध की प्रजा पर अत्याचार करने लगा तथा अपनी शक्ति का दुरूपियोग करने लगा यह सब देख इन क्षत्रियों को यह अपने पूर्वजों द्वारा बसाई एवं सदियों शासित पवित्र भूमि का आपमान समझा एवं प्रतिशोध लेने की ठान ली इसका अवसर इन्हे चंद्रगुप्त द्वारा नंद पर युद्ध के प्रयोजन में मिला इन क्षत्रियों ने चंद्रगुप्त का साथ नंद के खिलाफ युद्ध में दिया एवं वीरता के साथ लड़े परन्तु नंद की विशाल सेना होने के कारण चंद्रगुप्त युद्ध हार गया एवं पंजाब चला गया तथा नंद मगध के क्षत्रियों पर अत्याचार करने लगा तथा विशेषकर इन रवानीवंश क्षत्रियों पर इस जिस कारण यह क्षत्रिय पाटलिपुत्र से बाहर निकल कर अपनी पूर्वजों की भूमि पर रमण करने लगे जिस कारण यह अपने आपको रमण क्षत्रिय कह कर पुकारने लगे रमण शब्द का अपभ्रंश ही रवानी हुआ एवं रवानी का अर्थ होता है प्रवाह, तीक्ष्णता, धार, तेज, बीना रुकावट चलने वाला, इस कारण इन्होने यह शब्द अपने लिए उपयुक्त समझा एवं रवानी क्षत्रिय कहलाए। तत् पश्चात पांचवी या छठी शातबदी तक जाति व्यवस्था ढलने के कारण रवानी कुल के राजपूत कहलाए जाने लगे। अतः 328 ई.पु से मगध के क्षत्रिय राजवंश बृहद्रथवंश का परिवर्तित नाम रवानीवंश हुआ। तथा यह रवानी क्षत्रिय राजपूत कहलाए। इस वंश की 30 से अधिक शाखाएं बिहार में निवास करती है। कुंवर सिंह के सेनापति मैकू सिंह भी रवानी वंश की आरण्य शाखा के राजपूत थे।  पतन - मगध पर शासन करने वाले इस वंश के अंतिम शासक जो जरासंध की 23 वीं पीढ़ी में हुए जिनका नाम रिपुंजय था, इनकी हत्या इन्ही के मंत्री शुनक ने छल पूर्वक कर दी थी, एवं अपने पुत्र प्रदोत को गद्दी पर बैठा दिया । परिमाण स्वरूप 520 ई.पु में उनके परिवार के सदस्यों को महल छोड़ कर चले जाना पड़ा। कुछ रवानी क्षत्रिय मगध से प्रस्थान कर गए, परंतु अन्य परिवार जनों ने मगध मे ही निवास किया। नन्द के अत्याचार के बाद रवानी रवानी क्षत्रियों ने छोटे - छोटे शासन स्थापित करे कुछ सामंत के रूप में रहे तथा कुछ जमींदार कुछ रवानी क्षत्रियों ने अपने गांव (ठिकाने) बसा कर क्षेत्र में अपना शक्तिशाली वर्चस्व कायम रखा तथा कुछ बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा दास बना लिए गए तथा दास बने क्षत्रियों के दयनीय स्थिति कर दी गई।  गढ़वाल के शक्तिशाली 52 गढ़ो में एक रवानी राजपूतो का गढ़ रवाणगढ़ भी है।
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6 ماه پیش در تاریخ 1402/11/04 منتشر شده است.
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