Lucknow की खाक-ए-पाक मस्जिद का रंग एक खास दिन पर बदल जाता है? जानिए पूरी कहानी। Karbala ki Mitti
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5 سال پیش
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पुराने लखनऊ के त्रिवेणीगंज में
पुराने लखनऊ के त्रिवेणीगंज में मौजूद है खाक-ए-पाक मस्जिद। बाहर से ये छोटी सी मस्जिद आपको बेहद आम सी नजर आएगी, लेकिन अपने अंदर ये एक ऐसा इतिहास समेटे हुए है जो बेहद खास है। इतिहास की ये कहानी नवाबों के शहर के रिश्ते को सीधे इराक से जोड़ती है। मस्जिद के अंदर लाइट की लड़ियों से जगमगा रहे इस रौजे को देखिए। रौजा यानी समाधि या मकबरा। ये रौजा इराक के कर्बला शहर से लाई गई मिट्टी यानी खाक-ए-पाक से बना है। खाक-ए-पाक उस मिट्टी को कहा जाता है जहां इमाम हुसैन शहीद हुए थे। दावा है कि ये दुनिया की इकलौती खाक-ए-पाक मस्जिद है। सन 1810 में तामीर की गई इस मस्जिद के बारे में कुछ हैरान करने वाली मान्यताएं हैं। कहते हैं इस मिट्टी को शरीर में लगाने से कई रोगों से छुटकारा मिल जाता है। मस्जिद की देखरेख करने वाले बताते हैं कि आज भी 10वीं मोहर्रम पर इस मिट्टी का रंग सुर्ख लाल होने लगता है क्योंकि उसी दिन इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। रसूल साहब के इस रौजे पर अकीदतमंदों का आना जाना लगा रहता है। यहां अर्जी लगाने वालों में देश-विदेश तक के ज़ायरीन शामिल हैं। इस रौजे के बारे में कहा जाता है कि यहां किसी की दुआ खाली नहीं जाती। यही वजह है कि लखनऊ और कर्बला के गहरे रिश्ते को बयां करती ये मस्जिद शिया मुसलमानों की आस्था का बड़ा केंद्र है।
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5 سال پیش
در تاریخ 1398/03/17 منتشر شده
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