आग जलनी चाहिए | Aag jalni chahiye | दुष्यन्त कुमार । Dushyant Kumar

अमर काव्य रचनाएं
अमर काव्य रचनाएं
9.2 هزار بار بازدید - 4 سال پیش - हो गई है पीर पर्वत-सी
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

-दुष्यंत कुमार


Ho gayi hai peer parvat si pighalni chahiye
Is Himalaya se koi Ganga nikalni chahiye

Sirf hungama khada karna mera maqsad nahin
Meri koshish hai ki ye soorat badalni chahiye

Mere seene mein nahin, to tere seene mein sahi
Ho kahin bhi aag lekin aag jalni chahiye

- Dushyant Kumar
4 سال پیش در تاریخ 1399/06/31 منتشر شده است.
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