Shaheed-E-Aazam Bhagat Singh || A Tribute to Bhagat Singh by Deepankur Bhardwaj

Deepankur Bhardwaj Poetry
Deepankur Bhardwaj Poetry
2.1 میلیون بار بازدید - 3 سال پیش - This is a small Tribute
This is a small Tribute to our beloved Freedom fighter Bhagat Singh

Jai Hind ❤️❤️❤️
Vandey Mataram ❤️❤️❤️
Bharat Mata ki Jai 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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Lyrics :

शुरू हुआ सन 57 में
आजादी का नया फसाना था,
1907 में जन्म लिया एक बालक ने
जिसे आगे चलकर शहीद-ए-आजम कहलाना था।

भगत सिंह था नाम उसका
मुख सूरज से भी प्यारा था,
तेज झलकता था मुखमंडल पर
भारत मां का राज दुलारा था।

जब से बसंती चोला ओढ़ा
देश प्रेम ही सहारा था,
अरे दिलो-दिमाग पर रहता सदा ही
इंकलाब का नारा था।

लहू उतरा था आंखों में
और खून का हर कतरा ही खोला था,
जब जलियांवाला बाग में जनरल डायर
फायर फायर बोला था।

खून से लथपथ माटी देख
दिमाग भगत का घूमा था,
और निर्दोषों के खून से सनी उस माटी को
भगत सिंह ने चूमा था।

12 साल के भगत सिंह की आंखे
जलियांवाला बाग देख भर आई थी,
आजादी ही दुल्हन है मेरी
कसम ये उसने खाई थी।

बात पते की सबसे पहले
भगत सिंह ने पहचानी थी,
अरे वीरों ने हथियार गिराए तब शुरू हुई
अंग्रेजों की मनमानी थी।

अहिंसा के उस नारे पर
काश बापू तुम शर्मिंदा होते,
हिंसा के बदले जो हिंसा होती
तो लाला लाजपत राय आज भी जिंदा होते।

मातृभूमि को सर्वस्व देकर
अपनी ही धुन में ऐंठा था,
चाहता तो सिर झुका सकता था
पर सरफरोशी की तमन्ना
वो दिल में लेकर बैठा था।

ब्रिटिश हुकूमत के आतंक से
हुआ हर देशवासी बेचारा था,
इसी बात से चिढ़कर सांडर्स को
कुत्ते की मौत मारा था।

जान हथेली पर लेकर आजादी का
अफसाना गुनगुनाया था,
अदालत में धमाका करके बहरी हुकूमत को
इंकलाब सुनाया था।

असहनीय पीड़ा मिली कारागार में
आजादी का कारवां फिर भी रुका नहीं,
अंग्रेज कोड़े बरसा बरसा कर थक गए
भारत मां का लाल फिर भी झुका नहीं।

जेल में अधिकार ना मिलने
पर क्रांति वहां भी जारी थी,
और भगत सिंह को जेल में लाकर
अंग्रेजों ने भूल कर दी भारी थी।

भूख हड़ताल की लहर उठी तो
चढ़ा अंग्रेजों का पारा था,
अरे लाहौर से दिल्ली तक फिर गूंजा
इंकलाब का नारा था।

भूखे प्यासे सब सहते रहे
और रंग दे बसंती चोला गाया था,
ना जाने रब ने कौन सी मिट्टी से
ऐसा वीर सपूत बनाया था।

पानी के घड़े में दूध भरा जब
भूख को ना तोड़ सके,
पर भूले थे वो ऐसा कोई पहाड़ नहीं
जो रुख दरिया का मोड़ सके।

गुलामी की टूटी बेड़ियां
भारत में फिर से नई रवानी थी,
और भगत सिंह ने नाम करी
आजादी के अपनी जवानी थी।

फांसी की सजा जब मिली भगत को
इंसाफ उस दिन सोया था,
भारत का बच्चा-बच्चा उस दिन
फूट-फूट कर रोया था।

जिस जिस ने बापू पर उंगली उठाई,
की हमने भी उसकी निंदा है,
पर फांसी ना रोकी की तुमने भगत सिंह की बापू
इतिहास तुम पर शर्मिंदा है।

सुन कहानी वीर शिवाजी और महाराणा की
भगत सिंह का दिल भी डोला था,
लाज रखी थी इस माटी की
और पहना बसंती चोला था।

राजगुरु सुखदेव भगत सिंह
जिस दिन फांसी दी जानी थी,
दिल्ली से लाहौर तक उस दिन
तलवारे चल जानी थी।

शाम को फांसी देने का
विचार फिरंगीयों के मन में आया था,
वीरों की शहीदी के लिए
षड्यंत्र अजब ये बनाया था।

फिर शहीद-ए-आजम की कुर्बानी का
दिन जब वह आया था,
रंग दे बसंती चोले का तराना
हर गलियारे में गाया था।

धरती अंबर कांप रहे थे
दुख का कोई ना ठिकाना था,
उस वीर पुरुष को आज हमारा
साथ छोड़ कर जाना था।

कैसा यह जमाना है जो
उन वीरों को आज भूल गया,
आजादी के लिए जो भगत सिंह
फांसी पर था झूल गया।

नशे ने घेरा उन गलियारों को
जिनमें कभी भगत सिंह घूमा था,
आत्मा छलनी होती होगी उनकी सोच सोचकर
क्या इस आजादी के लिए फांसी का फंदा चूमा था।

दूषित ना करो इस धरती को
जिसकी कीमत बड़ी चुकाई है,
क्यों तुम्हारे कर्मों ने गर्दन
वीरों की झुकाई है।

जिस फलसफे की कायल है दुनिया
उसकी यही कहानी है,
इस आजादी को मत बर्बाद करो
जिसके लिए दी वीरों ने कुर्बानी है।
3 سال پیش در تاریخ 1400/05/14 منتشر شده است.
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