गंगा दशहरा व्रत कथा maa Ganga Katha माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण कैसे हुआ।शिवजी की जटा में केसे समाई

Bhakti Bhajan Sangrah
Bhakti Bhajan Sangrah
519 بار بازدید - 2 سال پیش - ► Album - Ganga Avtaran
► Album - Ganga Avtaran Ki Katha
► Song - Ganga Avtaran Ki Katha
► Singer - Uma Aggarwal
► Lyrics - Traditional
➤ Label - Vianet Media
➤ Sub Label  - Ambey
➤Parent Label(Publisher) - Shubham Audio Video Private Limited
➤ Trade Inquiry - [email protected]
4956-DVT_VNM

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Ganga Avtaran Ki Katha Lyrics In Hindi

प्राचीन काल में अयोध्या में सगर नाम के राजा राज्य करते थे I उनकी केशनी तथा सुमति नमक दो रनिया थी केशनी से अंशुमान नामक पुत्र हुआ था सुमति के साठ हजार पुत्र थे I एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया यज्ञ की पूर्ति के लिए एक घोड़ा छोड़ा इंद्र यज्ञ को भंग करने हेतु घोड़े को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध आये I राजा ने अपने यज्ञ के घोड़े को खोजने के लिए अपने साठ हजार पुत्रों को भेजा घोड़े को खोजते खोजते वो कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो उन्होंने यज्ञ के घोड़े को वहां बंधा पाया उस समय कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे I राजा के पुत्रो ने कपिल मुनि को चोर चोर कह कर पुकारना शुरू कर दिया कपिल मुनि की समाधि टूट गई तथा राजा के सभी पुत्र कपिल मुनि की क्रोधा अग्नि में जल कर भस्म हो गए अंशुमान अपने पिता की आज्ञा पा कर अपने भाइयों को खोजता हुआ मुनि के आश्रम पंहुचा तो महत्मा गरूर ने उसके भाइयों के भस्म होने का सारा वृतांत कह सुनाया गरूर जी ने अंशुमान को यह भी बताया की यदि इनके मुक्ति चाहते हो तो गंगा जी को स्वर्ग से धरती पर लाना होगा | इस समय अश्व को ले जा कर अपने पिता के यज्ञ को पूर्ण कराओ इसके बाद गंगा को पृथ्वी पर लाने का कार्य करना अंशुमान ने घोड़े सहित यज्ञ मंडल में पहुंचकर राजा सगर से सब वृतांत कह सुनाया राजा सगर की मृत्यु के पश्चात अंशुमान ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिए तप किया I परन्तु वो असफल रहे इसके बाद उनके पुत्र दिलीप ने भी तपस्या की परन्तु उन्हें भी सफलता नहीं मिली अंत में दिलीप के पुत्र भगीरथ जी ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिए गौ कर तीर्थ में जा कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की तपस्या करते करते कई वर्ष बीत गए तब ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए तथा गंगा जी को पृथ्वी पर ले जाने का वरदान दिया अब समस्या यही थी की ब्रह्मा जी के कमंडल से छूटने के बाद गंगा जी के वेग को पृथ्वी पर कौन संभालेगा ब्रह्मा जी ने बताया की भूलोक में भगवान् शंकर के अतरिक्त किसी में ये शक्ति नहीं है I जो गंगा के वेग को संभाल सके इसीलिए उचित यह है की गंगा का वेग संभालने के लिए भगवान् शिव से प्रार्थना की जाये महाराज भगीरथ एक अंघूठे पर खड़े हो कर भगवान् शंकर की आराधना करने लगे उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हो कर शिव जी गंगा को अपनी जटाओं में संभालने के लिए तैयार हो गए गंगा जी जब देवलोक से पृथ्वी की ओर बढ़ी तब शिव जी ने गंगा जी की धाराओं को अपनी जटा में समेट लिया कई वर्षो तक गंगा जी को जटाओं से निकलने का मार्ग नहीं मिला भगीरथ के पुत्र अनुनय विनय करने पर शिव जी अपनी जटाओं से गंगा को मुक्त करने के लिए तैयार हो गए इस प्रकार शिव की जटाओं से छूटकर गंगा जी हिमालय की घाटियों में कल कल नाद करके मैदान की ओर बढ़ी जिस रास्ते में गंगा जी जा रही थी उसी मार्ग में ऋषि जहूँ का आश्रम था तपस्या में बीत समझ कर वह गंगा जी को पी गए भगीरथ जी के प्रार्थना करने पर उन्हें पुनः जांघ से निकाल दिया तभी से गंगा जहन पुत्री या जानवी कहलायी इस प्रकार अनेक स्थलों को पार करती हुयी जानवी ने कपिलमुनि के आश्रम पहुंचकर सगर के साठ हजारो पुत्रों के भस्मो को अवशेषों के तार का मुक्त किया उसी समय ब्रह्मा जी ने प्रकट हो कर भगीरथ के कठिन तप था सगर के साठ हजारो पुत्रो के अमर होने का वर दिया तथा घोसित किया की तुम्हारे नाम पर गंगा जी का नाम भागीरथी होगा अब तुम जा कर अयोध्या का राज सम्भालों ऐसा कह कर ब्रह्मा जी अंतर्ध्यान हो गए I
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2 سال پیش در تاریخ 1401/03/17 منتشر شده است.
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