पीतल की कड़ाही भोजन पकने हेतु कितनी कारगर Original Brass Vessel as per Ayurved

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।। जय चक्रधारी।।

आज प्रकाश देंगे पीतल पर -

ईश्वर ने सृष्टि में जब मनुष्य को बनाया तो इसकी व्यवस्ता सबसे पहले की के वह अपने जीवन का आंनद कैसे लेगा।
आनंद का सीधा सम्बन्ध स्वास्थय से है - और स्वास्थय सीधा जुड़ा है हमारे भोजन पर।
" जैसा खाये अन्न वैसा पाए तन मन "।

तो यहाँ से चलते हैं पाक शाला की ओर -

परम पिता ने हमारे लिए जो भोजन उत्पन्न किया है उसमे शरीर को पोषित करने के समस्त गुणधर्म हैं  ही।
अब मनुष्य स्वाद एवं पाचन के लिए उसे पकाता है तो यह उसका पहला दायित्व है - के वह ईमानदारी से उस पात्र का प्रयोग करे, जिसमे भोजन के गुणधर्म बढ़ जाते हों - न की नष्ट हो जाते हों।

क्या है ऐसा - ऐसा है मिट्टी के बर्तन, चाँदी के बर्तन, सोने के बर्तन। फिर बारी आती है कलाई किये हुए पीतल के बर्तन की - जो भोजन पकाने के काम आते हैं, जिसमे गुणधर्म भोजन के नष्ट न होते हों। और फिर बारी आती है - असली लोहे के बर्तनो की - जिसमे तीव्र कहते के अलावा सब पकाया जा सकता है।  और अंत में - ताम्बे के बर्तन की - जिसमे जल के गुणधर्म की वृद्धि होती है क्युकी ताम्बा केवल जल पीने के लिए उपयुक्त है ।  

किन्तु धूर्त मनुष्य को देखो - मिट्टी के बर्तन जो की तालाब व नदी आदि की चिकनी मिट्टी से निर्मित होने चाहिए - कलियुग की चकाचौंध में वह - नाली के मिट्टी से मिट्टी लाकर बर्तन बना रहा है - क्या उससे लोग नहीं मरेंगे ? ईश्वर ने क्या बुद्धि इस काम के लिए दी है।

चाँदी सोने के बर्तनो में - ना जाने क्या क्या मिला रहा है।

आज का विषय पीतल है सो इसपर आते हैं -

कही भी नजर उठा कर देखो - काकतुंडिया दिखाई दे रही हैं - ( काकतुंडी - पुराना अशुद्ध पीतल - जिसमे अन्य धातु मिला कर पीतल को ख़राब कर दिया जाता है और उसके बर्तन का निर्माण कर दिया जाता है ।  क्यों - मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में, सस्ता करने के चक्कर में, और कम मेहनत में, कम समय में, कम लागत में, पीतल के नाम पर जो मर्जी परोस दो )
ऐसा क्यों ? क्युकी लोगो के पास तो समय है नहीं जो उन्हें पता हो - के काकतुंडी पीतल क्या होता है और रीतिका पीतल क्या होता है।

क्यों? क्युकी वो ऐसे उलझे हुए हैं जीवन में - के उन्हें भारत के ग्रन्थ पढ़ने का समय नहीं है, इसलिए पता भी नहीं है - के काकतुंडी उनके प्राण लेगा , और रीतिका पीतल - उनके भोजन को और प्रभावशाली बनाएगा।

पीतल पर कलाई क्यों - ताकि पीतल से कोई रिएक्शन न होने पाए।
कितना कुछ तो सीखा दिया आयुर्वेद ने - पूरा जीवन आपका धन्य धन्य हो जाय।

पर हम न जाने अपने ही प्राणो के पीछे क्यों पड़े हैं ?
- हम ब्लड प्रेशर की दवाई खाएंगे - जीवन भर।
- हम हार्ट की दवाई खाएंगे - जीवन भर।
- हम थाइरोइड की दवाई खाएंगे - जीवन भर।
- हम शुगर की दवाई खाएंगे - जीवन भर।
कोइसा भी रोज आ जाये - हम जीवन भर दवाई खा लेंगे।  वैसे भी जीवन लम्बा जीना किसे है।
अजी आप तो मत जिओ - अपनी सन्तानो को तो इस सुन्दर वसुंधरा का आनंद ले लेने दो, इस  मनुष्य जीवन का आनंद ले लेने दो, आयुर्वेद की पद्यति से चले तो ४०० वर्ष भी जी जाये, किन्तु उन्हें कम से कम १०० वर्ष तो जी लेने दो।

किन्तु हम स्वस्थ जीवन नहीं जियेंगे ? क्यों ?

हमे जोर आता है।  क्युकी पीतल को साफ़ कौन करे ? अजी पीतल के बर्तन में तो वो योग्यता है - जो स्वयं को चंगा करने में सक्षम है।  हम क्या गर्म गुनगुने सादे पानी से , एक बोरी के टुकड़े से इसे नहीं धो सकते? आखिर इतना आलस क्यों ?

क्यों?
हर साल पीतल पर कलाई कौन करवाए ? कोई मिलता ही नहीं है कलाई करने वाला।

यह मेरा आप से वादा रहा - चाहे एक स्वतंत्र एपिसोड बनाना पड़ किन्तु आपके स्वास्थय के चलते मै आपको सिखायूँगा, के घर पर ही अपनी ही गैस पर - पीतल की कड़ाही पर कलाई कैसे करते हैं।

पहले की स्त्रियाँ सब अपने ही घरों में बर्तन पर कलाई कर लेती थी, तो क्या आज यह हम नहीं कर सकते ? बिलकुल कर सकते हैं।

विचार कीजिए - चाँदी सोने में नहीं तो कम से कम परिवार और स्वयं के कल्याण के लिए - पीतल के कड़ाही तो अपने घर में अवश्य लावें।।

और चर्चा फिर करेंगे।
सुझावों का स्वागत है।

।।  ॐ का झंडा ऊँचा रहे।।

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4 سال پیش در تاریخ 1399/09/27 منتشر شده است.
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