कर्ण का युद्ध में जाने से पहले भीष्म से संवाद Karna Bhishma Conversation

शब्द बाण
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460 هزار بار بازدید - 5 سال پیش - शत्रुसमूह का विनाश करने वाले
शत्रुसमूह का विनाश करने वाले कर्ण ने परशुराम जी के दिये हुए दिव्‍य धनुष पर प्रत्‍यंचा चढ़ा ली और उस पर हाथ फेरकर कालाग्नि तथा वायु के समान शक्तिशाली बाणों को ऊपर उठाते हुए इस प्रकार कहा। कर्ण बोला– ब्राह्मणों के शत्रुओं का विनाश करने वाले तथा अपने ऊपर किये हुए उपकारों का आभार मानने वाले जिन वीर शिरोमणि भीष्‍म जी में चन्‍द्रमा में सदा सुशोभित होने वाले शशचिह्न के समान सदा धृति, बुद्धि, पराक्रम, ओज, सत्‍य, स्‍मृति, विनय, लज्‍जा, प्रियवाणी तथा अनसूया[2]– ये सभी विरोचित गुण तथा दिव्‍यास्‍त्र शोभा पाते थे, वे शत्रुवीरों के हन्‍ता देवव्रत यदि सदा के लिये शान्‍त हो गये तो मैं सम्‍पूर्ण वीरों को मारा गया ही मानता हूँ। निश्‍चय ही इस संसार में कर्मों के अनित्‍य सम्‍बन्‍ध से कभी कोई वस्‍तु स्थिर नहीं रहती है। श्रेष्‍ठ एवं महान व्रतधारी भीष्‍म जी के मारे जाने पर कौन संशयरहित होकर कह सकता है कि कल सूर्योदय होगा ही[3] भीष्‍मजी में वसु देवताओं के समान प्रभाव था। वसुओं के समान शक्तिशाली महाराज शान्‍तनु से उनकी उत्‍पति हुई थी। ये वसुधा के स्‍वामी भीष्‍म अब वसु देवताओं को ही प्राप्‍त हो गये हैं; अत: उनके अभाव में तुम सभी लोग अपने धन, पुत्र, वसुन्‍धरा, कुरुवंश, कुरूदेश की प्रजा तथा इस कौरव सेना के लिये शोक करो।
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5 سال پیش در تاریخ 1398/09/16 منتشر شده است.
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