श्री कृष्ण लीला | महासंग्राम महाभारत | शर शैय्या और चक्रव्यूह (भाग - 2)

Tilak
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166.9 هزار بار بازدید - 2 سال پیش - भक्त को भगवान से और
भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here -    • दर्शन दो भगवान | Darshan Do Bhagwaan ...   Watch the story of "Shar shaiyya aur chakravyooh" now! भीष्म दुर्योधन से कहते हैं की मुझे प्यास लगी है। दुर्योधन पीने कि लिए शीतल जल लाने को कहता है तो भीष्म मना कर देते हैं और अर्जुन से कहते हैं की मैं अपने आख़िरी समय में गंगा मैया के दर्शन पाना चाहता हूँ और उसी से जल से प्यास भजन चाहता हूँ। अर्जुन अपने बाण को धरती पर मार कर गंगा को प्रकट कर देते हैं और भीष्म अपनी माँ गंगा के दर्शन पा लेते हैं। गंगा माता भीष्म को अपना जल पिलाती हैं। भीष्म को अपनी इच्छा से मरने का वरदान था इसलिए गंगा माँ भीष्म को आशीर्वाद देती हैं की जब तक तुम पृथ्वी लोक पर रहोगे तब तक मेरा जल तुम्हारी प्यास भुजाता रहेगा और बदल बन कर छाँव देते रहेंगे। भीष्म गुरु द्रोण से कहते हैं की सेना को शिविर में ले जाओ वो सब थक गए होंगे। भीष्म एकांत में दुर्योधन से बात करने के लिए कहते हैं और सभी वहाँ से चले जाते हैं। भीष्म दुर्योधन से कहते हैं की अर्जुन की ताक़त के बारे में बताते हैं और उसे कहते हैं की युद्ध ना करके पांडवों से समझोता कर ले। भीष्म दुर्योधन को समझाते हैं की अर्जुन से युद्ध तुम नहीं जित पाओगे तो तुम आपस में समझोता कर लो। भीष्म दुर्योधन को पांडवों से संधि करने के लिए कहता है लेकिन दुर्योधन भीष्म की बात पर चुप रह जाता है। भीष्म दुर्योधन को सोचें के लिए समय देते हैं और उसे कहते हैं की मुझे नींद आ रही है अब मुझे सोने दो। दुर्योधन अपने सैनिकों को आदेश देकर भीष्म की रक्षा करने के लिए ख कर वहाँ से चला जाता है। धृतराष्ट्र को भीष्म के शैया पर लेट जाने से बहुत दुःख लगता है और वह रो रो कर अपना दुःख प्रकट करता है। दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य को अपना सेनापति घोषित कर देता है। युद्धिष्ठिर को गुरु द्रोण के सेनापति बनने पर चिंता होती है और वह उनके द्वारा बनाए गए व्यूह भेदन करने के लिए रणनीति बनाने की बाटे करते हैं। अभिमन्यु अपनी व्यूह नीति के ज्ञान के बार में सबको बताता है की उसने कैसे अपनी माता के गर्भ में हाई अर्जुन से व्यूह विद्या को सिख लिया था। श्री कृष्ण पांडवों को कहते हैं की अभि हमारा सबसे चिता का विषय व्यूह भेदन नहीं कर्ण है अर्जुन कर्ण से युद्ध करके उसका वध कर देने की बात कहता है। दूसरी ओर कर्ण अर्जुन से युद्ध करने के लिए उत्सुक था। लेकिन कर्ण को हराना आसन नहीं था क्योंकि उसके पास सूर्य देव के दिए कवच और कुंडल हैं जिनकी वजह से वह अभेद्य था। इंद्र कर्ण का युद्ध में शामिल होने की बात सुन उसे अर्जुन की चिंता होती है और वह श्री कृष्ण के पास जाता है। इंद्र कर्ण से उसके कवच और कुंडल भिक्षा में माँगने के लिए श्री कृष्ण से आशीर्वाद माँगता है। श्री कृष्ण इंद्र को कहते हैं की आप चाहते हैं की मैं आपको कर्ण के साथ छल करने का आशीर्वाद दे दूँ। इंद्र को अपना यह कार्य अधर्म नहीं लगता और वह अर्जुन की रक्षा करने के लिए कर्ण से भिक्षा में कवच और कुंडल माँगने के लिए चला जाता है। इंद्र देव के जाने के बाद सूर्य देव श्री कृष्ण के पास आते हैं और उनसे पूछते हैं की इंद्र देव छल से उसके कवच और कुंडल माँगने जा रहें हैं और आपने उसे रोका क्यों नहीं। श्री कृष्ण सूर्य देव को कहते हैं की इंद्र देव अपने पुत्र की रक्षा कि लिए ये कार्य कर रहे हैं तो आप भी अपने पुत्र की रक्षा के लिए उसे जाकर बता दे की इंद्र देव कल प्रातः उस से छल करके उसके कवच और कुंडल लेने आ रहा है। सूर्य देव कर्ण को जाकर इंद्र की चाल के बारे में बताते है की तुम्हारे दान वीर होने के कारण इंद्र तुमसे ब्राह्मण के रूप में भिक्षा में कवच और कुंडल माँगने आएँगे। सूर्य देव कर्ण को भिक्षा में कवच और कुंडल को दान में देने से मना करने को कहते हैं। लेकिन अर्जुन अपने पिता को कहता है की मैं अपने दान करने के धर्म को नहीं छोड़ सकता। सूर्य देव कर्ण से प्रसन्न होकर चले जाते हैं। सूर्योदय होने पर कर्ण पूजन करने के बाद भिक्षा देता था। उसी प्रकार अगले दिन जब प्रातः पूजन के बाद कर्ण भिक्षा देने के लिए भिक्षुक को ढूँढता है। इंद्र देव ब्राह्मण का रूप बदल कर कर्ण से भिक्षा माँगने आता है। कर्ण उसे भिक्षा में सोना चाँदी और ग़ाऊ दान करने। के लिए कहता है तो इंद्र उस से इन सब की जगह उसके कवच और कुंडल भिक्षा में माँगता है। दानवीर कर्ण ब्राह्मण रूप में इंद्र को पहचान लेता है क्योंकि ब्राह्मण के लिए ग़ाऊ दान सबसे बड़ा दान होता है लेकिन तुमने मुझसे मेरे कवच और कुंडल माँगे हैं। कर्ण इंद्र को कहता है की मैं अपने प्राणों से प्रिय कवच और कुंडल अपने दान धर्म को क़ायम रखने के लिए तुम्हें अपने कवच और कुंडल दान में दे रहा हूँ।कर्ण अपने हाथों से अपने कवच और कुंडल खिंच कर निकल देता है और इंद्रदेव को दे देता है। इंद्र कर्ण की दान धर्म के सामने अपमानित महसूस करता है और कर्ण से प्रसन्न हो कर उसे वरदान माँगने को कहता है तो कर्ण याचक होकर भिक्षुक से वरदान माँगने से मना कर देता है। इंद्र देव कर्ण की दान धर्म से प्रसन्न होकर उसे दिव्य शक्ति देते हैं जिस के प्रयोग वह जिस पर भी करेगा उसकी निश्चित ही मृत्यु हो जाएगी जिसका प्रयोग कर्ण एक बार हाई कर सकता था। रात्रि में युद्ध की नीति बना लेने के बावजूद गुरु द्रोणाचार्य नयी नीति करके व्यूह नीति बदल देते हैं और चक्रव्यूह का निर्माण करने के लिए कहते हैं। द्रोणाचार्य कहते हैं की श्री कृष्ण और अर्जुन को चक्रव्यूह का भेदन करना आता है। In association with Divo - our YouTube Partner #SriKrishna #SriKrishnaonYouTube
2 سال پیش در تاریخ 1401/07/24 منتشر شده است.
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