Chandra Shekhar Azad : तो क्या आज़ाद पुलिस की गोली से मारे गए थे? (BBC Hindi)

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150.9 هزار بار بازدید - 4 سال پیش - इलाहाबाद के संग्रहालय में चंद्रशेखर
इलाहाबाद के संग्रहालय में चंद्रशेखर आज़ाद की वह पिस्तौल रखी है, जो 27 फ़रवरी 1931 की सुबह आज़ाद के हाथों में थी. मान्यता है कि इसी पिस्तौल से निकली गोली ने आज़ाद की जान ली थी. लेकिन पुलिस के कागज़ ऐसा नहीं कहते. कहीं आज़ाद पुलिस की गोली से तो नहीं मरे? इलाहाबाद के थाना कर्नलगंज में रखे बरतानवी पुलिस के अपराध रजिस्टर को देखें तो यह शक पैदा होता है. तत्कालीन पुलिस दस्तावेज़ कहते हैं कि उस सुबह क़रीब सुबह 10.20 पर आज़ाद एल्फ़्रेड पार्क में मौजूद थे. पुलिस के मुख़बिरों ने उनके वहां मौजूद होने की जानकारी दे दी थी. भारत की आज़ादी के लिए लड़ने वाले चंद्रशेखर आज़ाद बरतानवी पुलिस की हिटलिस्ट में थे. काकोरी कांड और उसके बाद 1929 में बम कांड के बाद पुलिस आज़ाद को ढूंढ रही थी. उस दौर के ज़्यादा दस्तावेज़ मौजूद नहीं हैं. बाद में आज़ादी के आंदोलन पर लिखने वाले यह साफ़ नहीं करते कि आख़िर उस सुबह कैसे घटनाक्रम तेज़ी से बदला था. भारत की अपराध प्रणाली अभी भी कमोबेश बरतानवी तौर-तरीक़ों पर ही आधारित है. ख़ासकर अगर कोई आज पुलिस की मुठभेड़ में मारा जाता है, तो वह मुठभेड़ को ठीक उसी तरह दर्ज करती है, जैसा पुलिस उस दौर में करती थी.

स्टोरी: सुनील राय, बीबीसी हिंदी के लिए
आवाज़: नवीन नेगी

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4 سال پیش در تاریخ 1399/05/02 منتشر شده است.
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