जय भीम कहना बंद करो नहीं तो... बौद्ध भिक्षु का बड़ा बयान।

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योगी राज में बहुजन पत्रकारों को बोलने की आजादी के बदले जेल। नीलम बौद्ध, चीफ एडिटर NB NEWS 24X7, DHAMM PATH INDIA, AMBEDKAR DHAMMA KRANTI, NB NEWS 24X7 FACEBOOK PAGE उत्तर प्रदेश में योगी की भाजपा सरकार आज कल जगह जगह दलितों का सम्मेलन करके उनका कल्याण करने तथा दलित हितैषी होने का दावा कर रही है। उसके इस दावे के सच की पोल गोरखपुर में पिछले महीने सरकार द्वारा दलितों के लिए जमीन मांगने पर दलित नेताओं व दिल्ली से कार्यक्रम को कवर करने गए बहुजन पत्रकारों नीलम बौद्ध, मनोज अन्तानी, संतोष, रमेश को जेल में डालने की घटना से पूरा देश सन्न रह गया और योगी जी के दलित हितैषी होने की पोल खुल गई, घटना का विवरण निम्नवत है:-
दिनांक 10 अक्तूबर, 2023 को गोरखपुर में अंबेडकर जन मोर्चा द्वारा भूमिहीन दलितों को एक एक एकड़ भूमि आवंटन की माँग को लेकर गोरखपुर कमिश्नर कार्यालय के प्रांगण में एक धरने का आयोजन किया गया था। उसमें मुझे (नीलम बौद्ध) भी एक वक्ता तथा कार्यक्रम को कवर करने के लिए आमंत्रित किया गया था। मैं 9 अक्तूबर को प्रात: ट्रेन द्वारा अपने जीवन साथी ऐडवोकेट जय भीम प्रकाश के साथ गोरखपुर पहुंची और एक होटल में रुके। अगले दिन 10 अक्टूबर को सुबह धरना स्थल पर पहुंची और कार्यक्रम को कवर करना शुरू कर दिया। प्रांगण में बहुत भारी संख्या में उच्च पुलीस अधिकारियों के साथ पुलिस बल तैनात था तथा किसी ने भी कार्यक्रम को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया बल्कि अप्रत्यक्ष मौन रहकर कार्यक्रम को अपनी मौन स्वीकृति रात्रि 10 बजे तक देते रहे तथा प्रांगण की प्रत्येक घटना के साक्षी रहे। मैंने बीच बीच में वहां आए बहुजन समाज के साथियों को मंच से संबोधित भी किया।  लेकिन रात्रि को कार्यक्रम के बाद जब हम अपने होटल वापस जा रहे थे तब पुलिस ने हमारी गाड़ी का पीछा किया।  कार्यक्रम में कुछ भी असामान्य नही हुआ था इसलिए हमें किसी प्रकार का कोई भय नहीं था। हम अपने होटल पर रात्रि 11 बजे के आसपास पहुंचे, खाने के लिए आर्डर किया और खाना खाने के बाद बाहर आकर देखा तो होटल को पुलिस ने भारी पुलिस बल के साथ घेर रखा था लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं। हम अपने कमरे में सोने के लिए चले गए।  सुबह 6 बजे होटल के कर्मचारी ने पुनः दरवाजा खटखटाया तो दिन की रोशनी से बढ़े हुए हौसले के साथ हमने दरवाजा खोला तो कर्मचारी बोला लोकल पुलिस आई है पूछताछ करनी है। हम बेहिचक तथा रात्रि के भय से बिलकुल उबरकर नीचे आए तो पुलिस ऑफिसर ने बड़ी शालीनता से पूंछा नीलम बौद्ध? मैंने हां कहा तो उन्होंने कहा कि तैयार होकर नीचे आ जाइए आपको थाना चलना है।  हम बड़े इत्मीनान से तैयार होकर सपना समान लेकर पुलिस के साथ थाना रामगढ़ ताल आ गए। जहां पुलिस ने हमें दोपहर तक बिठाए रखा। शायद पुलिस अधिकारी रात भर होटल में ही पहरा दे रहे थे इसलिए हमें अपने कार्यालय में बैठाकर सोने चले गए। दोपहर को उच्च अधिकारी ने मेरे जीवन साथी को पूछताछ के लिए अपने कार्यालय बुलाया तो पुलिस उन्हे लेकर चली गई और बाद में मुझे भी थाना कैंट लेकर आई। थाना कैंट में सभी पुलिस अधिकारी काफी अफरा तफरी में नजर आ रहे थे और किसी बड़े आदमी का दबाव उनकी शक्लों पर साफ झलक रहा था। पुलिस ने पहले बड़ी साधारण धाराओं में केस दर्ज किया था लेकिन कोई बड़ा आदमी यानी कि योगी आदित्यनाथ जी के दबाव में धारा कोई गैर जमानती अपराध एफआईआर में पुलिस अधिकारियों को शामिल करना था, जिसकी कहानी बनाने की अफरा तफरी और बैचेनी पुलिस अधिकारियों के चेहरे पर साफ नजर आ रही थी। हम बड़े इत्मीनान से बैठे थे क्योंकि हम पोलिस को कम से कम इंसानियत की हद के पार जाता हुआ नही सोच रहे थे। लेकिन दवाब की मामूली आदमी का नही बल्कि भारत संघ के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री का था। जिसके आगे पुलिस अधिकारियों की इंसानियत बेबस नजर आ रही थी। कुछ पुलिस अधिकारी जातिवाद की भावना से ग्रस्त होकर भी कार्यवाही कर रहे थे। जो कि कोई नई बात नही थी इस देश के लोगों के भीतर बैठे जातिवाद की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी।
आखिरकार पुलिस अधिकारी धारा 307 के लिए एक झूठी कहानी बनाने में कामयाब हुए और मामला दर्ज करके पहले सीजेएम साहिबा के घर पेश किया गया जहां उन्होंने सरकारी गुलामी का खूब प्रदर्शन किया और प्रथम दृष्टया अपराध होने को अपनी स्वीकृति देकर जेल के लिए वारंट पर अपने हस्ताक्षर दे दिए। हालांकि पुलिस अधिकारियों ने किसी भी तरह की कोई भी केस संपत्ति सीजेएम के समक्ष प्रस्तुत नही की थी। लेकिन सीजेएम साहिबा कुछ कानून से तो कुछ मुख्यमंत्री से दबी नजर आईं और मात्र औपचारिकता पूरी करके हम 9 लोगों को इस केस में जेल भेजने के लिए अपनी रजामंदी दे दी।  उसके बाद लगभग रात्रि 1 बजे हमें भूखे प्यासे छिबिया जेल गोरखपुर में कैद कर दिया। हालांकि हमारे अन्य पत्रकार साथी मनोज अंतानि, संतोष व रमेश को पुलिस ने 10 तारीख की रात को ही गिरफ्तार कर लिया था लेकिन उन्हें हमारे साथ जेल नही भेजा। हमें लगा की शायद उन्हें पुलिस छोड़ देगी। लेकिन 2 दिन बाद उन्हें भी जेल में भेज दिया और हमने उन्हें जेल में देखकर हल्की प्रसन्नता के साथ अत्यंत रोष प्रकट किया।  पुलिस ने इस केस में कानून की ही नहीं अपितु मानवाधिकारों की भी सारी मर्यादाएं भंग कर दी थी, जो मानवता के लिए काफी शर्मशार था। उन्हे 72 घंटे भूखे प्यासे पुलिस हिरासत में रखा गया था, जबकि कानून बिना आदेश के केवल 24 घंटे की अनुमति पूछताछ के लिए देता है।
आज दिनांक 1 नवंबर 2023 को 22 दिन बाद जेल से रिहाई हुई तो अपने ऊपर तमाम यातनाओं के बाबजूद बहुत गर्व का अनुभव हो रहा है। समाज हमारे त्याग के लिए लगातार साधुवाद प्रेषित कर रहा है और योगी जी के हिंदुत्व की चारो ओर भर्त्सना हो रही है। योगी जी का कोई धर्म नही केवल अपने विरोधियों का अंत करना ही उनका एकमात्र धर्म है ऐसा हमे लगता नही है बल्कि इस घटना से उन्होंने साबित करके दिखा दिया है।
8 ماه پیش در تاریخ 1402/08/15 منتشر شده است.
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