भ्रमर गीत का अर्थ | सूरदास | Bhramar Geet Kya Hai ? | Mithilesh Sharma | अँखियाँ हरी दरसन की भूखी

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9.2 هزار بار بازدید - 4 سال پیش - महाकवि सूरदास का जन्‍म 'रुनकता'
महाकवि सूरदास का जन्‍म 'रुनकता' नामक ग्राम में सन् 1478 ई. में पं. रामदास घर हुआ था ।

भ्रमरगीत सूरदास पद :-
अंखियां हरि-दरसन की भूखी।
कैसे रहैं रूप-रस रांची ये बतियां सुनि रूखी॥
अवधि गनत इकटक मग जोवत तब ये तौ नहिं झूखी।
अब इन जोग संदेसनि ऊधो, अति अकुलानी दूखी॥
बारक वह मुख फेरि दिखावहुदुहि पय पिवत पतूखी।
सूर, जोग जनि नाव चलावहु ये सरिता हैं सूखी॥

सूरदास जी श्री वल्‍लभाचार्य के शिष्‍य थे। वे मथुरा के गऊघाट पर श्रीनाथ जी के मन्दिर में रहते थे। सूरदास जी का विवाह भी हुआ था। विरक्‍त होने से पहले वे अपने परिवार के साथ ही रहा करते थे। पहले वे दीनता कें पद गाया करते थे, किन्‍तु वल्‍लभाचार्य के सम्‍पर्क में अने के बाद वे कृष्‍णलीला का गान करने लगे। कहा जाता है कि एक बार मथुरा में सूरदास जी से तुलसी कभ्‍ भेंट हुई थी और धीरे-धीरे दोनों में प्रेम-भाव बढ़ गया था। सूर से
प्रभ‍ावित होकर ही तुलसीदास ने श्रीकृष्‍णगीतावली' की रचना की थी।


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कृतियॉं-
भक्‍त शिरोमणि सूरदास ने लगभग सवा-लाख पदों की रचना की थी। 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' की खोज तथा पुस्‍तकालय में सुरक्षित नामावली के अनुसार सूरदास के ग्रन्‍थों की संख्‍या 25 मानी जाती है।
सूरसागर
सूरसारावली
साहित्‍य-लहरी
नाग लीला
गोवर्धन लीला
पद संग्रह
सूर पच्‍चीसी


सूरदास ने अपनी इन रचनाओं में श्रीकृष्‍ण की विविध लीलाओं का वर्णन किया है। इनकी कविता में भावपद और कलापक्ष दोनों समान रूप से प्रभावपूर्ण है। सभी पद गेय है, अत:उनमें माधुर्य गुूण की प्रधानता है। इनकी रचनाओं में व्‍यक्‍त सूक्ष्‍म दृष्टि का ही कमाल है कि आलोचक अब इनके अनघा होने में भी सन्‍देह करने लगे है।

शैली-
सूरदास जी ने सरल एवं प्रभवपूर्ण शेली का प्रयोग किया है। इनका काव्‍य मुक्‍तक शैली आधारित है। कथा-वर्णन में वर्णनात्‍मक शैली का प्रयाेग हुआ है। दृष्‍टकूट-पदों में कुछ क्लिष्‍टता का समावेशअवश्‍य हो गया है।

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4 سال پیش در تاریخ 1399/02/20 منتشر شده است.
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